संसद में बोलने से क्यों बचते हैं मोदी? Why does Modi avoid speaking in Parliament?
DB LIVE | 24 NOVEMBER 2016 | GHUMTA HUA AAINA-2 | CURRENT AFFAIRS| RAJEEV RANJAN SRIVASTAVA #ModiKilledCommonMan
नोटबंदी लागू होने के दो हफ्ते बाद भी न बैंकों के आगे भीड़ कम हुई है, न एटीएम से लोगों की मुश्किलें हल हो रही है।
पूरे देश में कोहराम मचा है, जिसका असर संसद सत्र पर पड़ना स्वाभाविक है।
संसद के दोनों सदनों में विपक्ष लगातार नोटबंदी पर सरकार को घेर रहा है।
विपक्षी दल चाहते हैं कि प्रधानमंत्री सदन में आकर बयान दें, लेकिन न जाने क्यों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर संसद में कुछ बोलने से बच रहे हैं।
नोटबंदी के मुद्दे पर संसद में राजनीतिक लड़ाई तेज होती जा रही है।
पिछले सप्ताह नोटबंदी के कारण सदन में कोई कार्यवाही नहीं हो पाई और इस सप्ताह भी हालात ऐसे ही लग रहे हैं।
बुधवार को एकजुट विपक्ष ने संसद परिसर में प्रदर्शन किया। 13 विपक्षी दलों के 2 सौ सांसदों का धरना अब तक सरकार के खिलाफ विपक्ष की सबसे बड़ी मोर्चाबंदी है।
विपक्ष की मांग है कि नोटबंदी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सदन में आकर बयान दें।
लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि हम नोटबंदी के खिलाफ नहीं हैं. इसे लागू किए जाने के तरीके के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि सभी दल आपस में बातचीत कर रहे हैं और आने वाले दिनों में राष्ट्रपति से मिलने पर विचार किया जा रहा है।
कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि कोई इस सरकार पर सवाल उठाए तो वह देशद्रोही हो जाता है। हमारी मांग साफ है, हम नोटबंदी पर चर्चा में प्रधानमंत्री की मौजूदगी चाहते हैं और चर्चा नियम 56 के तहत होनी चाहिए जिसमें वोटिंग का प्रावधान है।
वहीं बीएसपी सांसद सतीश मिश्रा ने भी कहा कि पीएम को सदन में आकर अपनी बात रखनी चाहिए।
उधर राज्यसभा में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में चर्चा की मांग समेत विपक्ष ने एक नयी मांग रखी।
विपक्ष का कहना था कि नोटबंदी के कारण पैदा हुई समस्या के चलते मारे गए 70 लोगों के परिजनों सरकार को दस-दस लाख रूपये का मुआवजा दे।
अच्छी बात है कि एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर अपने-अपने राजनीतिक एजेंडे को थोड़ा किनारे करते हुए सारे विपक्ष ने एकजुट होकर आवाज उठाई है। लेकिन भाजपा पर ढाई साल पहले की जीत का गुमान इतना चढ़ा हुआ है कि वह संसदीय परंपराओं, राजनीतिक तकाजों को भी निभाना नहीं चाहती। तभी प्रधानमंत्री देश में होते हुए भी संसद में पधारने का कष्ट नहीं उठा रहे हैं, जबकि उनके एक फैसले के कारण देश की गरीब जनता बिना बात कष्ट भोग रही है।
सरकार का कहना है कि यह फैसला वित्त मंत्रालय से संबंधित है तो प्रधानमंत्री के सदन में आने की क्या आवश्यकता।
सरकार इस बात का भी जवाब दे कि जब मामला वित्त मंत्रालय का था तो घोषणा करने प्रधानमंत्री खुद क्यों टीवी पर प्रकट हुए?
विपक्ष के सवालों की तरह जनता के सवाल भी सरकार अनसुना कर रही है।
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह विपक्षी दलों को निशाना बनाते हुए कहते हैं कि इसका उद्देश्य भ्रष्टाचार के खिलाफ है और जिन लोगों के पास काला धन है वे चिंतित हैं। जबकि विपक्षी दलों पर नोटबंदी के मुद्दे पर संसद में बहस से भागने का आरोप लगाते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह केवल दर्शाता है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में गंभीर नहीं हैं।
इसे कहते हैं चित भी मेरी और पट भी मेरी।
प्रधानमंत्री सदन में नहीं आ रहे हैं और भागने का आरोप लग रहा है विपक्ष पर। क्या इस परंपरा की शुरुआत के लिए ही प्रधानमंत्री ने पहले दिन संसद की ड्योढ़ी पर माथा टेका था? उनके लिए यही कहा जा सकता है-
जिन्हें सुने तो कोई बेनक़ाब हो जाए, किसी से भूलकर ऐसे सवाल मत करना
नजऱ चुरानी पड़े आइने से रह-रहकर, ज़मीर इतना भी अपना हलाल मत करना
देशबन्धु समाचारपत्र समूह के समूह संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव का विशेष साप्ताहिक कार्यक्रम घूमता हुआ आइना
राजीव रंजन श्रीवास्तव