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Who is the culprit: The highest white collar criminals are in the middle class
औरतों पर बढ़ रहे शारीरिक हमले (Physical assaults on women) और खासकर बलात्कार की घटनाएं (incidences of rape) रोकने में केन्द्र-राज्य सरकारों की असफलता के साथ सबसे बड़ी कमजोरी है मजबूत स्त्रीवादी आंदोलन (Feminist movement) का अभाव। भारत में महिलाओं के हकों के लिए अहर्निश लड़ने वाले स्त्रीवादी थिंकरों और संगठनों के नेटवर्क के अभाव को इन दिनों हम सब महसूस कर रहे हैं।
भारत में महिलाओं पर बढ़ते हमलों के कारण
भारत में औरतो पर बढ़ते हमलों के कई कारण हैं। पहला कारण है- औरतों के बारे में शिक्षितों में एक खास किस्म का यूटोपिया। औरत को हमने कभी ठोस मानवीय व्यक्ति के रूप में, एक नागरिक के रूप में देखने की कोशिश ही नहीं की। औरत को समाज जब तक नागरिक के रूप में नहीं देखेगा उस पर हमले होते रहेंगे।
औरत समाज में सक्षम बने इसके लिए जरूरी है उसे पुंसवादी यूटोपिया के बाहर लाया जाए। फेसबुक से लेकर मीडिया तक, शिक्षा से लेकर परिवार के अंदर पुंसवादी यूटोपिया के खिलाफ सुनियोजित विचारधारात्मक प्रचार किया जाय। जब तक हम ऐसा नहीं करते स्त्री को सक्षम और सुरक्षित स्थान नहीं दे सकते।
अपराध और अपराधी का कोई वर्ग, जाति या धर्म नहीं होता, इसके बावजूद यह जानना समीचीन होगा कि आखिरकार इस दौर में अपराधी किस वर्ग में सबसे ज्यादा पैदा हो रहे हैं और कानून का वे किस तरह दुरुपयोग कर रहे हैं।
नए आंकड़ों और मीडिया यथार्थ (Media Reality) की रोशनी में हमें अपराधी के वर्गचरित्र को भी चिह्नित करना चाहिए। मसलन्, मध्यवर्ग में सबसे ज्यादा टैक्सचोर हैं, मध्यवर्ग में सबसे ज्यादा ह्वाइटकॉलर अपराधी हैं, दहेज उत्पीड़न, स्त्री-उत्पीड़क, बलात्कारी और साइबर अपराधी सबसे ज्यादा मध्यवर्ग में है। स्थिति यह है कि आईपीएल से लेकर बीपीएलकार्ड स्कैंडल तक, मनरेगा से लेकर खनन माफिया तक, ड्रग माफिया से लेकर बर्बर क्राइम के क्षेत्रों तक मध्यवर्ग का जाल फैला हुआ है।
आतंकवाद-साम्प्रदायिकता और पृथकतावादी हिंसाचार में भी मध्यवर्गीय युवाओं का एक बड़ा अंश लिप्त है। मध्यवर्ग के इस व्यापक बर्बर-अपराधी चरित्र को हमारी शिक्षा व्यवस्था और सरकार कभी चुनौती देती नजर नहीं आई उलटे इस वर्ग के सामने नतमस्तक है। संसद और विधानसभाओं में अपराधी तत्वों का एक बड़ा अंश पहुंच गया है।
मध्यवर्ग के आपराधिक चरित्र का चरमोत्कर्ष है यूपीएससी निर्मित अफसरों की एक अच्छी-खासी संख्या का विभिन्न किस्म के क्राइम में लिप्त पाया जाना। उनके किस्से आए दिन मीडिया में हमारे सामने आते रहते हैं।
इसके अलावा नए व्यापारियों के रूप में उभरते मध्यवर्ग में भी क्राइम दर तेजी से बढ़ा है। इस सबने मध्यवर्ग के आपराधिक चरित्र को पुख्ता किया है। आज स्थिति यह है कि अपराध का कोई क्षेत्र नहीं है जहां शिक्षित मध्यवर्ग का वर्चस्व न हो।
परिवार नामक संस्था को कलंकित किया शीना बोरा हत्याकांड ने
Sheena Bora murder case stigmatises family
अपराधी मध्यवर्ग तो मीडिया का सबसे बड़ा खाद्य है। मीडिया में जब भी अपराधी मध्यवर्ग के किसी व्यक्ति का कवरेज आता है तो वह सबसे ज्यादा दर्शक खींचता है। यही वजह है अपराध कार्यक्रम सबसे अच्छी रेटिंग में चल रहे हैं। यही वह परिप्रेक्ष्य है जिसमें अपराध कांड देख सकते हैं। मसलन् शीना बोरा हत्याकांड के कवरेज को देख सकते हैं। अब तक का कवरेज हत्या किस तरह की गयी, कैसे की गयी इसके विवरण और ब्यौरों से भरा पड़ा है। मीडिया की दिलचस्पी हत्या की प्रक्रिया को बताने में है, वह अन्य पहलुओं को उजागर करने में कोई रुचि नहीं दिखा रहा।
हत्या के तरीकों का बार-बार रूपायन अंततः अपराध के प्रति सहिष्णुभाव पैदा करता है, अपराध को नॉर्मल, सहज, सहनीय बनाता है। कायदे से न्याय और दण्ड पर जोर होना चाहिए लेकिन न्याय और दण्ड में किसी भी टीवी चैनल की दिलचस्पी नहीं है।
अपराध की घटना सामने आते ही मीडिया लगातार अपराध कैसे हुआ ? उसके विवरण और ब्यौरों को सामने लाने में लग जाता है, उसकी दिलचस्पी कानून और दण्ड के पक्ष को उजागर करने में कम होती है।
शीना बोरा की हत्या के तथ्यों में उसने मजा लिया, उस हत्या को किसी ने खोजा नहीं है, हत्या क्यों हुई और कैसे हुए, इसके बारे में ड्राइवर ने 3साल बाद थाने में जाकर बताया। मीडिया से लेकर पुलिस तक सभी हत्या के पीछे निहित मंशा को खोज रहे हैं। उसके प्रमाण खोज रहे हैं।
शीना बोरा की हत्या ने एक बार फिर से परिवार नामक संस्था को कलंकित किया है। इस घटना ने यह संदेश दिया है कि हमारा समाज और परिवार किस तरह बर्बर और मूल्यहीन हो गया है।
इस हत्या ने यह तथ्य भी उजागर किया है कि हमारा मध्यवर्ग किस तरह झूठ-फरेब और अपराधीकरण में मशगूल है और समाज में उसे सम्मान भी मिल रहा है। यह वह वर्ग है जो अपराध करने के बावजूद अपराधी नहीं है, सम्मानित है, वह समाजीकरण की प्रक्रिया के जरिए समाज में सम्मान पा रहा है। हमारे अंदर इस वर्ग के प्रति, इसके सड़े हुए मूल्यों के प्रति घृणा पैदा नहीं हो रही बल्कि किसी न किसी रुप में सम्मान का भाव है। इस तरह के अपराध की रिपोर्टिंग घृणा का संचार नहीं करती बल्कि जिज्ञासा का संचार करती है। फलतःवह वैधता प्राप्त कर लेती है।
शीना बोरा की मौत सामान्य नहीं है, बल्कि असामान्य है। कम से कम यह बात तो हम कह ही सकते हैं कि समाज में इस तरह का माहौल बन गया है लड़की अपने घरवालों के बीच में भी सुरक्षित नहीं है।
सामान्य तौर पर घर को लड़की के लिए सबसे सुरक्षित स्थान माना जाता था लेकिन शीना की हत्या ने एकबार यह तथ्य पुष्ट किया है कि हमारे घर और परिवारीजन हत्यारे गिरोह बनकर रह गए हैं। इन हत्यारे गिरोहों को हम बार –बार अपराध करते देखते हैं और इसके बावजूद हमारे मन में परिवार जैसी संस्था को लेकर सवाल पैदा नहीं हो रहे, परिवार हमारे लिए अभी भी परम-पवित्र संस्था बनी हुई है। परिवारीजन पुण्यात्मा बने हुए हैं। शीना की हत्या को हम यदि व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखें तो चीजें शायद बेहतर ढ़ंग से नजर आएं।
परिवारीजनों द्वारा लड़कियों की विभिन्न बहाने से हत्याएं, बलात्कार, शारीरिक उत्पीड़न और गुलामों जैसी अवस्था को देखकर भी हमें कभी भी गुस्सा नहीं आता, हम कामना नहीं करते कि यह परिवार और उसका क्रिमिनल ढ़ाँचा नष्ट हो। हम बार –बार इस क्रिमनल पारिवारिक ढाँचे और क्रिमिनल पारिवारिक संबंधों को किसी न किसी बहाने बनाए और बचाए रखना चाहते हैं। यही वह बिन्दु है जहां पर सबसे ज्यादा प्रतिवाद करने की जरुरत है। इसके कारण ही बलात्कार की जघन्य घटना भी हमें नॉर्मल लगती है। हम चुप रहते हैं। यही हमारे मध्यवर्ग के जीवन का सबसे बुरा पक्ष है।
जगदीश्वर चतुर्वेदी