“मेरी कहानियां, मेरे परिवार की कहानियां – वे भारत में कहानियां थी ही नहीं. वो तो ज़िंदगी थी.जब नए मुल्क में मेरे नए दोस्त बने, तब ही यह हुआ कि मेरे परिवार के साथ जो हुआ, जो हमने किया, वो कहानियां बनीं. कहानियां जो लिखी जा सकें, कहानियां जो सुनाई जा सकें.” – सुजाता गिडला ( भारतवंशी अमरीकी दलित लेखक, …
Read More »Tag Archives: अस्मिता विमर्श
अंबेडकर के बाद हिंदू साम्राज्यवादी एजेंडा में गौतम बुद्ध
Gautam Buddha in the Hindu imperialist agenda after Ambedkar : india will be powerful in asia using buddha diplomacy कल हमने लिखा था, अंबेडकर (Ambedkar) के बाद हिंदू साम्राज्यावदी एजेंडा (Hindu imperial agenda) में गौतम बुद्ध (Gautam buddha) को समाहित करने की बारी है और आज इकोनामिक टाइम्स की खबर (Today’s Economic Times news) हैः ‘बुद्ध डिप्लोमेसी‘ से एशिया में …
Read More »अरुंधति रॉय और डॉ. राम विलास शर्मा की आँखों से गांधी और अंबेडकर देखना
विमर्शमूलक विखंडन और कोरी उकसावेबाजी में विभाजन की रेखा बहुत महीन होती है अरुंधति रॉय की किताब ‘एक था डॉक्टर और एक था संत‘, (Arundhati Roy’s book Ek Tha Doctor Ek Tha Sant) की समीक्षा अरुंधति रॉय की किताब ‘एक था डॉक्टर और एक था संत‘, (Arundhati Roy’s book Ek Tha Doctor Ek Tha Sant,) लगभग एक सांस में ही …
Read More »मार्क्सवादी प्रगतिशीलों की वैचारिक विक्षिप्तता : जातिवादी अस्मिताएँ पूंजीवाद के विरुद्ध कभी संघर्ष के मजबूत आधार नहीं बन सकतीं
अस्मिता विमर्श को इतना आत्मघाती न बनाइए कि आंबेडकर की Annihilation of caste एक प्रहसन में तब्दील हो जाए
अस्मिता, अंबेडकर और रामविलास शर्मा
‘मोदी युग’ की दो परिघटनाएं, अल्पसंख्यक और अस्मितावाद की राजनीति करने वाले जितना जल्दी समझ लें उतना बेहतर
पहली परिघटना : प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की टीम ने राजनीतिक बहस (political debates) को ज़मीन से उठा कर आभासी दुनियां (virtual worlds) में प्रक्षेपित कर दिया है. उसकी इस सफलता के पीछे पिछले करीब तीन दशक की राजनीति है जिसे राजनीतिक और बौद्धिक जमात ने सम्मिलित रूप में सींचा है. जैसे-जैसे राजनीतिक और बौद्धिक विमर्श (political …
Read More »साधु ऐसा चाहिए : कट्टरता जीतेगी या उदारता
साधु ऐसा चाहिए : कट्टरता जीतेगी या उदारता (यह लेख भी 2001-2 के आस-पास 'जनसत्ता' में छपा था और 'कट्टरता जीतेगी या उदारता' (राजकमल प्रकाशन, 2004) पुस्तक में संकलित है. आपके पढ़ने के लिए लेख फिर दिया जा रहा है.) साधु ऐसा चाहिए प्रेम सिंह दुनिया के बाकी समाजों की तुलना में भारतीय समाज की एक विशेषता यह है कि …
Read More »भीमराव अंबेडकर को यहां से देखो : भारत एक खोज को अछूत की खोज ने ढंक दिया
भीमराव अंबेडकर को यहां से देखो : भारत एक खोज को अछूत की खोज ने ढंक दिया आधुनिक युग में अछूत कैसे जीएंगे ? गैर अछूत कैसे जीएंगे इसके बारे में कोई विवाद ही नहीं था, क्योंकि हम सब जानते थे कि वे कैसे हैं और उन्हें क्या चाहिए ? किंतु अछूत को हम नहीं जानते थे। हम कबीर को जानते …
Read More »उत्तर प्रदेश का जमीनी परिदृश्य और कांग्रेस की भूमिका
उत्तर प्रदेश का जमीनी परिदृश्य और कांग्रेस की भूमिका हरे राम मिश्र बता रहे हैं कि मुलायम सिंह यादव की सक्रियता में सपा चाहकर भी भाजपा के खिलाफ नहीं जाएगी। अखिलेश के पास सात प्रतिशत यादव वोट छोड़कर ओबीसी की अन्य जातियों का कोई वोट नहीं रह गया है लोकसभा के चुनाव में अब जबकि पांच माह से भी कम …
Read More »सबक सिखाने के दौर में : आरएसएस का हिंदुत्व और उसका गर्व पराजित मानसिकता की कुंठा से पैदा होता है
सबक सिखाने के दौर में : आरएसएस का हिंदुत्व और उसका गर्व पराजित मानसिकता की कुंठा से पैदा होता है प्रेम सिंह सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश पर हुए हमले की जहां ठीक ही कड़ी निंदा की जा रही है, वहीँ कई लोग स्वामी जी के कुछ पूर्व प्रकरणों का हवाला देकर इसे सही परिणति बता रहे हैं. यह निश्चित ही …
Read More »महिषासुर से संबंधित मिथक व परंपराओं पर शोधग्रंथ
पुस्तक समीक्षा -इमामुद्दीन मिथकों को गैर ऐतिहासिक कहकर कर टाल देने की परम्परा अब लद चुकी है। दलित-बहुजन समाज इतिहास में अपनी उपस्थिति के प्रति पहले की तुलना मे अब काफी सजग हो चुका है। भारतीय वैचारिक विमर्शों के दायरे उसका बढ रहा है। ‘महिषासुर: मिथक और परम्परायें’ इसी की एक कड़ी है। ज्यादा दिन नहीं हुए जब महिषासुर के …
Read More »छठ उत्सव और सौंदर्याभिरुचियों (सिंदूर) के प्रश्न
–अरुण माहेश्वरी छठ उत्सव और उसमें स्त्रियों के ललाट से नाक के अंत तक गाढ़े सिंदूर की लकीर, नदी में घुटनों तक पानी में खड़ी स्त्रियों का डूबते और उगते सूरज को अर्घ्य, केलों के गुच्छों और ठेकुआ को लेकर हिंदी के चंद लेखकों के बीच उठा विवाद सचमुच दिलचस्प तो लगा, लेकिन अस्वाभाविक नहीं लगा। यदि आस्तिकता और नास्तिकता …
Read More »रवींद्र के खिलाफ भयंकर घृणा अभियान
रवींद्र का दलित विमर्श-24 पलाश विश्वास रवींद्रनाथ टैगोर पर बचपन और किशोर वय में ही उत्तर भारत के कबीरदास और सूरदास के साहित्य का गहरा असर रहा है और संत सूफी साहित्यकारों के अनुकरण में ब्रजभाषा में उन्होंने भानुसिंह के छद्मनाम से बांग्ला लिपि में पदों की रचना की जो गीताजंलि से पहले की उनकी रचनाधर्मिता है और ऐसा …
Read More »महिमामंडन और चरित्रहनन के शिकार रवींद्रनाथ! फासीवादी राष्ट्रवाद के निशाने पर रवींद्र नाथ शुरू से हैं
रवींद्र का दलित विमर्श-22 पलाश विश्वास सवर्ण भद्रलोक विद्वतजनों ने नोबेल पुरस्कार पाने के बाद से लेकर अबतक रवींद्र के महिमामंडन के बहाने रवींद्र का लगातार चरित्र हनन किया है। रवींद्र साहित्य पर चर्चा अब रवींद्र के प्रेमसंंबंधों तक सीमाबद्ध हो गया है जैसे उनके लिखे साहित्य को वैदिकी धर्म के आध्यात्म और सत्तावर्ग के प्रेम रोमांस के नजरिये से …
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