बिना मजबूत विपक्ष के लोकतंत्र, लोकतंत्र नहीं होता है.
रवि रनवीरा
भारत में क्षेत्रीय पार्टियों का विलय लगभग हो चुका है. जैसे कि राजतंत्र में कोई सिकंदर जीतता जा रहा है. आज उसी प्रकार से लोकतंत्र में हो रहा है. कल तक साम, दाम, दण्ड, भेद होता था ठीक वैसे ही आज एफआईआर, सीबीआई, ईडी का सहारा लिया जा रहा है. हाँ, एक नीति है जो कि कल से लेकर अब तक अपनाई जा रही है. वह है फूट डालने और जातिवाद तथा धार्मिक आग को भङकाने की.
देश में मौजूदा समय में लोकल पार्टियां टूट रही हैं या उनको विवश कर तोड़ा जा रहा है. चाहे वह एआईडीएमके, समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड हो या फिर राष्ट्रीय जनता दल. हालांकि जनता दल यूनाइटेड भले ही आज बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में सरकार चला रही है लेकिन वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश उर्मिल के कथनानुसार जेडीयू का भविष्य भी आरजेडी की तरह दिखाई दे रहा है. क्योंकि बीजेपी सत्ता के लिए आडवाणी को मोहरा बना सकती है तो गैरों का कद्र कौन करता है. यह केवल कहने की बात नहीं है बल्कि बीजेपी के दूरगामी सोच व कूटनीतिक चाल को समझने की जरूरत है.
यूपी चुनाव में समाजवादी पार्टी में जिस तरह फूट डाल कर तोड़ दिया गया, यह छुपा नहीं है. इसी रणनीति के साथ बीजद (बीजू जनता दल) ओङिशा में भी बीजेपी फूट डाल चुकी है. आसार भी है कि बीजद सांसद बैजंत पंडा और तथागत सतपथी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. जैसे कि बीजद के वरिष्ठ नेता विजय महापात्र ने किया था.
आगे महागठबंधन ही एक मजबूत गठबंधन था जिसने मोदी लहर के समय ही बीजेपी को पानी-पानी कर खदेड़ दिया था. लेकिन बीजेपी इस करारी हार का बदला लेने के लिए लगी रही. जिसके लिए लालू परिवार को पहले सीबीआई के जाल में फांसकर नीतीश कुमार जैसी बड़ी मछली को पकड़ा गया. वरना आप और हम भलीभांति जानते हैं कि पूरे देश में केवल चारा घोटाला ही एक घोटाला नहीं बल्कि व्यापम जैसे बड़े घोटाले भी हुए हैं. जिस भ्रष्टाचार, भ्रष्टाचार की दुहाई पीएम दे रहे हैं तो ऐसा भी नहीं है कि कोई नेता गंगाजल है. यहां तक की नीतीश कुमार व सुशील मोदी से लेकर तमाम नेताओं पर भी हत्या व भ्रष्टाचार के मामले दर्ज हैं.
राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत पार्टी कांग्रेस की हालत क्षेत्रिय दलों से भी कमजोर है. ऐसे में महागठबंधन का टूटना बीजेपी के आगामी चुनाव में जीत को हवा दे चुका है. यह तय है कि आरजेडी के साथ हुए विश्वासघात के बाद बिहार की जनता अगले चुनाव में बीजेपी को चुनेगी! इसके बाद नीतीश कुमार को बीजेपी 2015 के विश्वासघात का जवाब जरूर देगी. ऐसे में नुकसान क्षेत्रिय दलों का होगा. यूपी के बाद बिहार की सत्ता में आना बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा है.
विकास, भ्रष्टाचार, नोटबंदी, देशभक्ति बीजेपी के मोहरें हैं जिसमें भोली-भाली जनता उलझ रही है. वैसे खोखली विकास का भंडाफोड़ कैग रिपोर्ट ने कर दिया है. गोला-बारूद की कमी और गो रक्षा के नाम पर हत्या ने देशभक्ति की भी पोल खोल दी. भ्रष्टाचार मुक्त की बात करने वाले मोदी की असलियत वरिष्ठ पत्रकार प्रंजोय राय गुहा की एक रिपोर्ट ने बीजेपी व अडानी समूह के 1500करोङ हेरफेर का खुलासा कर सामने रख दिया. जिसको दबाने की पुरजोर कोशिश हो रही है. तो क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? हम तो समझ रहे हैं लेकिन क्या मेरे प्रिय देशवासी समझ रहे हैं? क्या क्षेत्रिय राजनीतिक दल पुन: 'महागठबंधन' बना सकते हैं. या लोकतंत्र पर 'कब्जा' होते देखते रहना है! भले ही छल कपट हो मगर बीजेपी के जीत से एक मजबूत विशाल पक्ष दिख रहा है. लेकिन बिना मजबूत विपक्ष के लोकतंत्र, लोकतंत्र नहीं होता है.