हिंदुत्व के फरेब का असली चेहरा बेपर्दा हो रहा

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hastakshep
16 Nov 2014
हिंदुत्व के फरेब का असली चेहरा बेपर्दा हो रहा

बंगविजय का एजेंडा मोदी की, संघ परिवार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और बंगाली हिंदुओं को शरणार्थी बताकर अहिंदुओं को देश निकालने के अल्टीमेटम बजरिये बंगाल में धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण केसरिया कारपोरेट राजनीति है ।

जबकि हकीकत यह है कि गैरनस्ली बंगालियों को ही नहीं, पूरब के बिहार ओड़ीशा, दंडकारण्य, सारे पूर्वोत्तर के लोगों और देवभूमि हिमालय के वाशिंदों के साथ रंगभेदी भेदभाव का हिंदू राष्ट्र बना रहा है संघ परिवार।

1947 के भारत विभाजन के शिकार पूर्वी बंगाल के शरणार्थी विदेशी घुसपैठिया और उनको देश निकाले का फतवा फिर भी गनीमत है कि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने गुरुवार को कहा कि केंद्र सरकार ने पाकिस्तान से आने वाले हिंदू और सिख शरणार्थियों की लंबे समय से चली आ रही मांग को मानते हुये उन्हें यहाँ की नागरिकता पाने के नियम में कई राहत देने की घोषणा की है। यह सुविधा पाकिस्तान के अलावा अफगानिस्तान के भी लोगों को समान रूप से मिलेगी। होम मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने गुरुवार को इस पर अपनी मंजूरी दी।

नए नियम के मुताबिक 31 दिसंबर 2009 से पहले भारत में आए पाकिस्तान और अफगानिस्तान के अल्पसंख्यक देश में नागरिकता के लिए ऑनलाइन की जगह हाथ से लिखे आवेदन भी दे सकते हैं। ये अब अपने आवेदन पासपोर्ट के साथ दे सकते हैं। गृह मंत्रालय की ओर से जारी बयान के अनुसार, "ऑनलाइन आवेदन जमा करने में दिक्कतों का सामना कर रहे योग्य आवेदक अपने आवेदन अपने पासपोर्ट के साथ सामान्य तरीके से दे सकते हैं।"

बयान के अनुसार, "आवेदक का दीर्घ अवधि वीजा (एलटीवी) हालाँकि जिलाधिकारी, कलेक्टर और उपायुक्त कार्यालय में आवेदन जमा किए जाने तक वैध रहना चाहिए।" कहा गया है कि नागरिकता नियम 2009 के नियम 38 के तहत संबंधित अधिकारियों के सामने दायर की गए हलफनामे पर प्रमाणपत्र की अस्वीकृति के बदले में विचार किया जाएगा।

इसमें यह भी कहा गया है कि माता-पिता के पासपोर्ट पर भारत आए अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे नागरिकता के लिए आवेदन भारत में उनके निवास के नियमित होने पर दे सकते हैं। बयान के अनुसार, "भारत में जन्म लेने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चे भारत में उनके रिहायश के नियमित होने जाने पर बिना पासपोर्ट के नागरिकता के लिए आवेदन दे सकते हैं। इन बच्चों को संबंधित जिलों में नियमन के लिए विदेशी पंजीयन कार्यालय (एफआरओ) में पंजीयन कराना होगा।"

तो 1947 के बाद आये भारत विभाजन के शिकार पूर्वी बंगाल के हिंदू शरणार्थियों (Victims of Partition of India, Hindu refugees of East Bengal) को चुनाव पूर्व मोदी के वायदे के बावजूद नागरिकता क्यों नहीं?

हिंदुत्व के फरेब का असली चेहरा बेपर्दा हो रहा है जो जितना हिंदुओं के खिलाफ है, उतना ही मुसलमानों और दूसरे तमाम धर्मों के खिलाफ है और जिसका देश दरअसल अमेरिका है या इजराइल।

यही नहीं, पश्चिम बंगाल में भी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान सत्ता समीकरण में विपक्ष में वोट डालने वालों को चुन चुनकर सत्ता की राजनीति ने उनकी नागरिकता खत्म करने की पुरजोर मुहिम चलायी और लाखों लोगों के नाम न केवल वोटर लिस्ट से काट दिये गये बल्कि हर जिले के डीएम ने ऐसे संदिग्ध बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कराये ।

उनमें से ज्यादातर लोग गिरफ्तारी के डर से इधर उधर हो गये हैं और जो बाकी भाग नहीं पाये, वे धर लिये गये और कहीं सैकड़ों तो कही हजारों की तादाद में बंगाल के हर जिले में जेल में सड़ रहे हैं और उन्हें जेल में रखने की भी अब जगह नहीं है।

विडंबना यह भी कि भारत के कानून और न्याय के मुताबिक सालों से उन्हें अभी तक अदालत में पेश करके अपनी भारतीय नागरिकता साबित करने का मौका नहीं दिया गया। राजनीति कि दृ्ष्टि से बंगाल में उनकी हैसियत पक्ष विपक्ष के शत्रु या मित्र है।

हालांकि वे लोग फिर भी बेहतर हैं कि जेल में हैं और अभी विदेशी साबित नहीं किये जा सके हैं। कम से कम उनका देश निकाला अभी हुआ नहीं है, जैसे कि बंगाल से बाहर।

गौरतलब है कि वे सारे लोग मुसलमान नहीं हैं और ज्यादातर हिंदू हैं, जिन्हें शरणार्थी बताते हुये अघाती नहीं है भाजपा।

मजे की बात यह भी है कि भाजपा के इस दावे से गदगद निखिल भारत शारणार्थी आंदोलन करने वाले नेता कार्यकर्ता अपने साइट में सोशल मीडिया में संघ परिवार की गोद में बैठे अपनी तस्वीरें पोस्ट करने से फूले नहीं समाते। अपना वोट बैंक संघ परिवार के हवाले सौंपकर मुसलमान असुरक्षित सौदेबाज नेताओं की तरह बंगाली शरणार्थी नेता भी संघ परिवार के जनसंहारी एजेंडा से अपने लोगों को बचा लेगे, ऐसे आसार कतई नहीं है।

पलाश विश्वास

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पलाश विश्वास । लेखक वरिष्ठ पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आंदोलनकर्मी हैं । आजीवन संघर्षरत रहना और दुर्बलतम की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के लोकप्रिय ब्लॉगर हैं। “अमेरिका से सावधान “उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठिकाना। पलाश जी हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

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