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व्यंग्य : और प्यारे ये कांग्रेस एक सर्कस है

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hastakshep
26 Jul 2011
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लोकतंत्र को उम्रकैद

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मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस को सर्कस क्यों कहा ?

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बरसों पहले राजकपूर की एक आत्मकथात्मक फिल्म आयी थी जिसका नाम था- मेरा नाम जोकर। इस फिल्म में नीरज का लिखा एक गीत था- ये भाई जरा देख कर चलो। इस गीत में जीवन दर्शन को व्यक्त करती कुछ पंक्तियां थीं-

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और प्यारे ये दुनिया एक सरकस है,

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और यहाँ सरकस में

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बड़े को भी छोटे को भी

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खरे को भी खोटे को भी

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दुबले को भी मोटे को भी

नीचे से ऊपर को

ऊपर से नीचे को

आना जाना पड़ता है

और रिंग मास्टर के कोड़े पै

कोड़ा जो भूख है

कोड़ा जो पैसा है

कोड़ा जो किस्मत है

तरह तरह नाच के दिखाना यहाँ पड़ता है

हीरो से जोकर बन जाना पड़ता है....................

अब यदि मणिशंकर अय्यर ने कांग्रेस को सर्कस कहा है तो क्या गलत कहा है। इस सरकस में भी दिवंगत अर्जुन सिंह जैसे बफादारों को भी गाना पड़ा था कि – यहाँ बदला बफा का बेबफाई के सिवा क्या है और नारायन दत्त तिवारी को भी राज्यपाल से द्वारपाल तक नीचे से ऊपर को ऊपर से नीचे को आना जाना पड़ता है। बेचारे नारायन दत्त तो ऐसे मचल रहे हैं जैसे स्कूल में कभी छोटे बच्चे टीका न लगवाने के लिए मचला करते थे कि नहीं लगवायेंगे टीका। वे भी अपनी बाँह छुपाये छुपाये कह रहे हैं कि नहीं कराएंगे डीएनए टेस्ट।

इस सरकस में कलमाड़ी की गाड़ी सीधे संसद से तिहाड़ के अगाड़ी तक चली जाती है। महाराष्ट्र के च्वहाण चूक कर दूसरे च्वहाण को तिजोरी की चाबी यह कहते हुए सौंप देते हैं कि – खा चुके पेट भर कर के हम साथियो, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो।

जगन मोहन को जब मुख्यमंत्री की विरासत नहीं मिलती तो सबसे ज्यादा इनकम टैक्स का टुकड़ा फेंक कर मैदान में खम्भ ठोकने लगते हैं। प्रणव मुखर्जी ममता बनर्जी के आगे दण्डवत हो जाते हैं और तुम्हीं हो माता पिता तुम्ही हो, तुम्ही हो बन्धु सखा तुम्ही हो गाने लगते हैं।

धर्मनिरपेक्षता की तूती बजाते-बजाते केरल में कांग्रेस मुस्लिम लीग और ईसाइयों की पार्टी केरल कांग्रेस के आगे इतना झुक जाती है कि मुख्यमंत्री भले ही चाण्डी हों पर मुस्लिम लीग तय करने लगती है कि उसके कोटे से कितने मंत्री होंगे और पाँचवें मंत्री को कौन सा विभाग मिलेगा।

हर प्रदेश में हर नेता की अपनी कांग्रेस होती है।

मध्य प्रदेश में अगर किसी ने किसी से राजनीतिक सम्बद्धता के बारे में पूछ लिया और उसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस उत्तर मिला तो वो फटाक से पूछेगा कि कौन सी कांग्रेस, दिग्विजय सिंह, की या सिन्धिया या कमल नाथ की, या पचौरी की, या श्री निवास तिवारी की ? सबकी अपनी अपनी कांग्रेस है। यहाँ विपक्ष की नेता जब उपचुनाव लड़ती हैं तो कांग्रेस का उम्मीदवार अपना पर्चा गलत भर कर उनके जीतने की राह आसान कर देता है, भले ही लोकतंत्र को मजबूत करने वाले इस कदम के लिए लोग उसे भ्रष्ट समझते रहें।

पजाब में मैडम दिलजीत कौर अकाली दल से कम लड़ती हैं पर महाराजा अमरेन्द्र सिंह से अधिक लड़ती हैं। एक कांग्रेस के हार जाने से दूसरी कांग्रेस की जीत हो जाती है। सबसे बड़े पद पर पार्टी में सबसे दूर के नौकरशाह को बैठा दिया जाता है जो लोकसभा का कोई चुनाव नहीं जीत सकता इसलिए अपने निवास के बारे में गलत बयानी करके उस राज्य से राज्यसभा में पहुँचता जहाँ वह कभी नहीं रहता। उसकी निष्ठा पार्टी में कम और वर्ल्ड बैंक में अधिक रहती है।

सरकार गठबन्धन के लिए जिन दलों पर निर्भर रहती है वे गाड़ी में अपना अपना पहिया लगाये रहते हैं इसलिए कोई पहिया छोटा और कोई बड़ा रहता है। इस सरकस में सिंह बाहर घूमते रहते हैं और रिंग मास्टर पिंजरे से बाहर नहीं निकलते। जब मंत्रीमण्डल में परिवर्तन होता है तो पार्टी के नेता कहते हैं कि प्रधानमंत्री खो-खो खेल रहे हैं। पार्टी के नटवर नागर नटवरलाल साबित होते हैं।

नेता इस रिंग से उस रिंग में कूदने के लिए तैयार रहते हैं क्योंकि सबको भरोसा है कि नीचे कुछ लोग जाल पकड़े हुये हैं और नीचे गिरेंगे तो उछल के और ऊपर जायेंगे इसलिए नीचे गिरने से कोई नहीं डरता।

पर राजकपूर की फिल्म के गीत के अनुसार भी ये शो तीन घंटे का है और ये तीसरा घंटा चल रहा है जिसके बाद रहता है जो कुछ वो खाली खाली पिंजरे हैं, खाली खाली कुसियां हैं, और खोयी हुयी याद्दाश्त है। अगर याद्दाश्त खो जाये तो पता ही नहीं चलता कि हम पहाड़ में रह रहे हैं कि तिहाड़ में रह रहे हैं।

बहरहाल सर्कस में ऊपरवाला वेरी गुड वेरी गुड, नीचे वाला वेरी बेड वेरी बेड, चल रहा है। पर कबीरदास कह गये हैं कि -

माटी कहे कुम्हार से तू क्या रूंदे मोय

इक दिन ऐसो आयगो मैं रूंदूंगीं तोय

वीरेन्द्र जैन

Virendra Jain वीरेन्द्र जैन, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व स्तंभकार हैं।

Virendra Jain वीरेन्द्र जैन, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व स्तंभकार हैं।

दलबदलुओं से सावधान ! Karnataka-Goa BJP, Congress | #HamariRai #hastakshep

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