भारत एवं पाकिस्तान की न्यायपालिका के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाएगा 31 अक्टूबर
Tale of Two Judgments delivered In India and Pakistan
भोपाल, 01 नवंबर। “दिनांक 31 अक्टूबर 2018 भारत एवं पाकिस्तान की न्यायपालिका के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखा जाएगा। 31 अक्टूबर को दिल्ली उच्च न्यायालय एवं पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसले दिए हैं, उनकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।“
भोपाल में जारी एक वक्तव्य में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति फैजानुद्दीन, राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक एलएस हरदेनिया, प्रोफेसर डॉ. राम पुनियानी, राजेन्द्र कोठारी, पत्रकार चन्द्रकांत नायडू एवं बंगलौर के मानवाधिकार कार्यकर्ता व साहित्यकार डॉ. रंजीत ने आशा प्रकट की है कि इन दोनों निर्णयों का मुस्तैदी से पालन किया जाएगा।
यहां उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने एक ऐसी ईसाई महिला को दोषमुक्त घोषित किया है जो पिछले अनेक वर्षों से जेल में थी और ईशनिंदा कानून के अंतर्गत सजा भुगत रही थी। इसी तरह दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन 16 पुलिकर्मियों को दोषी करार देकर आजीवन कारावास की सजा सुनाई है जिन्होंने 40 से अधिक निर्दोष मुस्लिम युवकों की निर्मम हत्या की थी और उनकी लाशों को एक नहर में फेंक दिया था। इस जघन्य अपराध में शामिल पीएसी के पुलिसकर्मियों को सजा दिलाने में 31 वर्ष लगे।
इस संबंध में सबसे दिलचस्प बात यह है कि दोषी पुलिसकर्मियों के विरूद्ध तत्कालीन पुलिस अधीक्षक विभूति नारायण राय ने ही एफआईआर दर्ज करवाई थी। इसी एफआईआर के अंतर्गत की गई जांच एवं हत्याकांड में जीवित बचे एक युवक के साक्ष्य के आधार पर सजा हुई है। विभूतिनारायण राय बाद में उत्तर प्रदेश पुलिस के महानिदेशक भी रहे। राय ने साम्प्रदायिकता और पुलिस की भूमिका पर अनेक पुस्तकें लिखी हैं।
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