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योगी सरकार के विज्ञापन पर क्यों फंसे योगी आदित्यनाथ ? Why Yogi Adityanath stuck on Yogi Sarkar's advertisement?
एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार के रविवार के अंक में योगी सरकार की उपलब्धियों का एडवरटोरियल यानी विज्ञापन छपा | In the Sunday issue of a reputed English newspaper, an advertisement of the achievements of the Yogi government was published.
देशबन्धु में संपादकीय आज | Editorial in Deshbandhu today
अगले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं। और इससे पहले लोगों को लुभाने के लिए योगी सरकार विज्ञापनों के जरिए पांच साल के दौरान किए गए कामों को गिना रही है। कई बड़े अखबारों को पूरे-पूरे पन्नों का विज्ञापन सरकार की ओर से दिए जा रहे हैं। इसी सिलसिले में एक प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार के रविवार के अंक में एडवरटोरियल यानी विज्ञापन छपा। इसमें योगी सरकार के पांच साल के दौरान किए गए काम (Work done during five years of Yogi government) को गिनाया गया। लेकिन इसके लिए जिस एक तस्वीर को दिखाया गया उसी पर विवाद हो गया।
कोलकाता के फ्लाईओवर को बताया यूपी का
विज्ञापन के निचले हिस्से में कई तस्वीरों के कोलाज में एक तस्वीर कोलकाता के फ्लाईओवर (Kolkata Flyover) की है। दरअसल जो फ्लाईओवर इस विज्ञापन में दिखता है उसमें सड़क के किनारों को नीला-सफेद रंग से रंगा गया है और उस पर पीले रंग की टैक्सियां नजर आ रही हैं, जो कोलकाता की खास पहचान है।
सोशल मीडिया पर हुई योगी सरकार की खूब खिंचाई
विज्ञापन में इस गलती के पकड़ में आते ही योगी सरकार की खूब खिंचाई सोशल मीडिया पर होने लगी। किसी ने इसे चोरी का विकास बताया, किसी ने विकास का फर्जीवाड़ा। बहुत से लोगों ने विदेशों की कई तस्वीरों को उत्तरप्रदेश के शहरों की तस्वीर बताते हुए योगी सरकार का मजाक उड़ाया।
तृणमूल कांग्रेस ने भी किया भाजपा पर प्रहार
चूंकि फ्लाईओवर कोलकाता के हैं तो तृणमूल कांग्रेस को भाजपा पर प्रहार करने का एक और मौका मिल गया। टीएमसी के कई नेताओं ने योगी सरकार पर तंज किए कि ममता बनर्जी के विकास को योगीजी अपना विकास बता रहे हैं।
अखबार ने मांगी ट्विटर पर माफी
बहरहाल, इस गलती पर अखबार ने ट्विटर पर माफी मांगते हुए सूचित किया कि मार्केटिंग विभाग ने गलती से गलत कोलाज का इस्तेमाल किया है। और इसे सभी जगह से हटाया जा रहा है। चूंकि इस विज्ञापन को उत्तर प्रदेश सरकार ने जारी किया था, इसलिए सरकार से भी ऐसे ही किसी स्पष्टीकरण की अपेक्षा थी, लेकिन राज्य के सूचना विभाग ने प्रकाशक अख़बार द्वारा ट्वीट की गई 'गलती की स्वीकारोक्ति' को रीट्वीट किया। हालांकि इसके अलावा सरकार की ओर से और ज़्यादा प्रतिक्रिया नहीं आई है।
मोदीजी के विज्ञापनों में भी हो चुकी है ऐसी ही चूक
विज्ञापनों में ऐसी गफलत पहली बार नहीं हुई है, इससे पहले भाजपा के एमएसपी के एक विज्ञापन में खुशहाल किसान की तस्वीर दिखाई गई थी, जबकि तस्वीर में दिखाया गया किसान सिंधु सीमा पर किसान आंदोलन में शामिल था।
प.बंगाल में पीएम आवास योजना के एक विज्ञापन में मोदीजी की तस्वीर के साथ जिस महिला की तस्वीर लगाई गई, असल में वो किराए के घर में रहती है। 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार की ओर से सड़कों की चमचमाती तस्वीर वाला विज्ञापन दिया गया था, जिस पर कांग्रेस ने चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया था कि तस्वीर में दिखाई गई सड़कें विदेशों की हैं।
जमाना सूचना क्रांति की तेज रफ्तार का है, जहां बारीक से बारीक गलती पकड़ने और फिर उसका तमाशा बनाने में दो पल नहीं लगते। इसलिए भाजपा हो या कोई और दल, बड़ी-बड़ी डींगे हांकने से पहले हर पहलू पर विचार कर लेना चाहिए। और इससे भी बेहतर ये हो कि विकास और सुख-समृद्धि के बड़े दावे करने या जनता को तस्वीरों में खुशहाल दिखाने की जगह इस बात पर सरकार अधिक ध्यान दें कि हकीकत में खुशहाली फैले।
उत्तरप्रदेश में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल बुरा है | The condition of the health system in Uttar Pradesh is bad.
अभी बात उत्तरप्रदेश की चल रही है, तो इस वक्त राज्य के हालात ऐसे हैं कि कई बच्चे बुखार में दम तोड़ चुके हैं और कई बच्चों के मां-बाप इलाज के लिए दर-दर भटक रहे हैं। अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता, जब कोरोना की दूसरी लहर में नदियों के किनारे दफन लाशें प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल बयां कर रही थीं। महंगाई, बेरोजगारी और महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सारे देश में आम जनता त्रस्त है और उत्तरप्रदेश भी इससे अलग नहीं है। ऐसे में तस्वीरों में राज्य की बदलती सूरत दिखाने से हालात नहीं बदलने वाले।
क्या योगीजी वाकई जनता को खुशहाल देखना चाहते हैं?
अगर योगीजी वाकई जनता को खुशहाल देखना चाहते हैं तो वे जमीनी मुद्दों पर बात करें। लेकिन वे भाजपा के ट्रंप कार्ड यानी सांप्रदायिक उन्माद वाली भाषा से खुद को बचा नहीं पा रहे हैं।
योगी जी को माफी क्यों मांगनी चाहिए? Why should Yogi ji apologize?
रविवार को कुशीनगर में एक जनसभा में उन्होंने कहा ''आज हर गरीब को मुफ़्त राशन मिल रहा है। 2017 के पहले अब्बाजान कहने वाले गरीबों का राशन हजम कर जाते थे। उनके चेलों में बंटकर यह राशन नेपाल व बांग्लादेश चला जाता था। आज कोई गरीबों का राशन निगलने की कोशिश करेगा तो निगल भले न सके, लेकिन जेल जरूर चला जाएगा।''
क्या ये किसी निर्वाचित मुख्यमंत्री की भाषा होनी चाहिए। लेकिन जब देश के प्रधानमंत्री कपड़ों से लोगों की पहचान करने की बात कहते हैं तो उनके मुख्यमंत्री भी ऐसा ही कहेंगे।
योगीजी का निशाना भले समाजवादी पार्टी पर था, लेकिन अब्बाजान कहने वालों पर राशन हजम करने का आरोप लगाकर उन्होंने निश्चित ही एक समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। जिसकी अविलंब माफी उन्हें मांगना चाहिए। चाहे कोई अब्बाजान कहे या जयश्रीराम कहे या किसी और भाषा में अपने पिता या ईश्वर को याद करे, बेईमानी करने वाले हर धर्म और हर भाषा में होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे ईमानदारी किसी भी तबके में मिल सकती है। योगीजी को अगर भ्रष्टाचारियों पर अपनी सख्ती दिखाना थी, तो वे किसी और तरह से अपना गुणगान कर सकते थे, लेकिन सत्ता के मद में उन्होंने अनावश्यक सांप्रदायिक विवाद छेड़ दिया।
आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप साभार.