मानसून के बादल भी क्या बांझ होने लगे हैं? नवजात शिशुओं के लिए कितनी सुरक्षित है पृथ्वी?

hastakshep
02 Jul 2021

 जलवायु परिवर्तन का जलवा (climate change storm), अमेरिका और कनाडा में भी 49 डिग्री सेल्सियस तापमान और लू से मर रहे लोग। पूर्वी अमेरिका के रेगिस्तान और कनाडा के पठारी पहाड़ी इलाकों में भी इतनी गर्मी अभूतपूर्व है।

सात-सात पृथ्वी के संसाधन हड़पने के बाद पूरे अंतरिक्ष को उपनिवेश बनाने वाले महाशक्तिमान के कार्बन उत्सर्जन की यह परमाणु ऊर्जा है।

मानसून के बादल भी क्या बांझ होने लगे हैं?

हिमालय के रोम-रोम में एटीएम बम के धमाके कैद हैं और मानसून के बादल भी बरस नहीं रहे हैं।

हिमालय और हिन्द महासागर के मध्य गंगा यमुना, सिंधु रवि व्यास सतलज और ब्रह्मपुत्र के हरे भरे मैदानों की हरियाली छीजती जा रही है।

ग्लेशियर पिघल रहे हैं।

तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है।

मानसरोवर भी फट जाएगा किसी दिन।

देवलोक से शुरू होगा महाप्रलय।

कैलाश पर्वत के साथ पिघल जाएगा एवरेस्ट भी।

मानसून की घोषणा के बाद बरसात गायब है। जब आएगी बरसात तो कहर बरपा देगी।

कोरोना खत्म नहीं हुआ। बिना इलाज के मरने को अभिशप्त देश में कोरोना क्या, हर बीमारी महामारी है।

हिमालय की तबाही के साथ इस झुलसने वाले जलवायु में मैदानों के रेगिस्तान बनने पर हम कैसे जी सकेंगे?

हमने अपनी बात में इस पर थोड़ी चर्चा की है। आगे गम्भीर चिंतन मनन और पर्यावरण एक्टिविज्म की जरूरत होगी रोज़मर्रे की ज़िंदगी में मौत का मुकाबला करते हुए।

घर में बादल उमड़ घुमड़ रहे हैं। बिजलियां चमक रही हैं।

बिजली गुल है। उमस के मारे में घने अंधेरे में नींद भी नहीं आती। फिलहाल हवा कभी तेज़ है तो कभी पत्ती भी हिलती नहीं है।

मानसून के बादल भी क्या बांझ होने लगे हैं?

प्रकृति किस तरह बनाएगी संतुलन?

नवजात शिशुओं के लिए कितनी सुरक्षित है पृथ्वी?

पलाश विश्वास

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