/hastakshep-prod/media/post_banners/I7bBS1cMEZZnRmMPJumG.jpg)
Why is BJP afraid of the name Modi?
अपने ही बिछाये जाल में फँस गयी है भाजपा
भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह (Bharatiya Janata Party President Rajnath Singh) ने अपने एक बयान में कहा कि मध्य प्रदेश के मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह चौहान के सन्दर्भ में पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी के बयान (Statement of senior BJP leader Lal Krishna Advani with reference to Madhya Pradesh Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) को मीडिया ने तोड़ मारोड़ कर पेश किया है।
राजनाथ में कहा कि अडवाणी का बयान उस सन्दर्भ में नहीं था जिस रूप में मीडिया ने पेश किया।
स्वयम् शिवराज ने सफाई देते हुये कहा कि नरेन्द्र मोदी नम्बर वन मुख्यमन्त्री हैं और मैं नम्बर तीन की पोजीशन का मुख्यमन्त्री हूँ। सवाल यह उठता है कि अगर आडवाणी का बयान शिवराज के प्रधानमन्त्री पद के योग्य होने के सन्दर्भ में नहीं था तो आडवाणी के बयान पर इतना बवाल क्यों हो रहा है ? क्यों नही आडवाणी के बयान को एक शीर्ष नेता के समान्य बयान से जोड़ के देखा जा रहा है ? क्यों राजनाथ से लेकर शिवराज तक को इस मसले पर सफाई देनी पड़ रही है ? जाहिर सी बात है मोदी लॉबी के दबाव में इस बयान का हर तरीके से खण्डन किया जा रहा है। और यह बताया जा रहा है कि पूरी भाजपा मोदी के साथ खड़ी है।
पर क्या वास्तव में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व नरेन्द्र मोदी के साथ है ?
वास्तव में भाजपा अपने ही बिछाये जाल में फँस गयी है। पार्टी के कुछ नेताओं का कहना है कि लोकसभा चुनाव की आहट के साथ ही जिस तरह मोदी नाम ने अलग-थलग पड़ी भाजपा को मुख्यधारा में जोड़ा उसने पार्टी नेतृत्व को यह आभास दिलाया कि यदि इस नाम को भुनाया जाये तो चुनाव में भाजपा की तस्वीर को बदला जा सकता है। पर किसी को भी यह यकीन नहीं था कि जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आयेगा मोदी शीर्ष नेतृत्व के लिये गले की हड्डी बन जायेंगे। सभी का मानना था कि समय के साथ भाजपा के अन्य नेताओं की तरह मोदी मीटर को भी डाउन कर दिया जायेगा। यही कारण था कि हर बार संसदीय कमेटी की बैठक में पार्टी कार्यकर्ताओं की इस माँग के बाद भी कि मोदी को पीएम पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित किया जाये शीर्ष नेतृत्व ने मोदी को प्रधानमन्त्री पद का अधिकृत उमीदवार घोषित नहीं किया। सभी इस विचार में थे कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आयेगा मोदी नाम के चलते भाजपा भी मेन स्ट्रीम में आ जायेगी और फिर समय के साथ ये निर्णय लिया जायेगा कि किसे प्रधानमन्त्री पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित किया जाये।
शीर्ष नेतृत्व प्रारम्भ से ही मोदी को पीएम पद का अधिकृत उम्मीदवार घोषित करने के मूड में नहीं था। नेतृत्व की इस भावना को मोदी ने बहुत पहले ताड़ लिया था इसलिये उन्होंने पार्टी से ज्यादा खुद के ब्राण्ड को मजबूत किया और एक ऐसा सन्देश जनता के बीच में दिया कि मोदी बिना भाजपा सून है। आज जब भाजपा नेतृत्व मोदी मीटर डाउन करना चाह रहा है तो परिस्थति इसके अनुकूल नहीं है। हर जगह मोदी नाम छाया हुआ है। ऐसे में पार्टी की मज़बूरी है कि वो मोदी की हर बात को माने।
हालाकि इन नेताओं का कहना है कि पार्टी के अन्दर मोदी का दबदबा कम करने के लिये शीर्ष नेतृत्व ने काम करना शुरू कर दिया है। पार्टी के पूर्व वरिष्ठ नेता राम जेठ मनाली का निष्कासन इसी कड़ी का एक हिस्सा है। आने वाले समय में मोदी समर्थक कई नेता पार्टी के निशाने पर आ सकते हैं। पर इस कार्यवाही से पहले भाजपा हर हाल में लोकसभा चुनाव निकाल लेना चाहती है। यही कारण है कि मोदी की हर जायज नाजायज बातों को पार्टी मान रही है। समय के साथ हो सकता है कि दबाव में ही सही पार्टी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमन्त्री पद का अधिकृत उमीदवार घोषित कर दे। लेकिन चुनाव बाद जीत की स्थिति में पार्टी नरेन्द्र मोदी को ही प्रधानमन्त्री बनायेगी यह बात पूरे विश्वास के साथ कह पाना मुश्किल है।
बहराल चुनाव बाद तस्वीर कुछ भी हो पर मौजूदा दौर में यह बात साफ़ है कि पार्टी नरेन्द्र मोदी के दबाव में है।
सधे हुये शब्दों में कहा जाये पार्टी मोदी नाम से डरती है। यही कारण है कि जब भी कोई नेता नरेन्द्र मोदी के विरुद्ध बयान देता है तो नेतृत्व तुरन्त उसके खण्डन के लिये आगे आ जाता है। जिसका ताजा उदाहरण आडवाणी बयान है जिसका हर स्तर पर पार्टी खण्डन कर रही है बिना यह सोचे कि लाल कृष्ण आडवाणी पार्टी के सबसे शीर्ष नेता है।
अनुराग मिश्र
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।