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बिहार चुनाव के पहले मोदी सरकार ने धर्म आधारित गणना जारी कर भ्रम फैलाने की कोशिश की है।
जनगणना विभाग ने सरकार के एजेंट के रूप में काम करते हुए हिंदुत्ववादी एजेंडे को ही आगे बढ़ाया है। इन आंकड़ों को इस प्रकार प्रदर्शित किया गया, जैसे इस देश में हिंदू अल्पसंख्यक होने वाला है। कुछ हिंदूवादी नेताओं ने लगे हाथों इस प्रकार के बयान भी दे डाले।
असल में आंकड़ों पर नजर डालें, तो साफ हो जाता है, कि मुस्लिमों की संख्या बढ़ नहीं रही, घट रही है। अगर पिछले 10 साल की जनसंख्या वृद्धि की बात करें, तो मुसलमानों में यह आंकड़ा हिंदुओं की तुलना में कम है।
जनगणना विभाग ने इन आंकड़ों की समीक्षा न करते हुए संख्या जारी कर दी, जो यह बताती है, कि हिंदुओं की संख्या 0.7 फीसदी घटकर 79.8 फीसदी रह गई, जबकि मुस्लिमों की संख्या 0.8 फीसदी बढ़कर 14.2 फीसदी हो गई।
इस पूरे मामले को दूसरी तरह से देखने की जरूरत है। इस दशक में मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि दर 24.6 फीसदी है, जबकि हिंदुओं की 16.8 फीसदी। अब नजर 2001 के आंकड़ों पर डालें, तो पता चलता है, उस दशक में मुस्लिमों की वृद्धि दर 29.52 फीसदी थी और हिंदुओं की 19.92 फीसदी। इस लिहाज से साल 2001 से 2011 के बीच मुस्लिमों की जनसंख्या वृद्धि में करीब 5 फीसदी की गिरावट आई और हिंदुओं की वृद्धि दर में 3.1 फीसदी की।
साफ है, साल 2001 में हिंदू और मुस्लिम की जनसंख्या वृद्धि के बीच जो अंतर लगभग 10 फीसदी था, वो अब घटकर लगभग 8 फीसदी रह गया है।
इस नजर से देखा जाए, तो मुस्लिमों ने जनसंख्या की बढ़ोत्तरी को रोकने की प्रयास अधिक किए बजाए हिंदुओं के।
यह आंकड़े संघ परिवार के उस प्रचार की भी पोल खोलते हैं, जिसमें वह कहते हैं, कि आने वाले दिनों में मुस्लिमों की संख्या हिंदुओं से अधिक होगी। दूसरी तरफ यह आंकड़ा यह भी बताता है, कि इस साल मुसलमानों में स्त्री-पुरुष अनुपात में भी सुधार हुआ है, यहां 2001 में यह अनुपात हजार पुरुषों पर 936 महिलाओं का था, जो बढ़कर 951 हो गया, जबकि हिंदुओं में अभी भी यह अनुपात 939 पर ही बना हुआ है।
आंकड़ों की बात करें, तो एक और महत्वपूर्ण बात सामने आती है। साल 2011 में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि का जो आंकड़ा सामने आया है, वह आजाद भारत के इतिहास में सबसे कम है। 1961 के बाद से यह आंकड़ा लगातार गिरा है, साल 1991 को छोड़कर। साल 1961 में वृद्धि दर 32.49 थी, जो 71 में घटकर 30.92 रह गया, उसके बाद 81 में 30.78 व 91 में यह बढ़कर 32.88 फीसदी हो गया, जो 2001 में फिर घटकर 29.52 हो गया। इस हिसाब से मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि की दर में जो बड़ी गिरावट 2001 में दर्ज की गई थी, यह उससे भी बड़ी गिरावट है।
दूसरी तरफ हिंदुओं की वृद्धि पर नजर डालें, तो यह साल 1971 और 1981 में बढ़ी और उसके बाद कम होती गई। हिंदुओं की वृद्धिदर 1961 में 20.76 फीसदी, 71 में 23.68 फीसदी, 81 में 24.07 फीसदी, 91 में 22.71 फीसदी और फिर 2011 में 16.76 हो गई। यहां एक बात और महत्वपूर्ण है, हिंदू और मुस्लिमों की वृद्धि दर में पहले से ही एक बड़ा अंतर है, यह बात सच है, कि इस वृद्धि को रोकने के लिए हिंदू समाज पहले जाग्रत हो गया और यह बात आंकड़ों में भी नजर आ रहा है। इन आंकड़ों से एक बात और साफ होती है, कि हिंदुओं की संख्या अधिक है, इसलिए यह वृद्धि उतनी नजर नहीं आती, इसलिए कुल जनसंख्या में हिंदुओं की हिस्सेदारी लगातार कम होती गई है, जबकि मुस्लिमों की बढ़ती गई है। 1951 में हिंदुओं की प्रतिशत 84.1 था, जो 61 में 83.45 हुआ, 71 में 82.73 हुआ, 81 में 82.30, 91 में 81.53 और 2001 में घटकर 80.46 फीसदी हो गया, दूसरी तरफ मुस्लिमों की हिस्सेदारी 51 में 9.8 फीसदी से बढ़ते हुए 61 में 10.69, 71 में 11.21, 81 में 11.75, 91 में 12.61 और 2001 में 13.43 फीसदी हो गई। इनकी तुलना अगर सिख, ईसाई, बौद्ध जैसे धर्मावलंबियों से की जाए, तो उनकी ग्रोथ रेट लगभग सामान्य रही है। इसीलिए असली झगड़ा इन्हीं दो समाजों के बीच बना हुआ है, जिसे भुनाने की कोशिश नेता लोग करते रहते हैं।
इन आंकड़ों के आने के बाद से आरोप प्रत्यारोप का दौर भी शुरु हो गया है। इसके समय को लेकर अधिकांश सवाल खड़े किए जा रहे हैं। जातिगत आंकड़ों को जारी करने की भी मांग की जा रही है। हालांकि पूर्व में संप्रग सरकार ने धर्म आधारित आंकड़े जारी करने से इनकार कर दिया था और भाजपा ने इसका वादा अपने घोषणा पत्र में किया था।
भाजपा का कहना है, कि उसने अपना वादा पूरा किया, पर जिस तरह से किया, वह उचित नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी को यह बात समझना चाहिए, कि अब वह सत्ता में है और देश का संविधान धर्म निरपेक्षता की बात करता है। हर बात को चुनावी लाभ के नजरिए से देखना ठीक नहीं है। जब तक भाजपा विपक्ष में थी, तब तक ठीक था, पर अब वह सत्ता में बैठी है। निश्चित तौर पर भाजपा की कोशिश बिहार चुनाव में हिंदुओं को लामबंद करने की है, जो आंकड़े सामने आए हैं, उनमें बिहार उन राज्यों में है, जहां मुस्लिमों की वृद्धिदर राष्ट्रीय औसत से अधिक बताई गई है।
हो सकता है, भाजपा और संघ परिवार इन आंकड़ों का उपयोग चुनाव प्रचार के दौरान करे, हो सकता है, उससे उसे चुनाव में भी फायदा होगा, पर यह तय है, कि इससे देश को नुकसान होगा।
भारत शर्मा
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