UP Assembly Election 2022: How did LK Advani characterize the current Prime Minister Narendra Modi?
लालकृष्ण आडवाणी ने मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चरित्रांकन किस तरह किया था?
बुजुर्ग भाजपा नेता, लालकृष्ण आडवाणी (Elderly BJP leader, LK Advani) ने जब मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चरित्रांकन यह कहकर किया था कि वह 'ईवेंट मैनेजर बहुत अच्छे हैं', उनके कथन के व्यंग्यार्थ को समझने में शायद ही किसी से चूक हुई हो। बहरहाल, उसके बाद से केंद्र में अपने सात साल से ज्यादा के लगभग निर्द्वन्द्व राज में और उसमें भी विशेष रूप से अपने दूसरे कार्यकाल के दो साल से ज्यादा में, नरेंद्र मोदी ने यह साबित कर दिया है कि व्यंजना में ही नहीं, अभिधा में भी आडवाणी का कथन बिल्कुल सटीक था।
मोदीजी की उत्सवजीविता
नरेंद्र मोदी का असली कौशल (The real skills of Narendra Modi), ईवेंट या उत्सवों के आयोजन में ही दिखाई देता है। उनका, राज मीडिया पर और सरकारी खजाने पर अपने मुकम्मल तथा निरंकुश नियंत्रण के जरिए, शब्दश: किसी भी चीज को ईवेंट या उत्सव में बदल सकता है। और जाहिर है कि ये उत्सव, अकारण आयोजित नहीं किए जाते हैं।
थोड़े-थोड़े अंतराल पर आयोजित किए जाने वाले ये उत्सव, सत्ताधारियों के नजरिए के प्रचार-प्रसार का, उनके सत्ता में होने को वैधता प्रदान करने के जरिए उनकी सत्ता को मजबूत करने का और उसी हद तक, अपनी वास्तविक दशा तथा तकलीफों से जनता का ध्यान हटाने का काम करते हैं। तमाशे या अंग्रेजी शब्द का सहारा लें तो स्पेक्टकल के आयोजन का, फासीवादी कार्यपद्धति (fascist method) में हमेशा से महत्वपूर्ण स्थान रहा है क्योंकि यह एक प्रकार के नशे का काम करता है, जनता की आलोचनात्मक तरीके से हालात को देखने की क्षमताओं को भोंथरा करता है।
पूरे साल चलने हैं तमाशे
कोरोना की पहली लहर (first wave of corona) के दौरान 'घंटा-थाली बजाओ उत्सव', 'दीया-बाती उत्सव', 'आकाश पुष्प वर्षा उत्सव' से लेकर, दूसरी लहर के दौरान राम जन्मभूमि मंदिर भूमि पूजन उत्सव से लेकर कम से कम तीन मौकों पर आयोजित 'टीका उत्सव' तक, जिनमें से ताजातरीन तो वास्तव में प्रधानमंत्री मोदी के 71वें जन्म दिन का उत्सव (Celebration of 71st birthday of PM Modi) ही था, उत्सवों के आयोजन में इस सरकार की दक्षता की भी गवाही देते हैं और दारुण हालात के लिए जिम्मेदार अपनी घनघोर विफलताओं को छुपाने के लिए, ऐसे तमाशों के आयोजन पर उसकी निर्भरता की भी। और इस सब के बीच हर कीमत पर जारी रखे गए, नये सेंट्रल विस्टा के निर्माण के शर्मनाक स्पेक्टकल को कोई कैसे भूल सकता है, जिसे शायद सारे उत्सवों की मां कहा जाना चाहिए। वैसे वह 2022 में आने वाली स्वतंत्रता की 75वीं सालगिरह के तमाशे का हिस्सा है, जिसकी इस पूरे साल ही चलने वाली है।
ईवेंट मैनेजमेंट में नरेंद्र मोदी के योग्य शिष्य साबित हो रहे हैं योगी आदित्यनाथ | Yogi Adityanath is proving to be a worthy disciple of Narendra Modi in event management
अचरज नहीं कि योगी आदित्यनाथ, दूसरी अनेक चीजों की तरह, ईवेंट मैनेजमेंट के कौशल तथा उस पर निर्भरता के मामले में भी, नरेंद्र मोदी के योग्य शिष्य साबित हो रहे हैं। वास्तव में कम से कम एक तमाशे के आयोजन के मामले में तो योगी, शासन की राजनीति के अपने गुरु, मोदी से भी आगे निकल गए हैं। मोदी सरकार, हर साल सालगिरह मनाने पर ही अटकी रही, हालांकि इन आयोजनों की अवधि को उसने ज्यादा से ज्यादा फैलाने का प्रयास किया है, लेकिन योगी जी ने अद्धा-सालगिरह के भी योजनाओं की शुरुआत कर दी है। अब यह तो वक्त ही बताएगा कि अद्धा-सालगिरह के ये आयोजन, उत्तर प्रदेश के चुनाव के इस वर्ष पर ही खत्म हो जाएंगे या योगी जी को इस ईवेंट को आगे भी जारी रखने का मौका मिलेगा। लेकिन, अचरज नहीं होगा कि अन्य भाजपायी सरकारें भी अद्धा-सालगिरह के तमाशे के आयोजन के विचार को ले उड़ें। सरकारी खजाने से करोड़ों के विज्ञापन छपवाने और अपनी उपलब्धियों के नाम पर लंबी-लंबी हांकने का एक और मौका मिलता हो, तो वे क्यों परहेज करेंगे।
खैर! चुनाव वर्ष में आदित्यनाथ ने करीब तीन हफ्ते चलने वाले ''विकासोत्सव'' का ही ऐलान नहीं किया है, उन्होंने अपने कथित रिपोर्ट कार्ड में इसका भी ऐलान कर दिया है कि उन्होंने साढ़े चार साल के अपने शासन में उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बना दिया है और राज्य में सुशासन कायम कर दिया है।
यूपी के बारे में क्या कहती है NCRB की 'क्राइम इन इंडिया-2020' रिपोर्ट | What NCRB's 'Crime in India-2020' report says about UP
विडंबना यह है कि आदित्यनाथ के सुशासन कायम करने के दावे के साथ ही, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट, 'क्राइम इन इंडिया-2020' आ गयी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2020 में उत्तर प्रदेश में हत्या और अपहरण (Murder and kidnapping in Uttar Pradesh) के देश भर में सबसे ज्यादा मामले दर्ज हुए थे और महिलाओं के खिलाफ अपराध के भी सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए थे। यह संख्या 49,385 थी। हां! बलात्कार के मामलों में जरूर उत्तर प्रदेश, दूसरे नंबर पर था। दलितों के साथ अपराध के मामले भी सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में ही दर्ज हुए थे। यह आंकड़ा, 12,714 था।
इसी प्रकार, मोदी राज की सच्चाई से ठीक उल्टे हवाई दावे करने की गौरवशाली परंपरा में, आदित्यनाथ ने प्रदेश को भ्रष्टाचार-मुक्त कर देने का भी दावा किया है। इसके जवाब में, सीपीआई (एम) के उत्तर प्रदेश राज्य सचिव, हीरालाल यादव ने ट्वीट कर योगी राज में उजागर हुए कुछ प्रमुख घोटालों की याद दिलायी है। ये घोटाले हैं: ''2600 करोड़ का भविष्य निधि घोटाला, 14148 करोड़ से ज्यादा का कुंभ मेला घोटाला, 656 करोड़ का केंद्रीय सड़क निधि घोटाला, 59 करोड़ का मनरेगा घोटाला, 2.2 करोड़ का सेतु निगम घोटाला'' आदि।
और युवाओं को रोजगार देने के इस सरकार के दावों के संबंध में तो, तरह-तरह के भर्ती-उम्मीदवारों तथा शिक्षा मित्रों आदि के लगातार जारी रहे प्रदर्शनों पर योगी पुलिस के आए दिन लाठी बरसाने के बाद, कुछ कहने की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए।
रही बात किसानों के हितों की रक्षा के दावों की तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश से निकलकर अब मध्य तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी तेजी से पांव पसार रहा किसान आंदोलन, खुद ही इन दावों का जवाब है।
बहरहाल, ऐसे तमाशों या उत्सवों के जरिए, प्रचार के जरिए सच को झुठलाने और झूठ को सच बनाने की कोशिश तो की जा सकती है, लेकिन इसके लिए सिर्फ झूठ के प्रचार पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। खासतौर पर ऐसे शासनों को, जिनकी दिशा आम आदमी यानी मेहतनकश जनता के वास्तविक हितों से ठीक उल्टी होती है, जनता को बांटने में समर्थ एक बड़े तथा बुनियादी झूठ की जरूरत होती है, ताकि आम जनता के सामने, उसकी तकलीफों का कारण बनाकर, एक झूठा दुश्मन खड़ा किया जा सके। संघ-भाजपा का सांप्रदायिक तथा जातिवादी आधार, सहज ही ऐसा झूठ मुहैया कराता है।
बहरहाल, आदित्यनाथ ने शासन में रहते हुए, इस सांप्रदायिक तथा जातिवादी झूठ को फैलाने में, विशेष दक्षता का प्रदर्शन किया है। गोरक्षा, धर्मांतरण/ घर वापसी, लव जेहाद, लव जेहादविरोधी कानून, आबादी कानून, आदि, एक के बाद एक मुस्लिमविरोधी हथियार, योगी राज में तैयार किए गए हैं और वास्तव में इनमें से कई के मामले में अधिकांश भाजपायी सरकारों ने, जाहिर है कि सुप्रीमो के मूक अनुमोदन से, योगी राज का अनुकरण भी किया है।
मोदी ने 2017 के उत्तर प्रदेश के चुनावों में सांप्रदायिक राग छेड़ा था
यह भी नहीं भूलना चहिए कि 2017 के उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए अपने प्रचार अभियान में खुद प्रधानमंत्री मोदी ने 'श्मशान-कब्रिस्तान' और 'दीवाली-रमजान' का सांप्रदायिक राग छेड़ा था। वास्तव में इस बार के लिए कुछ इशारा तो मोदी ने पिछले ही दिनों, अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के शिलान्यास समारोह में अपने संबोधन में दे भी दिया है। 2013 के मुजफ्फरनगर-शामली के दंगों की पृष्ठभूमि में, भाजपा नेताओं द्वारा किए जा रहे इस झूठे प्रचार का आदित्यनाथ ने अपने चुनाव प्रचार में जमकर इस्तेमाल किया था कि मुसलमान गुंडों के आतंक के चलते, अनेक जगहों से हिंदू घर छोड़कर पलायन करने पर मजबूर हुए थे। बाद में इसमें कोई तथ्य न होने के चलते, योगी-मोदी की डबल इंजन सरकार के रहते हुए भी, यह प्रचार फुस्स हो गया। अब प्रधानमंत्री ने यह कहकर कि अब योगी के राज में किसी को पलायन नहीं करना पड़ रहा है, उस झूठे मुस्लिमविरोधी प्रचार को फिर से हवा दे दी है।
स्वाभाविक रूप से आदित्यनाथ अपनी खुली सांप्रदायिक दुहाई में, इससे कई कदम आगे निकल गए हैं। विकासोत्सव के ऐलान से एक हफ्ते पहले, कुशीनगर में एक जनसभा में योगी ने कहा : ''वर्ष 2017 से पहले क्या सभी राशन ले पाते थे? पहले केवल अब्बा जान कहने वाले ही राशन हजम कर रहे थे।''
जाहिर है कि हिंदुओं को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करने की इससे नंगी कोशिश दूसरी नहीं हो सकती है। वैसे आदित्यनाथ इससे पहले नौकरियों के मामले में इसी तरह का दावा कर चुके थे कि पहले मुसलमान सारी नौकरियां ले जाते थे। बहरहाल, चूंकि यह सांप्रदायिक खेल वास्तव में भाजपा के चुनाव प्रचार का हिस्सा है, इसलिए आदित्यनाथ इस अल्पसंख्यकविरोधी हमले के निशाने का अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, खासतौर पर समाजवादी पार्टी तक विस्तार करना नहीं भूले। इसके लिए राम मंदिर की दुहाई से ज्यादा उपयोगी और क्या हो सकता था? उन्होंने कहा, ''क्या आपको लगता है कि राम भक्तों पर गोलियां चलाने वालों ने राम मंदिर बनाया होता?
गोली चलाने और दंगे कराने वालों ने कश्मीर से धारा-370 को हटाया होता? तालिबान का समर्थन करने वालों ने तीन तलाक को खत्म कर दिया होता?''
यानी राम मंदिर, धारा-370, तीन तलाक, लव जेहाद, आदि सभी का इस्तेमाल किया जाएगा, लेकिन मोदी-योगी की डबल इंजन मशीन को इतने पर भी अब इसका भरोसा नहीं है कि उत्तर प्रदेश में उनका झूठ चुनाव में सच की तरह चल ही जाएगा। इसलिए, सीधे मुस्लिमविरोधी दुहाई का इस्तेमाल किया जा रहा है और आगे-आगे और जोरों से किया जाएगा।
चुनाव से पहले अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह योगी को जो नहीं बदला गया है, उसका यही रहस्य है। मुख्यमंत्री के पद के दावेदार के रूप में योगी की मौजूदगी, अपने आप में एक मुस्लिमविरोधी बयान है।
राजेंद्र शर्मा