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वैज्ञानिक शोध से यह तो प्रमाणित था कि मधुमेह होने से टीबी-रोग होने का ख़तरा 2-3 गुना बढ़ता है और मधुमेह नियंत्रण भी जटिल हो जाता है, पर "लेटेंट" (latent) टीबी और मधुमेह के बीच सम्बंध पर आबादी-आधारित शोध अभी तक नहीं हुआ था। 11-14 अक्टूबर 2017 को हुए अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन में, लेटेंट-टीबी और मधुमेह सम्बंधित सर्वप्रथम आबादी-आधारित शोध के नतीजे प्रस्तुत किये गए.
लेटेंट टीबी और टीबी रोग में क्या अंतर है?
What is the difference between latent TB and TB disease?
टीबी कीटाणु (बैक्टीरिया) वायु के ज़रिए संक्रमित होता है। संक्रमित व्यक्ति के फेफड़े में टीबी किटाणु लम्बे समय तक बिना रोग उत्पन्न किये रह सकते हैं। इसी को लेटेंट टीबी कहते हैं। पर कुछ लोगों में लेटेंट टीबी, टीबी-रोग उत्पन्न करता है जिसकी पक्की जाँच और पक्का इलाज आवश्यक है।
लेटेंट टीबी से संक्रमित व्यक्ति अन्य लोगों को संक्रमित नहीं कर सकते हैं। फेफड़े के टीबी-रोग से ग्रसित लोगों को, यदि उचित इलाज न मिले, तो उनके द्वारा ही टीबी संक्रमण फैलता है। टीबी-रोग के उचित इलाज आरम्भ होने के चंद सप्ताह बाद ही (जब रोगी की जाँच स्प्यूटम/ बलगम नेगेटिव आए) तो टीबी संक्रमण फैलने का ख़तरा नहीं रहता।
लेटेंट टीबी और मधुमेह पर सर्वप्रथम आबादी-आधारित शोध
The first population-based research on latent TB and diabetes
लेटेंट टीबी और मधुमेह के बीच क्या सम्बन्ध है, इस विषय पर, वैश्विक स्तर पर आबादी पर आधारित सर्वप्रथम शोध हुआ। इस शोध से यह सिद्ध हुआ कि मधुमेह होने से सिर्फ़ टीबी-रोग होने का ही ख़तरा नहीं बढ़ता, बल्कि लेटेंट टीबी का ख़तरा भी अनेक गुना बढ़ता है। यदि मधुमेह नियंत्रण उचित प्रकार से न किया जा रहा हो तो टीबी होने का ख़तरा और अधिक बढ़ जाता है.
लॉरेटो कॉन्वेंट कॉलेज की सेवानिवृत्त वरिष्ठ शिक्षिका और आशा परिवार एवं सीएनएस द्वारा संचालित स्वास्थ्य को वोट अभियान से जुड़ी शोभा शुक्ला ने बताया कि भारत में वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक लेटेंट टीबी से संक्रमित लोग हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि 40-50 करोड़ लोगों को लेटेंट टीबी हो सकती है। भारत में सबसे अधिक टीबी रोगी भी हैं और अनुमानित 6.91 करोड़ लोगों को मधुमेह है। जन स्वास्थ्य की दृष्टि से यह अत्यंत आवश्यक है कि टीबी और मधुमेह कार्यक्रमों में तालमेल बढ़े जिससे कि मधुमेह के साथ जीवित लोग - टीबी-रोग और लेटेंट-टीबी - दोनों से मुक्त रहें।
फेफड़े के रोग सम्बंधी 48वें अन्तर्राष्ट्रीय अधिवेशन (48th Union World Conference on Lung Health) में लेटेंट टीबी और मधुमेह पर हुए इस शोध को सर्वप्रथम प्रस्तुत किया गया।
अमरीका के स्टान्फ़र्ड विश्वविद्यालय के चिकित्सा विभाग के शोधकर्ता डॉ लियोनार्डो मार्टिनेज़ ने सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस) को बताया कि मधुमेह नियंत्रण यदि उचित ढंग से न किया जा रहा हो तो लेटेंट टीबी होने का ख़तरा अत्याधिक बढ़ जाता है। इसलिए जन स्वास्थ्य के लिए हितकारी है कि जिन लोगों में मधुमेह नियंत्रण संतोषजनक न हो उनको लेटेंट टीबी की जाँच उपलब्ध करवाई जाए और यदि उनको लेटेंट टीबी हो तो लेटेंट टीबी का उपयुक्त इलाज (आइसोनियाजिड प्रिवेंटिव थेरेपी या आईपीटी) भी मुहैया करवाया जाए। यदि किसी व्यक्ति को लेटेंट टीबी से बचाया जाएगा तो उसे टीबी रोग होने का ख़तरा भी नहीं होगा - ज़रा ग़ौर करें कि यह जन स्वास्थ्य के लिए, और टीबी मुक्त दुनिया के सपने को पूरा करने की दिशा में भी, कितना महत्वपूर्ण क़दम होगा।
जब तक करोड़ों लोग लेटेंट टीबी से ग्रसित रहेंगे तो उनमें से कुछ को टीबी रोग होता रहेगा और जन स्वास्थ्य के समक्ष चुनौती बनी रहेगी। यदि टीबी मुक्त दुनिया का सपना पूरा करना है तो अन्य ज़रूरी जांच-उपचार आदि कार्यक्रमों के साथ-साथ लेटेंट टीबी की पक्की जाँच और पक्का इलाज भी उपलब्ध करवाना होगा।
डॉ लियोनार्डो ने बताया कि यह शोध 4215 लोगों पर अमरीका में हुआ जिनमें से 776 लोगों को मधुमेह था, 1441 लोगों में मधुमेह से पूर्व वाली स्थिति थी (प्री-डायबिटीज/ pre-diabetes), और 1998 लोगों को मधुमेह नहीं था। इस शोध से यह प्रमाणित हुआ कि उन लोगों की तुलना में जिन्हें मधुमेह न हो, मधुमेह के साथ जीवित लोगों में लेटेंट टीबी होने का ख़तरा अधिक होता है। जिन लोगों को मधुमेह न था उनमें लेटेंट टीबी का दर 4.1% था, जिन लोगों को प्री-डायबिटीज थी उनमें लेटेंट टीबी का दर 5.5% था, और जिन लोगों को मधुमेह था उनमें लेटेंट टीबी का दर 7.6% था। लेटेंट टीबी होने का ख़तरा सबसे अधिक उन लोगों को था जिन्हें मधुमेह तो था पर उनका मधुमेह नियंत्रण उचित ढंग से नहीं हो रहा था।
इस शोध से यह भी ज्ञात हुआ कि जिन लोगों को पता ही नहीं था कि उन्हें मधुमेह है, जिसके कारणवश उनका मधुमेह अनियंत्रित था, उनमें से 12% को लेटेंट टीबी थी। यह मधुमेह दर सामान्य आबादी से 3-4 गुना अधिक था।
मधुमेह नियंत्रण से, न केवल व्यक्ति स्वस्थ रहता है और मधुमेह सम्बंधित स्वास्थ्य पर पड़ने वाले कुप्रभावों के खतरों को कम करता है, बल्कि लेटेंट टीबी होने के ख़तरे में भी कमी आती है। मधुमेह नियंत्रण नि:संदेह स्वास्थ्य के लिए हितकारी है।
लेटेंट टीबी को नज़रंदाज़ किया तो नहीं होंगे लक्ष्य पूरे
भारत समेत 190 से अधिक देशों ने 2030 तक 17 सतत विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals/ SDGs) को पूरा करने का वादा किया है। इन लक्ष्यों में टीबी समाप्त करना और मधुमेह से होने वाली असामयिक मृत्यु दर में एक-तिहाई कमी लाना शामिल है। यदि 2030 तक टीबी समाप्त करना है तो एक-तिहाई आबादी जो लेटेंट टीबी से संक्रमित है उसको नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता क्योंकि लेटेंट टीबी से ही तो टीबी रोग होगा! लेटेंट टीबी से संक्रमित लोगों को आइसोनियाजिड प्रिवेंटिव थेरेपी (आईपीटी) प्राप्त होनी चाहिए जिससे कि उनको टीबी होने का ख़तरा अत्यंत कम हो सके। यदि 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करना है तो ठोस जन हितैषी क़दम तो उठाने ही होंगे।
टीबी और मधुमेह कार्यक्रमों में साझेदारी आवश्यक
Partnership in TB and Diabetes Programs Required
मेक्सिको देश जहाँ अधिक वज़न के कारणवश होने वाला मधुमेह अत्याधिक है और टीबी दर भी चिंताजनक है, वहाँ के स्वास्थ्य विभाग के डॉ पाब्लो अंतोनियो क़ुरी मोरालेस ने सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस) को बताया कि मधुमेह और टीबी नियंत्रण कार्यक्रमों में समन्वयन अत्यंत आवश्यक है। समाज के हाशिए पर रह रहे लोग और सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर तबके टीबी का अधिकांश प्रकोप झेल रहे हैं। परंतु अधिक वज़न के कारणवश हुए मधुमेह से वो लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं जिनकी जीवनशैली अस्वस्थ है। इन चुनौतियों के बावजूद, टीबी और मधुमेह कार्यक्रमों को संयुक्त रूप से कार्य करना होगा, आपसी तालमेल और विचार-विमर्श से नीति बनानी होगी और उसको मिल कर क्रियान्वित करनी होगी जिससे कि दोनों रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के नतीजे सुधरें।
मधुमेह और दवा प्रतिरोधक टीबी : कोई सम्बन्ध?
Diabetes and Drug Resistant TB: Any Relations?
मेक्सिको के राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के प्रमुख डॉ मार्टिन कास्तेलानोस जोया ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की टीबी अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि मेक्सिको में हर 1 में से 4 टीबी रोगी को मधुमेह है और हर 1 में से 2 दवा-प्रतिरोधक टीबी (मल्टी-ड्रग रेज़िस्टंट टीबी/ एमडीआर-टीबी) के रोगी को मधुमेह है।
डॉक्टर जोया ने कहा कि मधुमेह और टीबी नियंत्रण में कार्यरत सभी वर्गों को एकजुट होना होगा जिससे कि समन्वयित ढंग से अधिक प्रभावकारी रोग नियंत्रण हो सके। टीबी और मधुमेह कार्यक्रमों की योजना संयुक्त रूप से बने, प्रशिक्षण और मूल्यांकन आदि मिलजुल कर हो, कार्यक्रम सम्बंधी आँकड़े और अन्य आवश्यक रिपोर्ट आपस में साझा हों जिससे कि टीबी और मधुमेह दोनों के दरों में गिरावट आए और जन स्वास्थ्य लाभान्वित हो।
मेक्सिको में देश-व्यापी नीति है कि हर टीबी रोगी की मधुमेह जाँच हो और हर मधुमेह रोगी की टीबी जाँच। जिन लोगों को मधुमेह और टीबी दोनों होता है उनको टीबी और मधुमेह का इलाज साथ-साथ मिलता है। ऐसे लोगों का ग्लायसीमिक टेस्ट (Glycaemic test) हर हफ़्ते होता है और इन लोगों का मधुमेह इलाज यदि इंसुलिन आधारित हो तो बेहतर रहता है।
2003 से 2016 के बीच मेक्सिको में जिन लोगों को टीबी और मधुमेह दोनों है उनका दर 287% बढ़ गया है जो अत्यंत चिंताजनक है। इन लोगों के सफल इलाज का दर 89% है।
डॉक्टर जोया ने कहा कि हर टीबी और मधुमेह रोगी तक उचित सेवाओं का पहुँचना अत्यंत आवश्यक है और सफल इलाज दर में बढ़ोतरी भी वांछनीय है।
आशा है कि 2017 विश्व मधुमेह दिवस के उपलक्ष्य में सरकारें मधुमेह और टीबी कार्यक्रमों में साझेदारी बढ़ाएँगी जिससे कि 2030 तक टीबी उन्मूलन और मधुमेह से होने वाली असामयिक मृत्यु दर में एक-तिहाई गिरावट आ सके।
(विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक द्वारा पुरुस्कृत, बाबी रमाकांत वर्त्तमान में सीएनएस (सिटीजन न्यूज़ सर्विस) के नीति निदेशक हैं।