कुबूलनामा ? हमारी पत्रकारिता के पतन की पराकाष्ठा देखिये। आज ‘अमर उजाला‘ की हैड लाइन है – ‘इमरान का कुबूलनामा, जंग हुई तो भारत से हार जायेगा पाकिस्तान’ और सब टाइटिल है – ‘पारंपरिक जंग के परमाणु युद्ध में बदलने की गीदड़ भभकी’ । खबर को भीतर पढ़ने पर इमरान को इस तरह कोट किया गया है – ‘मेरा मानना …
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हरिवंश बोले हमारा देश गंभीर आर्थिक परेशानियों में है आज के पत्रकार देश की आर्थिक स्थिति के बारे में सही बात लिखने से बचते हैं
वर्धा। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (Mahatma Gandhi International Hindi University, Wardha) में ‘पुरोधा संपादकों की कहानी: हरिवंश की जुबानी’ कार्यक्रम 27 से 29 मार्च 2019 तक आयोजित किया गया। हरिवंश ने हिंदी विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के पहले दिन 27 मार्च 2019 की शाम गणेश मंत्री के कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। दूसरे …
Read More »रामचंद्र छत्रपति : जिसको कुलदीप नैयर ने भारतीय पत्रकारिता के भीतर भगत सिंह की तरह देखा
रामचंद्र छत्रपति : जिसको कुलदीप नैयर ने भारतीय पत्रकारिता के भीतर भगत सिंह की तरह देखा पत्रकारिता के आईकॉन रामचन्द्र छत्रपति की शहादत से कब तक राष्ट्र नावाकिफ रहेगा पुष्पराज भारतीय पत्रकारिता को भारतीय लोकतंत्र और भारत के लोक की रक्षा करनी है तो इस पत्रकारिता को अपने आईकॉन चुनने होंगे। भगत सिंह के लेख छापने वाले प्रताप के संपादक …
Read More »जो पत्रकारों को चलाते हैं ये चुनाव उनके द्वारा संचालित था- राहुल देव
कंट्रोलिंग अथॉरिटी असरदार नहीं होगी तो समाचार चैनल, विज्ञापन के प्लेटफार्म बनकर रह जाएंगे– सतीश के सिंह मीडिया कॉनक्लेव में याद किए गए एसपी, ख़बरों की राजनीति पर जोरदार बहस दिल्ली । आधुनिक हिंदी टेलीविजन पत्रकारिता के जनक स्वर्गीय सुरेन्द्र प्रताप सिंह यानी एसपी सिंह को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (India International Center) में कल याद किया गया। 27 जून को …
Read More »पत्रकारिता का यह फार्मेट कल को न रहे पर पत्रकारिता रहेगी, खबरों की जरूरत हमेशा रहेगी- शैलेश
अगर कंटेंट के स्तर पर देखा जाए तो उसमें 1990 के बाद से ही बराबर गिरावट आती जा रही है, उसका कोई तय स्वरूप नहीं रह गया है। आज सवाल यह नहीं रह गया है कि खबर क्या है या नहीं है, अब तो जो लोग देखते हैं वही खबर है।
Read More »पत्रकारिता यदि व्यवसाय है तो क्या व्यवसाय में आदर्श की हत्या माफ होती है?
पत्रकारिता का सत्यानाश आखिर कब से शुरु हुआ? और कैसे पाक से नापाक की ओर इसने रुख किया? इसका सही-सही आकलन करना वाकई कठिन है। भारत में हिन्दी और अंग्रेजी पत्रकारिता की दशा में जमीन आसमान का फर्क है। हिन्दी पत्रकारिता गरीबी रेखा से नीचे की दिखती है और अंग्रेजी अमीरी रेखा से भी ऊपर की। वजह?
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