जूतों के असली हकदार तो वे निर्लज्ज पक्षपाती पत्रकार हैं जिनके तमाम अखबार और टीवी चैनल राहुल गांधी के काश्मीर स्टैंड में यू-टर्न (U-turn in Rahul Gandhi’s Kashmir stand) बताकर कांग्रेस के विरुद्ध दुष्प्रचार (Propaganda against congress) के संघी अभियान में हिस्सा ले रहे हैं।
राहुल गांधी ही नहीं बल्कि देश के सभी लोकतंत्रवादियों, स्वतंत्रता प्रेमियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कश्मीर रियासत को जेल और यातना शिविर में तब्दील करने के लिए सरकार को धिक्कारा है।
पाकिस्तान का यूएन को पत्र लिखा जाना उनमें से किसी की इच्छा या कोशिश का नतीजा नहीं है, बल्कि पाकिस्तान को इस तरह कश्मीर मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण का मौका सरकार के वाहियात अमानवीय और सांप्रदायिक तरीकों ने दिया है।
किसी भी देश के न्यायप्रिय लोग इसलिए चुप नहीं रह सकते कि कोई उनके सन्दर्भ से कहाँ क्या कहेगा। कांग्रेस ने मुद्दे के अंतर्राष्ट्रीयकरण का विरोध किया है और खुद को कश्मीरी लोगों के उन सब अधिकारों के पक्ष में भी रखा है जो बाकी भारतीयों को हासिल है।

लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।
राहुल ने कोई यू-टर्न (Rahul’s U-turn) नहीं लिया। राहुल गांधी का दृष्टिकोण (Rahul Gandhi’s vision) सत्य न्याय और अहिंसा पर आधारित उस धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद (Secular nationalism based on true justice and non-violence) का है जो गांधी नेहरू की विरासत है।
बीजेपी में वाहियात बोली को प्रश्रय एक सोची समझी रणनीति के तहत मोदी शाह के स्तर से ही मालूम पड़ता है। साध्वी प्रज्ञा के लिए मोदी ने कहा था कि मैं उन्हें जीवन भर माफ़ नहीं करूँगा। लेकिन अभी तक उनकी ऊलजलूल टिप्पणियों को लेकर बीजेपी की अनुशासन समिति के पास कोई प्रस्ताव विचारणार्थ नहीं है।
कश्मीर के राज्यपाल सतपाल मलिक ने भी इन दौरान वाहियात भाषा के साथ कई बार मर्यादाओं का उल्लंघन किया है।
ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं जहाँ बीजेपी ने वाहियात बोलियों के लिए अपने लोगों को व्यवहार में पुरुस्कृत ही किया है। वस्तुतः मोदी शाह की जोड़ी खुद भी इसी रास्ते आगे आई है और वे ऐसे ही लोगों के झुंड को नेतृत्व देकर शीर्ष सत्ता पर काबिज हैं।
मधुवन दत्त चतुर्वेदी