1926 में आज के दिन, भारत के अग्रणी लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक महान लेखिका महाश्वेता देवी का जन्म डेका (बांग्लादेश में आधुनिक-ढाका) में हुआ था (On this day in 1926, legendary author Mahasweta Devi was born in Decca (modern-day Dhaka in Bangladesh))। छह दशकों में एक साहित्यिक कैरियर में, देवी ने 100 से अधिक उपन्यास और 20 लघु कहानी संग्रह लिखे।
महाश्वेता देवी ने व्यक्तिगत कहानियों और कथाओं का भारी लाभ उठाया, और बंगाली और जनजातीय बोलियों के अनूठे मिश्रण का उपयोग करते हुए लिखा।
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उन्होंने अपनी व्यावहारिक, विनोदी, मजाकिया, और प्रत्यक्ष शैली के जरिए देशवासियों के लिए उनकी गहरी सहानुभूति को जीवन में उतारा।
भारत के आदिवासी समुदायों के जीवन को उनके संकलन में अमर कर दिया, जो कि जितनी बड़ी साहित्यिक कृति हैं उतने ही बड़ी सामाजिक वृत्तचित्र (documentaries) हैं।
1974 में प्रकाशित, हजार चौरासीवें की माँ (Hajar Churashir Maa- ‘Mother of 1084’) उनके शक्तिशाली लेखन का एक उदाहरण है, जिसमें एक माँ के साहसी संघर्ष को दर्शाया गया है जो 1970 के दशक के नक्सली विद्रोह में अपने बेटे को खो देती है और राजनीतिक विद्रोह और उसके बाद के दमन की कीमत का प्रतीक है।
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महाश्वेता देवी को भारत के दो सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री और पद्म विभूषण उनके सामाजिक कार्यों के लिए प्रदान किए गए।
साहित्य की दुनिया में उनके योगदान के लिए, उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार (बंगाली), ज्ञानपीठ पुरस्कार, और रेमन मैग्सेसे पुरस्कार सहित कई अन्य पुरस्कार प्रदान किए गए।
महाश्वेता देवी बंगाली भाषा में एक भारतीय कथा लेखिका और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता थीं। उनकी उल्लेखनीय साहित्यिक कृतियों (mahasweta devi books) में हजार चौरासीवें की माँ, रुदाली और अरण्यर प्रवेश शामिल हैं।