नहीं रहे हमारे प्रियतम अभिनेता दिलीप कुमार। सौ साल पूरे वे नहीं कर सके,अफसोस। फिरभी लम्बी ज़िन्दगी जी उन्होंने। वे भारतीय सिनेमा के आईना हैं अपनी कामयाबी और लोकप्रियता के पैमाने पर बहुत कम फिल्में की। लेकिन हर फिल्म भारतीय समाज और संस्कृति की सार्थके अभिव्यक्ति है, जिनके बिना भारतीय फिल्मों की चर्चा ही नहीं की जा सकती।
Advertisment
बिना चीखे चिल्लाए भावनाओं,वेदनाओं, सम्वेदनाओं और प्रेम की अभिव्यक्ति सेल्युलाइड की भाषा के मुताबिक करने वाले दिलीप कुमार को हमारा अंतिम प्रणाम।
Advertisment
अफसोस कि उनके अवसान की यह खबर सच है, इससे पहले अफवाहें फैलती रही है। अबकी बार मृत्यु के इस खबर के झूठ बन जाने की कोई संभावना नहीं है।
Advertisment
मैंने और सविता जी ने उनकी कोई फ़िल्म मिस नहीं की। उनके अलावा स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी,राज कपूर, उत्तम कुमार,सुचित्रा सेन,मीना कुमारी,मधुबाला और सुचित्रा सेन,वैजयंती माला की कोई फ़िल्म हमने मिस नहीं की। ये तमाम लोग भारतीय फिल्मों के जीते जागते मानक हैं।
Advertisment
दिलीप कुमार को याद करते हुए देवदास की याद आती है। शरत के किसी पात्र को,साहित्य के किसी किरदार को इतनी संजीदगी से शायद ही और किसी ने जिया हो।
Advertisment
इसी तरह गौर किशोर घोष के क्लासिक उपन्यास सगीना महतो हो या फिर मुगले आज़म के सलीम। उनके किरदार उनके साथ अमर हैं।
जोगन,नया दौर,कोहिनूर,आदमी,यहूदी, गोपी कितनी फॉमें,कितने रंग। गंगा जमुना में ठेठ भोजपुरी में सम्वाद।