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लंबे सफर के दौरान पैरों का व्यायाम करते रहें
शरीर के भीतरी धमनियों में जब रक्त थक्के के रूप में जम जाता है, तो उसे डीवीटी यानी डीप वेन थ्रोंबोसिस (Deep vein thrombosis) कहा जाता है. यह थक्के तब बनते हैं जब रक्त जमकर गाढ़ा हो जाता है. ये अक्सर पैरों के निचले हिस्से और जांघों में होता है. साथ ही, ये शरीर के अन्य भागों में भी बन सकते हैं. कई बार ये थक्के टूटकर रक्त के द्वारा संचालित होने लगते हैं. खुले या लूज थक्कों को एंबोलस कहा जाता है. जब यह थक्का फेफड़ों तक जाकर रक्त प्रवाह को अवरूद्ध कर देता है तो इसे पल्मोनरी एम्बोलिज्म (Pulmonary embolism) कहा जाता है. इसे लघु रूप में पी ई भी कहा जाता है. इन अंदरूनी वाहिनियों के कारण ही हमारे हृदय व फेफड़ों तक सही मात्रा में रक्त पहुंचता है. लेकिन अगर ये डीप वेन अपने काम में धीरे हो जाती हैं तो हृदय व फेफड़ों तक रक्त सही ढंग से नहीं पहुंच पाता है विशेषकर उस समय में जब व्यक्ति कुछ कर न रहा हो, सोया हो या आराम कर रहा हो. हालांकि ये रक्तवाहिनियां पूर्ण रूप या आंशिक तौर पर बाधित हो जाती हैं, लेकिन डीवीटी होने का खतरा लगातार बना रहता है.
पल्मोनरी एम्बोलिज्म के लक्षण | Symptoms of pulmonary embolism
पैरों या पैर की एकाध धमनी में सूजन होना, पैरों में दर्द होना खासकर खड़े होते समय या चलते समय, सूजन वाले भाग में जलन या गर्मी का एहसास होना. त्वचा का रंग बदलना आदि.
पुल्मोनरी एंबोलिजम के लक्षण
Symptoms of pulmonary ambolism
सांस लेने में तकलीफ, सांस लेने की अवधि कम होना, बलगम में रक्त आना, तेज से सांस लेना या तेज धडक़न भी इसके लक्षण हो सकते हैं. कुछ हालात जैसे गर्भावस्था, एंटी थ्रोंबिन, प्रोटीन सी, प्रोटीन एस संबंधित विकार से डीवीटी होने के आसार बढ़ जाते हैं. कई केसों में डीवीटी के कोई संकेत या लक्षण नहीं मिलते हैं. कई केसों में डीवीटी ठीक हो जाता है, लेकिन इस की कोई गारंटी नहीं होती कि पुन: डीवीटी मरीज को परेशान नहीं करेगा. कई लोगों को लंबे समय तक दर्द व सूजन का आभास होता रहता है. इस अवस्था को पोस्ट फलेबिटिस सिंड्रोम के नाम से जाना जाता है. चुस्त जुराबें पहनने से भी लोग डीवीटी से जुड़े दर्द से मुक्ति पा सकते हैं. डी वी टी उन लोगों में अधिक पाया जाता है जो कि अधिक यात्रा करते हैं खासकर कार या हवाई जहाज में. वे लोग जो कि किसी बीमारीवश जैसे हार्ट फेल्योर, फैक्चर, सांस संबंधी तकलीफ, ट्रौमा, दुर्घटना आदि के बाद लंबे समय तक बेड पर रहते हैं वे लोग भी इसका शिकार हो सकते हैं. मधुमेह से पीडि़त मोटे लोग, धूम्रपान करने वाले लोग एवं वे महिलाएं जो कि गर्भधारण से बचने के लिए दवाओं का इस्तेमाल करती हैं भी डीवीटी के निशाने पर होती हैं.
डीवीटी की रोकथाम
* अपने डॉक्टर से नियमित जांच कराएं.
* दवाओं को समय से लें.
* किसी भी बीमारी या सर्जरी के बाद जल्द से जल्द बिस्तर से उठें.
* लंबे सफर के दौरान पैरों का व्यायाम करते रहें.
* अपने पैरों को आगे की तरफ फैलाएं और खींचे ताकि रक्त प्रवाह ठीक से हो.
* लंबे सफर करते वक्त निम्रलिखित बातों का ध्यान दें.
* लिफ्ट और एक्सीलेटर के बजाएं सीढिय़ों का प्रयोग करें.
* ढीले-ढ़ाले व आरामदायक कपड़े पहनें.
* ज्यादा से ज्यादा पेय पदार्थ का सेवन करें और एल्कोहोल न लें.
व्यायाम से भी आप कुछ हद तक डी वी टी से आराम पा सकते हैं विशेषकर जब आप लंबे समय तक बिस्तर पर रहे हों. ऐस्प्रिन नामक दवा का सेवन करने से भी रक्त को पतला होने से रोका जा सकता है. धूम्रपान करने वाले लोगों को धूम्रपान त्याग देना चाहिए. मोटे लोगों को अपना अतिरिक्त वजन कम करना चाहिए. नियमित तौर पर वाकिंग करने से भी आप को बहुत मदद मिलेगी. इससे आप के पैर में डीवीटी विकसित नहीं हो पाएगा. पैरों का व्यायाम जैसे बैठै हुए अपनी एडियों को घुमाते रहना, पैरों के अंगूठों को आगे पीछे की ओर घुमाना चाहिए ताकि तलवों मेें रक्त एकत्रित न हो.
डीवीटी के मरीजों को कंप्रेशन स्टाकिंग्स पहनने की सलाह दी जाती है. किसी भी आपरेशन या सर्जरी के बाद अधिक दिनों तक बेड पर न रहने की हिदायत दी जाती है. एंटीकोग्लुएंट दवाइयां डी वी टी का उच्चस्तरीय उपचार हैं जैसे:-हेपारिन व वेराफेरिन. ये रक्त में नए-नए क्लाट या गांठ बनने से रोकने में मदद करते हैं. साथ ही पुरानी गांठों को बड़ा भी नहीं होने देती हैं. ये इन गांठों को घटा तो नहीं सकते क्योंकि आप का शरीर धीरे-धीरे खुद ही इन गांठों को समाप्त कर देता है. डीवीटी में सबसे खतरनाक अवस्था पुलमोनरी एंबोलिजम को माना जाता है. दरअसल इस अवस्था के दौरान गांठ का कोई भी एक छोटा सा टुकड़ा टूटकर रक्तप्रवाह के साथ हृदय या फेफड़ों तक पहुंच जाता है. यह बेहद खतरनाक व जानलेवा भी हो सकता है.
पोस्ट-थ्रोम्बोटिक सिंड्रोम (पीटीएस) | Post-thrombotic syndrome (PTS)
पोस्ट-थ्रोम्बोटिक सिंड्रोम एक और ऐसी ही जटिल अवस्था है जहां डीवीटी के कारण धमनियों की पैरों से हृदय तक रक्त प्रवाह करने की क्षमता खत्म हो जाती है और पैरों में रक्त जमा होने लगता है. इससे लंबे समय तक दर्द व सूजन रह सकती है. जटिल केसों में आप के पैरों में अल्सर हो सकते हैं. बड़े डीवीटी के केसों में लिंब इस्केमिया भी हो सकता है. इससे धमनियों पर दबाव पड़ता है.
इससे गैंगरीन, त्वचा में इंफेक्शन होने के भी खतरे रहते हैं. डीवीटी जवां लोग में कम पाया जाता है. ये अपना शिकार 40 से अधिक उम्र के लोगों को अपना शिकार बनाता है. लेकिन किसी भी प्रकार का अंदेशा होने पर तुरंत ही डाक्टर से संपर्क करें.
पैरों के लिए विषेश तकिए बनाए गए हैं ताकि यात्रा करते हुए लोग उसकी सहायता से पैरों का व्यायाम कर सकें. हर हाल में सक्रिय रहना बहुत जरूरी है.
आम तौर पर ऑपरेशन के कुछ समय बाद तक मरीज को अस्पताल में ही रहना पड़ता है ताकि उसे चिकित्सकों की निगाहों में रखा जाए और किसी भी तरह की जटिलता उत्पन्न होने पर तात्कालिक रूप से कार्रवाई की जा सके. इस दौरान उन मरीजों को जितनी जल्दी हो सके सक्रिय होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
ऐसा होने पर डीवीटी का कम खतरा रहेगा. ऑपरेशन के विकल्प को बहुत कम अवसरों पर ही आजमाया जाता है. यह पता लग जाने के बाद कि मरीज को डीवीटी है, उसे तत्काल ही इंजेक्शन के सहारे हेपैरिन दवा दी जाती है. मरीजों को इसी तरह की दवा-वारफरीन खाने की सलाह दी जाती है. यह दवा कई महीनों तक चल सकती है. जब मरीज इन दवाओं का सेवन कर रहा होता है तो बार-बार रक्त की जांच करवाते रहना चाहिए ताकि यह अंदाजा होता रहे कि मरीज को रक्त को पतला करने वाली इन दवाओं की सही मात्रा दी जा रही है या नहीं. ऐसा करके ही हैमरेज के खतरे को दूर रखा जा सकता है.
( डा. संजय अग्रवाला, आर्थोपेडिक सर्जन, पीडी हिंदुजा अस्पताल, मुबंई)