नई दिल्ली, 25 सितंबर 2019. सारे देश में एनआरसी लाने का हौव्वा खड़ा करने वाले गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश जस्टिस मार्कण्डेय काटजू की इस टिप्पणी से सीख लेनी चाहिए, जिसमें उन्होंने कहा है कि अमेरिका वास्तव में आप्रवासियों का देश है, और यह एक कारण हैअमेरिका ने इतनी तेजी से प्रगति की है।
जस्टिस काटजू आजकल अमेरिका प्रवास (Justice Katju in America) पर हैं और अपने सत्यापित फेसबुक पेज पर सक्रिय हैं। वह लगातार छोटी-छोटी टिप्पणियों के जरिए देश की बड़ी समस्याओं पर सरकार और समाज का ध्यान आकृष्ट कर रहे हैं और लगातार बता रहे हैं कि भारत की तरक्की का रास्ता समाज की एकजुटता से होकर गुजरता है। उन्होंने थोड़ी देर पहल अपने फेसबुक पेज पर संक्षिप्त सी पोस्ट की।
पोस्ट के मुताबिक इस समय फ़्रेमोंट, कैलिफ़ोर्निया में 10 बजे हैं और वह शाम टहलने गए। इस दौरान वह कुछ ऐसे लोगों से मिले, जिन्हें वो समझ रहे थे कि वे भारतीय हैं। लेकिन वे बांग्लादेशी थे। उनमें से एक युवा महिला ने बताया कि उनके पति एक भारतीय कंपनी में काम कर रहे हैं।
उन्होंने लिखा कि फ़्रेमोंट, उत्तरी कैलिफोर्निया का खाड़ी क्षेत्र (Bay Area) है और अधिकांश आईटी कंपनियां यहां स्थित हैं। Fremont में बहुत सारे भारतीय, पाकिस्तानी और बांग्लादेशी हैं जो यहाँ रहते हैं।
“युवती के साथ उसके बूढ़े माता-पिता भी थे, जो ढाका से आए थे। पिता ने मुझे बताया कि वह एक सेवानिवृत्त इंजीनियर हैं।“
मैंने अपनी टूटी हुए बंगला में उनसे बात की, और वे खुश हुए। मैंने पूछा “बंगला बूझते पारें” (क्या आप बंगला जानते हैं?) और उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि यह उनकी मातृभाषा है।
थोड़ी देर बोलने के बाद मैंने कहा “अशी, आबर देखा होब”, बाद में मिलते हैं, और मैं चल पड़ा।
आगे जो जस्टिस काटजू ने लिखा है वह वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देने वाले देश के संकीर्ण सोच के नेताओं के लिए संदेश है। उन्होंने लिखा कि यह (अमेरिका) वास्तव में आप्रवासियों का देश है, और यह एक कारण है कि अमेरिका ने इतनी तेजी से प्रगति की है। इसने विभिन्न देशों के लोगों का स्वागत किया, जिनमें से प्रत्येक ने इसकी प्रगति में योगदान दिया। इससे पता चलता है कि विविधता, एक बाधा बनने की बजाय, प्रगति के लिए एक बड़ा इंजन हो सकता है, बशर्ते सभी के साथ समान व्यवहार किया जाए।
धन्यवाद जस्टिस काटजू, काश हमारे हुक्मरान भी “अनेकता में एकता” के भारत की आत्मा को समझते।
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