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जागरूक हो रही हैं महिलाएं
महिला सशक्तीकरण में किस तरह सहायक हुए संचार माध्यम
वैसे तो संचार माध्यम समाज के विकास में बहुत सहायक हैं। परंतु महिला सशक्तीकरण के बारे में बात करते समय संचार माध्यमों की सशक्त भूमिका को सर्वोपरि मानना होगा। आज समूचे विश्व में महिलाओं का वर्चस्व बढ़ा है। शिक्षा, राजनीति, विज्ञान, कला, मनोरंजन-हर क्षेत्र में महिलाएं अपनी प्रतिभा उजागर कर रही हैं। उनकी पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में परिवर्तन स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
नि:संदेह हाल के दो दशकों में महिला हिंसा की घटनाओं में अभूतपूर्व वृद्धि दर्ज की गई है। परंतु इसी अवधि में महिलाओं ने विश्व में कीर्तिमान भी स्थापित किए हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। महिला के प्रति हिंसा (violence against women), यौन उत्पीड़न (sexual harassment), दहेज प्रताड़ना (dowry harassment) जैसी घटनाएं पहले से घटती आ रही हैं। परंतु मीडिया ने उनमें वह चेतना जगाई है जिसके कारण अब वे अत्याचार के विरुद्ध मुखर हो रही हैं और सरकार को भी उनके हित में कानून बनाने के लिए तत्पर होना पड़ रहा है।
महिला सशक्तीकरण में रेडियो, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका
महिलाएं अपने अस्तित्व की लड़ाई (women fighting for their survival) लंबे समय से लड़ती आ रही हैं, लेकिन इसने अभियान का रूप नहीं लिया था। महिलाओं के पक्ष में जमीन तैयार करने में रेडियो, दूरदर्शन, पत्र-पत्रिकाओं और सबसे अधिक समाचार पत्रों की भूमिका रही है। क्योंकि वह आम आदमी तक पहुंचने का सर्वसुलभ सस्ता माध्यम है। 73 वें और 74 वें संविधान संशोधन के परिणामस्वरूप देश की ग्रामीण एवं नगरीय स्वशासी संस्थाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था ने उन्हें अधिकार-संपन्न तो बनाया किंतु जब हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार और मध्यप्रदेश के कुछ आदिवासी क्षेत्रों में निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों ने सामाजिक बुराइयों एवं अन्याय के विरूद्ध आवाज बुलंद कर उन पर विजय पाई, तो मीडिया ने ही समाज में यह आस जगा दी कि सभी विसंगतियों के खिलाफ महिलाओं की एकजुटता सचमुच क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है।
यद्यपि भारत का महिला एवं बाल विकास विभाग महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक स्तर में सुधार लाने हेतु सतत् प्रयत्नशील है और अनेक योजनाएं बनाता आ रहा है। अन्य शासकीय एवं अशासकीय तथा स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस दिशा में कार्य कर रही हैं किंतु जब से संचार माध्यम इस दिशा में सक्रिय हुए हैं तभी से उल्लेखनीय परिणाम मिल रहे हैं। आज जितनी भी शासकीय योजनाओं की जानकारी दृश्य-श्रव्य माध्यमों द्वारा प्रसारित की जाती है, उनका व्यापक प्रभाव स्त्री वर्ग पर पड़ा है। अन्त्योदय योजनाएं राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और जननी सुरक्षा योजना सहित जाने कितनी योजनाओं की जानकारी सर्वहारा वर्ग की महिलाओं को है। यह प्रसन्नता की बात है।
सरकार बालिका शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा और छात्रवृत्ति योजना के माध्यम से महिला साक्षरता बढ़ाने हेतु प्रयासरत् है। इसमें दूरदर्शन की अहम् भूमिका है। बालिका शिक्षा संबंधी कई विज्ञापन एवं कार्यक्रम दिखाकर दूरदर्शन साक्षरता के प्रसार में सहयोग कर रहा है। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के उद्देश्य से भी उसने महत्वपूर्ण कार्यक्रम दिखाए हैं और कन्या जन्म को प्रोत्साहित करने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। महिलाएं संवैधानिक दृष्टि से तो अधिकार संपन्न हैं मगर यथार्थ में वे भेद-भाव, शोषण और उत्पीड़न का शिकार बनी हुई हैं।
आज आवश्यकता है महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने की। उन्हें शिक्षित, स्वावलम्बी, मजबूत और अधिकार चेतना बनाने की। सरकार द्वारा महिलाओं के कल्याण हेतु कई कानून बनाए गए परंतु वे सभी कागजों में ही सिमटकर रह गए। जबकि इन कानूनों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है और दूरदर्शन, निजी चैनल व रेडियो के माध्यम से यह भलीभांति संभव है। इन्हीं माध्यमों से महिलाएं विवाह, दहेज, बलात्कार, संपत्ति अधिकार, समान वेतन, प्रसूति-सुविधा आदि के संबंध में आवश्यक जानकारी एवं दिशानिर्देश प्राप्त कर सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से सम्मानजनक स्थान पाने की कोशिश कर रही हैं।
वर्तमान में संचार माध्यम महिलाओं के सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। बाल विवाह अधिनियम की बात करें या पत्नी के भरण पोषण या विधवा गुजारा भत्ते की महिलाएं जागरूक हो रही हैं। उन्हें महिला हिंसा कानून, समान वेतन कानून, गोद लेने संबंधी कानून और संपत्ति में स्त्री के अधिकार की जानकारी सहित ऐसे अनेक उपक्रमों का ज्ञान है जो उनके जीवन को सही दिशा दे सकते हैं। अपने जीवन की विभिन्न समस्याओं को बेहतर ढंग से सुलझाने की क्षमता उनमें निरंतर विकसित हो रही है। वे प्रारंभ से ही मेधा संपन्न रही हैं, लेकिन उनमें जागरूकता का अभाव रहा है। आत्मविश्वास की कमी भी उनकी उन्नति के मार्ग का रोड़ा रही है।
बहरहाल जिस तेजी से भौतिकता एवं प्रौद्योगिकी के पक्ष में स्त्री चेतना का विस्तार दृष्टिगोचर हो रहा है यदि उसी गति से स्त्री अपने अधिकारों एवं कर्तव्यों के प्रति सचेत हो सके तो समाज के अनेक ऐसे वलंत प्रश्नों का हल आसानी से मिल सकता है जिनका समाधान कानून द्वारा अद्यपर्यंत संभव नहीं हो पाया है। संचार माध्यमों की ईमानदार प्रतिबद्धता निश्चय ही महिला सशक्तीकरण के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय जोड़ सकती है। सरकार को भी इस दिशा में सोचने की जरूरत है।
डॉ. गीता गुप्त
(देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित रूप साभार)
Role of media in women empowerment