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स्वाधीनता की महायात्रा : इतिहास से नेहरूजी को मिटाकर, मोदी को कुछ नहीं मिलेगा बल्कि ऐसा करने से वे एक एहसानफरामोश नेता समझे जायेंगे

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क्यों आजाद हिंद फौज के सैनिकों का मुकदमा तो हिंदू राष्ट्रवादियों ने लड़ा था, पं. नेहरू ने नहीं?

स्वतंत्रता दिवस (Independence day) के अवसर पर यदि हम अभी तक की महायात्रा का मूल्यांकन करते हैं तो हमारे मस्तिष्क में गरीबी, भुखमरी, निरक्षरता, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव और कमजोर वर्ग के लोगों को इज्जत के साथ न रहने की स्थितियां नजर आती हैं। इसके अतिरिक्त हमारे मस्तिष्क में यह विचार भी आता है कि कुछ लोग योजनाबद्ध तरीकों से यह बताने की कोशिश करते हैं कि इन अड़सठ सालों में देश में कुछ भी नहीं हुआ है। इस तरह की बातें करने वालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सबसे आगे हैं।

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नरेन्द्र मोदी एक ऐसा चित्र खींचते हैं जैसा कि इन छ: दशकों में देश में विकास होना तो दूर, देश लगभग छिन्न-भिन्न हो गया है। वे इस तरह का दावा करते हैं कि आजादी के बाद विकास तो हुआ ही नहीं है अवनति के स्पष्ट लक्षण दिखाई दे रहे हैं।

यह स्वीकार करने में किसी प्रकार की हिचक नहीं होनी चाहिए कि हम इन वर्षों में और ज्यादा प्रगति कर सकते थे और देश की सम्पत्ति का समतामूलक वितरण भी कर सकते थे। हमारी आबादी का एक बड़ा भाग को जो अभाव की जिंदगी में जी रहा है उनके लिए बेहतर स्थितियां निर्मित की जा सकती थीं।

आजादी के बाद भारत ने क्या हासिल किया What did india achieve after independence

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इस भूमिका के बाद हम यह देखने की कोशिश करेंगे कि हमने इन वर्षों में क्या हासिल किया है?

एक लंबे और कठिन संघर्ष के बाद भारत ने आजादी पाई है। आजादी  के आंदोलन का नेतृत्व राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने किया था। कांग्रेस ने इस आंदोलन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। हमारे देश की आजादी  का आंदोलन विश्व के इतिहास में हुए आजादी के आंदोलनों में सबसे बड़ा आंदोलन था।

यह दु:ख की बात है कि आजादी  जब मिली उस समय देश को अत्यधिक कठिन परिस्थितियों से गुजरना पड़ रहा था। देश के दो टुकड़े हुए।

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विभाजन के लिए अंग्रेजों की ''फूट डालो और राज करो'' की नीति विशेष रूप से उत्तरदायी थी। विभाजन के बाद लाखों की संख्या में शरणार्थी पाकिस्तान छोड़कर भारत आए और उसी तरह लाखों शरणार्थी भारत छोड़कर पाकिस्तान गए। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने इस तरह के शरणार्थियों का न सिर्फ पुनर्वास करवाया बल्कि उन्हें जहां तक संभव हो सका सहायता भी दी।

आजादी  के बाद दूसरी चुनौती यह थी कि हम शासन और विकास का कौन सा राष्ट्र चुनें। खासकर, उद्योग, शिक्षा और विदेशी नीति के क्षेत्र में। सामाजिक कल्याण के लिहाज से कौन सी रणनीति अपनाई जाए? यहां यह स्मरण रखना भी आवश्यक है कि हमारे साथ-साथ अनेक देशों को भी आजादी  मिली। इसमें श्रीलंका, बर्मा, चीन, वियतनाम आदि देश शामिल हैं।

धर्मनिरपेक्ष प्रजातंत्र के रास्ते को हमने अपनाया। इसका आधार सभी को चुनाव में मतदान देने का अधिकार था। चुनाव पर आधारित व्यवस्था को स्थापित करना एक बड़ा कठिन काम था। परंतु हमने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आधार पर बने समाज के मॉडल को अपनाया। उस समय तक समाज को बांटने वाली सांप्रदायिक ताकतें उतनी मजबूत नहीं थीं। आजादी  के साथ-साथ हमारे देश में रह रहे सांप्रदायिक मुस्लिम नेता पाकिस्तान चले गए। उस समय हिंदू संप्रदायवादियों की शक्ति अत्यधिक क्षीण थी। कम्युनिस्ट और सोशलिस्ट उस समय महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्तियां थीं। कम्युनिस्ट उस समय देश का सबसे बड़ा प्रतिपक्ष समूह था।

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नेहरू के नेतृत्व में शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान और तकनीकी का आधार, तार्किक समझ और धर्मनिरपेक्षता को बनाया गया। औद्योगिक क्षेत्र में भी हमने महत्वपूर्ण निर्णय लिए। देश के उद्योगपतियों ने मिलकर एक योजना बनाई जिसे बंबई योजना के नाम से जाना जाता है। इस योजना का मुख्य आधार यह था कि देश के पूंजीपति मिलकर भी औद्योगीकरण के लिए आवश्यक अधोरचना नहीं बना सकते हैं।

इस बीच यह भी एक वास्तविकता थी कि नेहरू सोवियत संघ मॉडल से बहुत प्रभावित थे। उनकी मान्यता थी कि सार्वजनिक क्षेत्र के आधार पर ही हमारे देश का आर्थिक विकास  हो सकता है। सोवियत संघ में भी इसी बात पर जोर था। सोवियत मॉडल से प्रभावित होने के बावजूद हमारे देश में मिश्रित अर्थव्यवस्था की नींव डाली गई।

अनाज के उत्पादन में बढ़ोतरी के साथ-साथ हमने दूध के उत्पादन में भी बढ़ोतरी की, जिससे देश की जनता को पोषण प्राप्त होने लगा और तपेदिक जैसी बीमारियों पर हमने विजय पाई। शिक्षा के क्षेत्र में भी हमने महत्वपूर्ण प्रगति की है नेहरू जी ने विज्ञान, तकनीकी शिक्षा पर बहुत जोर दिया है। देश में अनेक आईआईटी खोले गए जिससे हमें वैज्ञानिक लोगों की फौज तैयार करने का अवसर मिला। आईआईटी ने वैज्ञानिक ज्ञान और वैज्ञानिक समझ, अनुसंधान के माध्यम से देश की समस्याओं का हल करने के भारी अवसर प्रदान किए हैं। इसके साथ ही अनेक तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में नए-नए संस्थान खोले गए। सूचना तकनीकी के विकास में भी हमने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इन सारी योजनाओं के कारण हमने अन्य देशों की तुलना में महत्वपूर्ण प्रगति की है।  स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी हम काफी पिछड़े हुए थे। सरकार द्वारा अस्पतालों का संचालन अपने हाथों में लेने से कई किस्म के टीकाकरण के कार्यक्रम प्रारंभ किए गए। इन कार्यक्रमों की बदौलत हमने मलेरिया समेत अनेक खतरनाक बीमारियों पर विजय पाई। जहां हमने स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी प्रगति की वहीं हमें इस बात को भी स्वीकार करना होगा कि जनसंख्या के एक बहुत बड़े भाग तक स्वास्थ्य और शिक्षा के लाभ अभी तक नहीं पहुंचे हैं। यह दु:ख की बात है कि वर्तमान सरकार के सत्ता में आने से इन क्षेत्रों को जितने संसाधनों की आवश्यकता थी उनमें कमी की है।

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वर्तमान सरकार की नीतियों के कारण भूमण्डलीयकरण और निजी क्षेत्रों को बढ़ावा मिला है। इससे हमने अभाव में जीने वाले लोगों के लिए और दिक्कतें पैदा कर दी हैं।

हमारी महायात्रा में देश में ऐसा वातावरण पैदा करना भी शामिल है जिसमें आम आदमी समानता और इज्जत के वातावरण में अपने मानवीय अधिकारों को सुरक्षित रख सके। हमारे समाज में आज भी जाति  और लिंग की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज भी उच्च जाति के पुरुषों को ज्यादा अधिकार और सुविधाएं प्राप्त हैं।

आजादी के आंदोलन के दौरान ही जोतिबा फुले, डॉ. अंबेडकर और पेरियार, रामास्वामी नइकर ने इस तरह के आंदोलन चलाए थे जिससे समता पर आधारित समाज का निर्माण हो सके। सरकार ने छुआछूत की समाप्ति के लिए जाति आधारित भेदभाव और दलितों पर ज्यादतियों को रोकने के लिए कानून बनाए। अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए अनेक सुविधाएं प्रदान की गईं। धीरे-धीरे जाति आधारित समाज कमजोर हो रहा है। शिक्षा और उद्योग के क्षेत्र में काम के अवसर निर्मित हुए हैं। इनसे भी हमारे देश की प्रगति में महत्वपूर्ण सहायता मिली। यह भी एक वास्तविकता है कि जब भी जातिविभाजित समाज के दुष्परिणामों के खिलाफ आवाज उठाई गई तो देश के कुछ आसामाजिक तत्वों ने उस आवाज को दबाने का प्रयास किया है।

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इन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमने आधुनिक भारत को धर्मनिरपेक्षता की नींव पर खड़ा किया है। यह धर्मनिरपेक्षता की नीति के ही कारण है कि हमारे देश में एक मजबूत प्रजातांत्रिक व्यवस्था कायम हो सकी है। हमारे देश में समय पर चुनाव हो रहे हैं, पंचायत से लेकर पार्लियामेंट तक।

क्या वे जो यह कहते हैं कि पिछले अड़सठ साल में कुछ भी नहीं हुआ है उन्हें हमारे पड़ोस के देशों पर नजर डालना चाहिए तो उन्हें दिखेगा कि इन देशों में प्रजातंत्र और धर्मनिरपेक्षता लगभग तहस-नहस हो गई है। पाकिस्तान की स्थिति से हम वाकिफ हैं। एक लंबे संघर्ष के बाद बांगलादेश में धर्मनिरपेक्ष ताकतें मजबूत हो रही हैं। परंतु वे कब ताश के पत्तों के समान लडख़ड़ा गिर जायेंगी इसकी गारंटी नहीं है। नेपाल इतने वर्षों के बाद भी अपना संविधान नहीं बना सका है। बर्मा में आज भी सैनिक शासन है। श्रीलंका में नस्लवादी संघर्ष ने उस देश की नींव को भी कमजोर कर दिया है। इन सबके बीच क्या यह स्वयं अपने आप में एक सफलता नहीं है कि हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता पर आधारित प्रजातांत्रिक व्यवस्था कायम है?

Nehru also laid the foundation of the Non-Aligned Movement

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L. S. Hardenia विदेश नीति के क्षेत्र में भी हमने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। जवाहरलाल नेहरू ने एशिया और अफ्रीका के राष्ट्रों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया था। 1946 में दिल्ली में एशियन राष्ट्रों का सम्मेलन हुआ था (The Asian Nations Conference was held in Delhi in 1946) जिसका उद्घाटन महात्मा गांधी ने किया था।

1956 में इंडोनेशिया के नगर बांडुंग में एशिया-अफ्रीका के देशों का सम्मेलन (Conference of countries of Asia-Africa in Bandung, Indonesia) हुआ जिसकी 60वीं  वर्षगांठ अभी हाल में मनाई गई। इस अवसर पर बांडुंग में बड़ा सम्मेलन आयोजित किया गया था, जिसमें भारत का प्रतिनिधित्व सुषमा स्वराज ने किया था। परंतु उन्होंने अपने भाषण में नेहरूजी का नाम तक नहीं लिया। इससे यह पता लगता है कि आज का हमारा सत्ताधारी दल कितने संकुचित विचार रखता है। यद्यपि सुषमा स्वराज ने नेहरूजी का नाम नहीं लिया परंतु बाकी सभी देशों के प्रतिनिधियों ने नेहरूजी को ही एशियाई-अफ्रीका की एकता का जनक माना। इसके साथ ही नेहरूजी ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव भी रखी

आज मोदी जो मेक इन इंडिया की बात करते हैं तो यह मेक इन इंडिया संभव ही नहीं होता यदि भारत में पिछले वर्षों में विज्ञान, तकनीकी, कृषि, शिक्षा आदि के क्षेत्र में प्रगति नहीं हुई होती। नेहरूजी द्वारा रखी गई नींव पर ही नरेन्द्र मोदी अपने विशालकाय महल का निर्माण करना चाहते हैं। इतिहास से नेहरूजी को मिटाकर, मोदी को कुछ नहीं मिलेगा बल्कि ऐसा करने से वे एक एहसानफरामोश नेता समझे जायेंगे

एल.एस. हरदेनिया

(मूलतः 2015-08-13 को प्रकाशित)

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