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The easiest political task is to defeat the BJP!
भाजपा का जादू भारत ही नहीं भारत से बाहर भी चल रहा है, इसकी जानकारी हाल के अख़बारों में छपे अमेरिका के जाने-माने शिक्षाविद और वाल स्ट्रीट जर्नल के लेखक वाल्टर रसेल मीड़ के बयान से मिली है. मीड ने भाजपा की सफलता के तारीफ के कसीदे काढ़ते हुए जो कुछ कहा है, वह विपक्ष को और खौफजदा कर सकता है. उनके अनुसार 2014 और 2019 के आम चुनाव में सफलता के झंडे गाड़ने वाली भाजपा 2024 में भी सफलता की ओर बढ़ रही है. भाजपा निश्चित रूप से अपने देश में निकट भविष्य में सफलता के झंडे गाड़ रही होगी और बिना उसकी मदद के उभरती चीनी सत्ता से संतुलन बनाना अमेरिका के लिए मुश्किल हो जायेगा.
मीड ने अमेरिका के प्रमुख प्रकाशन वाल स्ट्रीट जर्नल में आलेख लिखकर कहा है कि भाजपा सबसे महत्वपूर्ण विदेशी पार्टी है, जिसको शायद बहुत कम समझा गया है. इसके विकास के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास से अधिकांश गैर-भारतीय अनजान है. भाजपा का चुनावी प्रभुत्व उसकी सफलता को दर्शाता है. अस्पष्ट और सीमित सामाजिक आन्दोलनों के साथ शुरू हुए राष्ट्रीय नवीनीकरण के आन्दोलन में सामाजिक विचारकों और कार्यकर्ताओं की पीढ़ियों के प्रयास लगे हैं.
70 वर्षीय शिक्षाविद मीड के अनुसार मुस्लिम ब्रदरहुड की तरह भाजपा पश्चिमी उदारवाद के कई विचारों और वरीयताओं को खारिज करती है. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की तरह भाजपा एक अरब से अधिक लोगों वाले राष्ट्र की अगुआई की उम्मीद करती है. मीड ने भाजपा और संघ के नेताओं और उनके कुछ आलोचकों के साथ कई बैठकें करने के अनुभव के आधार पर कहा है कि वह इस बात से सहमत हैं कि अमेरिकियों और अन्य पश्चिमी देशों के लोगों को इस जटिल और सशक्त आन्दोलन को और गहराई से समझना चाहिए. भारत एक जटिल स्थान है और यहाँ अन्य कई पहलू काम कर रहे हैं.
अमेरिका के जाने-माने शिक्षाविद और वाल स्ट्रीट जर्नल के लेखक वाल्टर रसेल मीड़ के उपरोक्त बयान से पहले से ही खौफजदा भाजपा विरोधियों के शिराओं में चिंता की लकीरें और शिद्दत से दौड़ गयी होंगी, ऐसा मानकर चलना चाहिए. पर, क्या भाजपा सचमुच इतनी ताकतवर हो गयी है जो मीड जैसे विदेशी लेखक को यह दावा करने में कोई दुविधा नहीं हो रही है कि भाजपा निश्चित रूप से अपने देश में निकट भविष्य (2024) में सफलता के झंडे गाड़ रही होगी और बिना उसकी मदद के उभरती चीनी सत्ता से संतुलन बनाना अमेरिका के लिए मुश्किल हो जायेगा!
मीड के इस दावे को परखने के लिए हमें भाजपा की ताकत और कमजोरियों का नए सिरे से आकलन करने की जरूरत है. इस क्रम में सबसे पहले उसकी शक्ति के स्रोतों को सटीक जानकारी जरूरी है.
अब जहाँ तक भाजपा की शक्ति के स्रोतों का प्रश्न है, हरि अनंत हरि कथा अनंता की तरह इसकी शक्ति के स्रोतों का भी अंत पाना आसान नहीं है. फिर इसके दस ऐसे प्रमुख स्रोतों को चिन्हित किया जा सकता है,जिसके कारण ही शायद मीड जैसे लोग 2024 उसकी सफलता के प्रति आशावादी दिख रहे हैं तो विपक्ष भयाक्रांत है.
बहरहाल 1925 की विजयादशमी के दिन आधुनिक भारत के सर्वाधिक दूरदर्शी ब्राह्मण डॉ. केशव राव बलिराम हेडगेवार द्बारा स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही भाजपा की शक्ति का प्रमुख स्रोत है, इस बात से शायद ही किसी की असहमति हो. अपने किस्म के विश्व के इकलौते संगठन आरएसएस के भारतीय मजदूर संघ, सेवा भारती, राष्ट्रीय सेविका समिति, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, सरस्वती शिशु मंदिर, विद्या भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच, बजरंग दल, अनुसूचित जाति आरक्षण बचाओ परिषद, लघु उद्योग भारती, भारतीय विचार केंद्र, विश्व संवाद केंद्र, राष्ट्रीय सिख संगठन, विवेकानन्द केंद्र और खुद भारतीय जनता पार्टी सहित दो दर्जन से अधिक आनुषंगिक संगठन हैं, जिनके साथ 28 हजार, 500 विद्यामंदिर, 2 लाख 80 हजार आचार्य, 48 लाख, 59 हजार छात्र, 83 लाख,18 हजार 348 मजदूर, 595 प्रकाशन सदस्य, 1 लाख पूर्व सैनिक, 6 लाख,85 हजार वीएचपी-बजरंग दल के सदस्य जुड़े हुए है. यही नहीं इसके साथ बेहद समर्पित व ईमानदार 4 हजार पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता हैं, जो देश भर में फैले 56 हजार. 859 शाखाओं में कार्यरत 55 लाख, 20 हजार स्वयं सेवकों के साथ मिलकर इसके राजनीतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी को बल प्रदान करते हैं. दुनिया के सबसे ताकतवर इसी संघ की स्थापना के प्रायः 75 साल बाद में उसके राजनीतिक प्रकोष्ठ भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार में महान स्वयंसेवी अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने. आज उसी संघ से निकले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा अप्रतिरोध्य बनकर उभरी है.
कहा जा सकता है कि संघ के राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने में ही आज भाजपा जुटी हुई है.
संघ के बाद भाजपा के दूसरे प्रमुख शक्ति के स्रोत में नजर आते हैं, वे साधु- संत जिनका चरण-रज लेकर देश के कई पीएम-सीएम और राष्ट्रपति-राज्यपाल खुद को धन्य महसूस करते रहे हैं. मंडलोत्तर काल में गृह-त्यागी प्रायः 90 प्रतिशत साधु- समाज का आशीर्वाद भाजपा के साथ रहा है.
7 अगस्त, 1990 को मंडल की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद जब पिछड़ों को आरक्षण मिला एवं बहुजनों की जाति चेतना के चलते सवर्ण समुदाय राजनीतिक रूप से लाचार हुआ, तब संघ के दूरगामी लक्ष्य को ध्यान में रखकर सितम्बर, 1990 में भाजपा के आडवाणी ने जो रामजन्मभूमि मुक्ति आन्दोलन छेड़ा, उसे तुंग पर पहुंचाने में साधु-संतों ने ऐतिहासिक योगदान दिया. चूँकि संघ का लक्ष्य अपने राजनीतिक संगठन के जरिये ब्राह्मणों के नेतृत्व में सवर्ण-हित का पोषण करना रहा है और साधु -संत सवर्ण, प्रधानतः ब्राह्मण समुदाय से आते हैं, इसलिए जब-जब भाजपा पर संकट आता है ये साधु-संत भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में मुस्तैद हो जाते हैं. अगर साधु-संतों के प्रबल समर्थन से भाजपा पुष्ट नहीं होती, अप्रतिरोध्य बनाना शायद उसके लिए दुष्कर होता. 2024 के लिए भाजपा नेतृत्व जरूर उनसे नयी भूमिका की उम्मीद कर रहा होगा. शक्ति के स्रोत के रूप में तीसरे नंबर पर मीडिया (प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक्स) को चिन्हित किये जाने से भी शायद कम ही लोगों को आपत्ति होगी.
मंडल के जरिये पिछड़ों को मिले आरक्षण से आम सवर्णों की भांति सवर्ण वादी को भी भारी आघात लगा था. फलतः आडवाणी ने मंदिर आन्दोलन के जरिये संघ का राजनीतिक लक्ष्य साधने के लिए सितम्बर, 1990 से जो उपक्रम चलाया, उसमें मीडिया ने कदमताल करने का जो सिलसिला शुरू किया, उसमें आजतक कोई कमी नहीं आई है. बल्कि आज की तारीख में तो मीडिया प्रायः मोदीमय हो चुकी है.
शुरू से ही भाजपा की पहचान मुख्यतः ब्राह्मण – बनियों की पार्टी के रूप में रही है. इनमें बनिया कौन! भारत का धनपति वर्ग ही तो ! भाजपा से बनियों के लगाव में आज भी रत्ती भर कमी नहीं आई है. ऐसे में कहा जा सकता है कि आज की तारीख में भारतीय पूंजीपति वर्ग से प्रायः 90 प्रतिशत उपकृत होने वाली राजनीतिक पार्टी भाजपा ही है. वैश्य वर्ग के इस उपकार कारण ही वह अडानी-अम्बानी- नीरव – ललित मोदियों का आर्थिक साम्राज्य अक्षत रखने में जुटी हुई है, ऐसा विपक्ष का कहना है.
सिर्फ साधु - संत, लेखक-पत्रकार और पूंजीपति ही नहीं, खेल-कूद, फिल्म-टीवी जगत के प्रायः 90 सेलेब्रिटी भाजपा के साथ ही हैं. यह भाजपा की शक्ति का कितना बड़ा स्रोत है, इसका अंदाजा वे ही लगा सकते हैं, जिन्होंने विनोद खन्ना, हेमा मालिनी, स्व. चेतन चौहान, मनोज तिवारी, दिनेश लाल निरहुआ, स्मृति ईरानी इत्यादि की सभाओं में जुटने वाली भीड़ का जायजा लिया है.
भाजपा की शक्ति का एक बड़ा स्रोत सवर्ण मतदाता हैं, जिनका प्रायः 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा इसी के साथ है. और रहे भी क्यों नहीं, संघ के इसी चहेते वर्ग को और शक्तिसंपन्न करने के लिए तो भाजपा सरकार देश बेचने जैसे काम में सर्वशक्ति से जुटी है.
बहरहाल सवर्ण मतदाता अगर भाजपा की शक्ति का बड़ा स्रोत हैं तो हिन्दू-धर्म शास्त्रों द्वारा दैविक गुलाम (डिवाइन स्लेव) में परिणत किया गया बहुजन और बड़ा स्रोत है. दलित, आदिवासी और पिछड़ों से युक्त विश्व का विशालतम तबका धर्मादेशों का अनुसरण करते हुए सदियों से ही शक्ति के स्रोतों (आर्थिक-राजनीतिक-धार्मिक-संस्कृतिक-शैक्षिक इत्यादि ) से पूरी तरह बहिष्कृत रहा. आधुनिक विश्व में रचित क्रांतियों के असंख्य अध्याय और फुले-अम्बेडकरी साहित्य भी इसकी मानसिकता में वाजिब बदलाव नहीं ला सका है. इसके लिए शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी से कहीं ज्यादा आज भी उसके लिए धर्म का आकर्षण ज्यादा बड़ा है, इसलिए यह जानते हुए भी उसके आरक्षण के विरुद्ध धार्मिक आन्दोलन चला कर ही भाजपा यहाँ तक पहुंची है, वह उससे दूर जाने का मन नहीं बना पाता.
अधिकार चेतना-शून्य दैविक गुलामों की एक खासियत यह भी है ऐतिहासिक कारणों से उनमें अल्पसंख्यकों के प्रति विद्वेष भी कूट–कूट कर भरा रहता है. भाजपा का मातृ संगठन यह जानता है इसलिए वह विभिन्न धार्मिक- सांस्कृतिक गतिविधियों के जरिये उसकी इस दुर्बलता को दोहन करने में सर्वशक्ति लगाते रहता है.
भाजपा के शक्ति के स्रोतों की तलाश में निकलने पर कोई भी उसके प्रवक्ताओं को नजरंदाज नहीं कर सकता. गोएबल्स सिद्धांत में निपुण संघ द्वारा प्रशिक्षित भाजपा के प्रवक्ता इतने कुशल होते हैं कि लोग उनके कुतर्कों को भी मुग्धभाव से सुनने के लिए बाध्य हो जाते हैं. संघ शाखाओं में सबसे ज्यादा जोर उन्हें इतना कुशल वक्ता बनाने पर दिया जाता है कि असत्य को भी सफलता से सत्य में परिणित कर लेते हैं. इनके समक्ष विपक्षी प्रवक्ता करुणा पात्र लगते हैं.
लेकिन भाजपा की शक्ति के स्रोत के रूप में देश-विदेश का कोई भी व्यक्ति जिसकी अनदेखी नहीं कर सकता, उसका नाम है नरेंद्र मोदी.
मोदी संघ से निकले ऐसे दुर्लभ रत्न हैं, जिन्हें अद्वितीय कहना कहीं से भी ज्यादती नहीं होगी. आज देश में 1- 9 तक कोई नेता है तो मोदी ही हैं: बाकी की गिनती दशवें से शुरू होती है. विदेशियों द्वारा राजनीति के रॉकस्टार के रूप में चिन्हित मोदी ने अपने नेतृत्व कौशल से भाजपा के शक्ति के स्रोतों को वांछित दिशा में निर्देशित करते हुए एक सैलाब में तब्दील कर दिया है. अपने योग्यतम नेतृत्व में जिस तरह मोदी संघ-भाजपा के लाखों कार्यकर्ताओं को उत्तेजित, उत्प्रेरित एवं समन्वित करते हुए लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में अग्रसर कर रहे हैं, मोदी के चमत्कारी नेतृत्व में भाजपा डेढ़ दर्जन से अधिक राज्यों की सत्ता में है और इसके आज की तारीख में 1400 से अधिक विधायक तथा राज्यसभा व लोकसभा मिलाकर 400 के करीब सांसद हैं. शायद मोदी के नेतृत्व में भाजपा की यह ताकत देखते हुए ही जहां मीड 2024 में भाजपा के झंडे गाड़ने के प्रति आशावादी हैं, वहीँ विपक्ष मान-अभिमान की तिलांजलि देकर एकजुट होने की तैयारी कर रहा है.
बहरहाल भाजपा का हाथी समान विशाल रूप देखते हुए अधिकांश लोग मानेगे कि मीड का दावा सही हो सकता हैं. पर, अगर भाजपा की शक्ति के विपरीत उसकी कमजोरियों का ठीक से आकलन किया जाय तो पता चलेगा आज की तारीख में भाजपा को हराने जैसा आसान पॉलिटिकल टास्क कुछ हो ही नहीं सकता, अंततः इस लेखक का दावा है!
भाजपा की शक्ति के स्रोतों का अपार भंडार देखकर ऐसा लग सकता है कि बहुजनवादी दल अप्रिरोध्य भाजपा के समक्ष बिलकुल असहाय हैं. न तो इनके पास संघ के मुकाबले दस प्रतिशत की भी हैसियत रखने वाला कोई सामाजिक संगठन है, और न ही धनपतियों, मीडिया, लेखकों का न्यूनतम समर्थन ही प्राप्त है. मोदी जैसे करिश्माई नेतृत्व की बहुजनवादी दलों तो क्या दूसरे सवर्णवादी गैर-भाजपाई दलों तक में भी कल्पना करना दुष्कर है. पर, यदि हम इस बात को ध्यान में रखें कि लोकतान्त्रिक व्यवस्था में सत्ता हासिल करने संख्याबल सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण फैक्टर का काम करता और इसी संख्या- बल को अपने अनुकूल करने के लिए पार्टियों को धन बल, मीडिया बल, प्रवक्ताओं और कार्यकर्ताओं की भीड़ और कुशल नेतृत्व की जरूरत पड़ती है तो पता चलेगा भारत के बहुजनवादी दलों जैसी अनुकूल स्थिति पूरी दुनिया में दुर्लभ है और ऐसा इसलिए है क्योंकि आज की तारीख में सदियों से सामाजिक अन्याय का शिकार बनाई गयी भारत के बहुजन समाज जैसी विपुल आबादी दुनिया में कहीं है ही नहीं!
जिस मोदी के नेतृत्व में भाजपा अप्रतिरोध्य बनी है, उस मोदी ने सवर्णहित साधने के जुनून में कुछ ऐसी भूलें कर दी हैं, जिसका विपक्ष द्वारा कायदे से सद्व्यवहार करने पर वह बहुत ही आसानी से सत्ता से आउट हो सकती हैं.
मोदी ने विगत आठ वर्षों से मंदिर आन्दोलन के सहारे मिली सत्ता का अधिकतम इस्तेमाल आरक्षण के खात्मे तथा बहुसंख्य लोगों की खुशिया छीनने में किया है. इसके तहत ही मोदी राज में श्रम कानूनों को निरंतर कमजोर करने के साथ ही नियमित मजदूरों की जगह ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा देकर, शक्तिहीन बहुजनों को शोषण-वंचना के दलदल में फंसाने का काम जोर-शोर से हुआ. बहुसंख्य वंचित वर्ग को आरक्षण से महरूम करने के लिए ही एयर इंडिया, रेलवे स्टेशनों और हास्पिटलों इत्यादि को निजी क्षेत्र में देने की शुरुआत हुई और आज अग्निवीर जैसी योजनाओं की झड़ी लग गयी है. कुल मिलाकर जो सरकारी नौकरियां वंचित वर्गों के धनार्जन का प्रधान आधार थीं, मोदीराज में उसके स्रोत आरक्षण को कागजों की शोभा बनाने का काम लगभग पूरा कर लिया गया है.
बहरहाल जिस मोदी राज में आरक्षण को लगभग कागजों की शोभा बना दिया गया, उसी मोदीराज में संविधान का मखौल उड़ाते हुए गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देने जैसा काम अंजाम दिया गया, जो एक तरह से भारतीय लोकतंत्र के साथ बलात्कार था.
राव की नवउदारवादी नीतियों को हथियार बनाकर जिस तरह मोदी ने वर्ग संघर्ष का इकतरफा खेल खेलते हुए शक्ति के समस्त स्रोत जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग- सवर्णों के हाथ में सौंपने और बहुजनों को गुलाम बनाने की दिशा में आगे बढ़े, उसके फलस्वरूप आज की तारीख में दुनिया के किसी भी देश में भारत के परम्परागत सुविधाभोगी जैसा शक्ति के स्रोतों पर पर औसतन 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा नहीं है.
मंडल के बाद वर्ग शत्रु बहुजनों को शेष करने के मकसद से मोदी राज में जो बहुजन विरोधी नीतियां ग्रहण की गईं, उसके फलस्वरूप आज अंतर्राष्ट्रीय जगत में भी भारत की स्थिति निहायत ही शर्मनाक हो गयी है. विश्व असमानता रिपोर्ट, ऑक्सफाम रिपोर्ट, ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट और हंगर ग्लोबल इंडेक्स, वर्ल्ड पावर्टी क्लॉक इत्यादि से पता चलता है कि भारत के नीचे की 50-60 प्रतिशत आबादी महज 5-6 प्रतिशत नेशनल वेल्थ पर जीवन निर्वाह करने के लिए अभिशप्त है, जबकि देश की आधी आबादी अर्थात 65 करोड़ महिलाओं को आर्थिक रूप से पुरुषों के बराबर आने में 257 साल लगेंगे. मोदी राज में लैंगिक समानता के मोर्चे पर बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, म्यांमार इत्यादि से भी पीछे चला गया भारत घटिया शिक्षा के मामले में मलावी नामक एक अनजान देश को छोड़कर विश्व में दूसरा स्थान अर्जित कर लिया है, जबकि 2022 जुलाई में यह गरीबी के मामले में नाईजेरिया को पीछे छोड़कर ‘वर्ल्ड पावर्टी कैपिटल’ बन चुका है अर्थात विश्व में जितने गरीब भारत में हैं, उतने और कहीं नहीं. कुल मिलाकर नीचे की जो 50-60 प्रतिशत आबादी 5-6 प्रतिशत धन-संपदा पर जीवन निर्भर करने के लिए मजबूर है, जिस आधी आबादी को आर्थिक समानता पाने में 257 साल लगने हैं, जिसके कारण भारत गरीबी और घटिया शिक्षा के मामले में वर्ल्ड टॉप बना है, वह और कोई नहीं भारत के दलित, आदिवासी, पिछड़े और इनसे धर्मान्तरित अल्पसंख्यक तबका है, जो 7 अगस्त,1990 के बाद भारत के शासक वर्ग, विशेषकर मोदी द्वारा छेड़े गए वर्ग संघर्ष के फलस्वरूप गुलामों की स्थिति में पहुँच गया है.
बहरहाल जिस आरक्षण के खात्मे के जरिये मोदी ने बहुजन समाज के रूप में विद्यमान विश्व की विशालतम वंचित आबादी को सवर्णहित में गुलामों की स्थिति में पहुचाया है, उस वंचित बहुजन समाज के मुक्ति के लिए यदि बहुजनवादी दल यह घोषणा करे कि वे 2024 सत्ता में आने पर मोदी सरकार द्वारा गुलामों की स्थिति में पहुचाये गए बहुजनों: दलित,आदिवासी,पिछड़ों और इनसे धर्मान्तरित तबकों को सेना व न्यायालयों सहित सरकारी और निजीक्षेत्र की सभी स्तर की,सभी प्रकार की नौकरियों; पौरोहित्य, डीलरशिप; सप्लाई, सड़क निर्माण इत्यादि के ठेकों, पार्किंग,परिवहन; शिक्षण संस्थानों, विज्ञापन व एनजीओ को बंटने वाली राशि, ग्राम-पंचायत,शहरी निकाय, संसद-विधानसभा की सीटों; राज्य एवं केन्द्र की कैबिनेट;विभिन्न मंत्रालयों के कार्यालयों; विधान परिषद-राज्यसभा;राष्ट्रपति,राज्यपाल एवं प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री के कार्यालयों इत्यादि के कार्यबल में संख्यानुपात में आरक्षण देंगे, मोदी बुरी तरह हार जायेंगे. इसके साथ यदि घोषणा कर दें कि शक्ति के स्रोतों पर 70-80% कब्ज़ा जमायें 7.5% आबादी वाले सवर्ण पुरुषों को अवसरों और संसाधनों के बंटवारे में उनके संख्यानुपात पर रोककर उनके हिस्से का 60-70% अतिरिक्त(सरप्लस) अवसर मोदी द्वारा गुलामों की स्थिति में पहुचाये गए जन्मजात वंचित वर्गों के मध्य वितरित करेंगे, तब पता चलेगा भाजपा को हराने जैसे आसान पॉलिटिकल टास्क कुछ हो ही नहीं सकता!
- एच.एल. दुसाध
(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)