Advertisment

योगीराज : आखिर एक वाल्मीकि शौचालय बनवा ही कैसे सकता है?!

author-image
hastakshep
09 Dec 2017
New Update
बियाडीआई चोंचलेबाजी

Advertisment
तापीश मैन्दोला

Advertisment

उन्होने कहा- हम सब बराबर हैं ।

Advertisment

मैंने पूछा – कैसे ?

Advertisment

उन्होने कहा – संविधान में लिखा है

Advertisment

मैंने फिर कुछ नहीं कहा और चुप रहा। 

Advertisment

उत्तर प्रदेश, कुछ लोग इसे उत्तम प्रदेश भी कहते हैं!, के  ज़िला मैनपुरी , पोस्ट अजीतगंज, ग्राम टिकसुरी की ये घटना है। यहाँ के एक वाशिंदे श्री बाबू जो जाति से वाल्मीकि हैं और भारतीय सेना से रिटायर हैं अपने तीन बेटों, तीन बहुओं और पोते-पोतियों के साथ एक फूस के  झोपड़े, एक तिरपाल की झुग्गी और एक इंदिरा आवास में किसी तरह दिन काट रहे हैं। ये कुनबा अपने मुखिया की पेंशन और बाकियों की अनिश्चित मजदूरियों पर टिका हुआ है।

Advertisment

अभी इसी साल जुलाई महीने में उनके बेटे विजय कुमार को  ज़िला मैजिस्ट्रेट की अदालत से अपनी पुश्तैनी जगह पर काबिज़ रहने का अधिकार पत्र हासिल हुआ था। उन्हे लगा कि वे एक शौचालय और स्नान घर का निर्माण तो करवा सकते है। जाहिर है कि भारत सरकार के ‘शौचालय शोर’ ने भी उनकी हिम्मत बढाई होगी लेकिन उन्हे शायद मालूम न था कि हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और होते हैं। गाँव के एक ब्राहमण ‘सज्जन’ ने एक दूसरे सजातीय बन्धु की मदद से, जो कि बीजेपी विधायक के बेहद करीबी हैं, स्थानीय पुलिस को बुलवा कर 8 नवम्बर को निर्माण कार्य ये कहते हुए बंद करवा दिया कि ‘ये विवादास्पद निर्माण है और इससे शांति भंग होने की आशंका है’।

          श्री बाबू ने बताया कि पहले भी उनको इस जगह से बेदखल करने के लिये तरह-तरह से दबाव डाला जाता रहा है। छुआछूत, गाली-गलौच और भेद भाव तो आम बात है।  कुछ वक़्त पहले जब उन्होने पानी के लिये हैण्ड पंप की बोरिंग करवानी चाही तो उसे भी रुकवाया गया था। हालाँकि वो इस जगह पर तब से हैं जब देश आज़ाद भी नहीं हुआ था लेकिन उन पर ग्राम सभा की ज़मीन, गटा  संख्या 371  पर, अवैध कब्ज़ा करने का आरोप लगाते हुए 122 -बी के तहत मुकदमा कायम किया गया जिससे काफ़ी मुश्किलों से निज़ात मिली और ज़िला मैजिस्ट्रेट की अदालत से इसी साल जुलाई महीने में राहत मिल पाई। ऐसा भी नहीं है कि इस जगह पर श्री बाबू और  उनका परिवार ही रह रहा हो। सच तो ये है कि यहाँ पर एक पूरा टोला बसा हुआ है जिसकी तस्दीक पूर्व लेखपाल की रिपोर्ट में भी की गई है।           74 वर्ष के श्री बाबू के सामने आज बेघर होने का खतरा पैदा कर दिया गया है। उन्हे विश्वास है कि सांस और दिल की मरीज़ उनकी पत्नी का भी इसी चिंता के करण  23 नवम्बर 2017  को देहांत हो गया। हर तरह से नाउमीद इस बुजुर्ग की सूनी आँखों में शोक, निराशा और गुस्सा यही सब दिखाई देता है।publive-image
ज़िला मैजिस्ट्रेट के आदेश की कॉपी।

 

Advertisment
सदस्यता लें