हिंदुत्ववादी आतंकवाद की ही एक शक्ल है गौरक्षकों द्वारा बुलंदशहर में इन्स्पेक्टर सुबोध का क़त्ल
The murder of inspector Subodh in Bulandshahr is a form of Hindutva terrorism
केसरिया आतंकवाद
की ही एक शक्ल है गौरक्षकों द्वारा बुलंदशहर में इन्स्पेक्टर सुबोध का क़त्ल। मॉब-लिंचिंग और इस तरह के हमले बहुसंख्यक आतंकवाद क्यों नहीं है जबकि कश्मीर में पत्थरबाजी को आसानी से आतंकवाद के साथ जोड़कर देखा गया है !
बुलंदशहर हिंसा पर !
निर्विवाद तथ्य है कि शहीद इन्स्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह दादरी में अखलाक की साम्प्रदायिक हत्या के केस की विवेचना से सम्बन्धित थे। लिहाजा हिन्दू अतिवादियों के निशाने पर थे।
स्याना में गौ-हत्या की जिस घटना का ब्यौरा सामने आ रहा है, वह कई अहम सवाल उठाता है। मसलन ये कि गायों के शव मिले हैं। आहार या व्यापार के लिए गौ-कशी के बाद इस तरह के पूरे शव नहीं मिल सकते। इस उद्देश्य के लिए गौकश यदि मुसलमान हों तो किसी भी गैर के खेत को नहीं चुन सकते और वह भी वर्तमान वातावरण में हिन्दू बहुल इलाके में हिन्दू के खेत में तो बिलकुल नहीं। जाहिर है, इन गायों का वध आहार या गौमांस के व्यापार के लिए नहीं हुआ।
व्यापार में शव के हर हिस्से का व्यावसायिक मूल्य है। सिर्फ साम्प्रदायिक विद्वेष के लिए उनका इस्तेमाल हुआ। इसके लिए अवसर भी ऐसा चुना गया जब इसी जिले में मुसलमानों की बड़ी धर्म सभा हो रही थी। मामला ज्यादा बढ़ सकता था। लेकिन विवाद को जन्म देने में दोनों तरह से फायदा केसरिया राजनीति को था- मामला साम्प्रदायिक दंगे की शक्ल ले या पुलिस के खिलाफ जाए।
गायों की हत्या का कोई चश्मदीद नहीं है।
एफआईआर के विपरीत खेत मालिक और ग्राम प्रधान का कथन है कि लाशें मिली थीं। गौकशी की एफआईआर राजनैतिक है। थाने और पुलिस पर हमले वाली भीड़ भी स्वतःस्फूर्त नहीं बताई जा रही है। कुछ लोग बहके हुए हो सकते हैं, लेकिन सब नहीं थे, विशेषकर जो अच्छे हथियारों से लैस थे।
इन्स्पेक्टर को करीब से गोली मारी गयी है जो हत्या का इरादा जाहिर करती है। हत्या का प्रत्यक्ष आशय दादरी केस का प्रतिशोध प्रकट होता है। अब तक की ग्राउंड रिपोर्ट्स बताती हैं कि केसरिया आतंकवाद के द्वारा सब कुछ प्रायोजित और पूर्वनियोजित था। सरकार और सत्ताधारी जिस तरह हत्यारों को डिफेंड कर रहे हैं, वह खुद में बहुत कुछ बयान कर रहा है।
(लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।)
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