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Indira Gandhi
On this day, Indira Gandhi changed history and geography
आज पूर्वी पाकिस्तान की मौत की 48 वीं बरसी है। (Today is the 48th anniversary of East Pakistan's death) यह दिन भारत ही नहीं दुनिया के लिए यादगार है --- लोग इतिहास बदलते हैं, इंदिरा गांधी ने भूगोल भी बदल दिया था।
आज का दिन इस समय बहुत अधिक प्रासंगिक है। धर्म के नाम पर बने राज्य में नफरत और विभाजन का सिलसिला जाति, भाषा, और कई रूपों में होता है। आज का दिन उन बिहारियों को भी याद रखना होगा जो "अपने इस्लामिक मुल्क" की आस में सन् 1947 में उस तरफ चले गए थे।
टीन तरफ से नदियों से घिरे ढाका शहर के सड़क मार्ग के सभी पुल तोड़ डाले गये थे और भारतीय सेना के लड़ाकू जहाज ही ढाका की निगहबानी कर रहे थे। जैसे ही खबर फैली कि पाकिस्तानी सेना आत्म समर्पण कर रही है, बंगला मुक्ति वाहिनी के सशस्त्र लोग सड़कों पर आ गए।
ढाका के कमलापुर, शाहजहांपुर, पुराना पलटन, मौलवी बाज़ार, नवाब बाड़ी जैसे इलाकों में गैर बांग्ला भाषी कोई तीन लाख लोग रहते थे, जिन्हें बिहारी कहा जाता था, ये सभी विभाजन पर उस तरफ गए थे-- उन पर सबसे बड़ा हमला हुआ। कई हज़ार मार दिए गए- जहाज़ से पर्चे गिराए जा रहे थे कि आम लोग रेसकोर्स मैदान में एकत्र हों। वहीँ पाकिस्तानी सेना का समर्पण हुआ, लेकिन उसके बाद जब तक भारतीय फौज बस्तियों में जाती, बहुत से बिहारी मार दिए गए-- लूट लिए गए।
नए बंगलादेश के गठन की वेला में मुसलमान बिहारी फिर से भारत की ओर खुद को बचाने को भाग रहे थे। उससे पहले पाकिस्तानी फौज के अत्याचार से त्रस्त हिन्दू शरणार्थी आ रहे थे।
Hindu refugees were settled in the interior of the country.
शायद आप जानते हों कि हिन्दू शरणार्थियों को देश के आंतरिक हिस्सों में बाकायदा बसाया गया। छत्तीसगढ़ के बस्तर में ऐसे बंगालियों की घनी बस्तियां आज भी हैं।
खैर यह कहानी बहुत लम्बी चलेगी। बस यही बताना चाह रहा हूँ कि भारत में बंगलादेश से आने वाले मुसलमान भी उतने ही पीड़ित थे जितने हिन्दू और मुसलमान तो भारत से ही बीस साल पहले भाग कर गए थे।
इसका यह भी मतलब नहीं कि भारत में अवैध घुसपैठिये (Illegal intruders in India) नहीं हैं, लेकिन ऐसे लोगों, खासकर अपराधी किस्म के घुसपैठियों के बाकायदा सीमा पर अपने चैनल हैं, पैसा देते हैं, स्मगलिंग करते हैं, इस तरफ से गाय ले जाते हैं, उस तरफ से कपड़े लाते हैं -- सब कुछ सुरक्षा बलों की साझेदारी में होता है।
देश को धर्म के आधार पर जितना बांटोगे, उसके बिखरने की गुंजाइश उतनी ही बढ़ेगी-- देश को फिर से रियासतों में, छोटे छत्रपों के स्वशासन में बांटने में नागरिकता रजिस्टर और नागरिकता कानून में संशोधन की खतरनाक भूमिका रहेगी।
बांग्लादेश का उदय मजहबी आधार पर दो राष्ट्र बनाने के 1947 के फैसले को खारिज करने वाला था। बांग्लादेश के उदय ने यह सिद्ध किया कि संस्कृति और भाषा का आधार अधिक प्रामाणिक और चिर प्रासंगिक होते हैं।
पंकज चतुर्वेदी
(वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी की एफबी टिप्पणी का संपादित रूप साभार)