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भस्मासुर ! इस्लामिक आतंकवाद (Islamic terrorism) से सबसे ज्यादा पीड़ित इलाके और लोग वे हैं जहाँ खुद मुसलमान बहुतायत में हैं। कल का इराक विस्फोट मामला (Iraq blast case) फिर इसका प्रमाण है। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता (Terrorism has no religion), जैसी उक्तियों के आधार पर इस्लामिक आतंकवाद का विरोध करते हुए आप भगवा आतंकवाद (Saffron terrorism) का समर्थन करने लग जाते हैं। साम्प्रदायिक हिंसा वैमनस्य और घृणा धार्मिक आतंकवाद के जनक-जननी होते हैं। अमेरिकी-इजरायली गठजोड़ (American-Israeli alliance) की राजनैतिक और सैन्य कार्यवाहियों में इस वैमनस्य को देखा जा सकता है। यही वैमनस्य आरएसएस की राजनीति का आधार (The basis of RSS politics) है और इसी घृणा वैमनस्य और हिंसा से इस्लामिक आतंकवाद प्रेरित है। सभी में अपनी सत्ता के विस्तार का विचार है।
आप एक के विरोध में दूसरे का समर्थन कैसे कर सकते हैं ?
सिम्पिल टैस्ट है....
यदि आप ढाका आतंकी अटैक जैसी घटनाओं पर अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति में हर मुसलमान को गुनहगार पाते हैं, तो आप हिन्दू धर्म का नहीं, हिंदुत्व की उस राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं जो उन आतंकवादियों से प्रतिस्पर्द्धा के लिए हाथ-पांव मार रही है जिन्होंने वह नृशंस हत्याएं की हैं।
ढाका में आतंकी हमला (Terrorist attack in Dhaka) दुःख चिंता और आक्रोश की वाज़िब वजह है।
बांग्लादेश में 1971 के मुक्ति संघर्ष के विरोधी कट्टरपंथी नेताओं को हाल के वर्षो में हुई फांसियों और युवाओं में धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के प्रति बढ़े रुझान के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा हताशा में ताबड़तोड़ नृशंस हत्याएं की जा रही हैं, ताकि वे अपने होने और आईएस से जुड़ने का सन्देश दे सकें।
ढाका हमले के बाद पीएम मोदी ने बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना से बात करके सही संकेत दिए हैं।
भारत की चिंता उचित है। हमारे बहुधर्मी समाज पर ऐसी घटनाओं का बहुत प्रतिकूल असर होता है इसलिए हमें अपेक्षाकृत अधिक सतर्क और सक्रिय रहने के साथ अपने समाज में शांति सद्भाव तथा विश्वास को बढ़ाते रहना होगा।
मधुवन दत्त चतुर्वेदी
(मधुवन दत्त चतुर्वेदी की फेसबुक टिप्पणियों का समुच्चय)