Devbhoomi without monsoon is hell
पलाश विश्वास
शुभ सकाल। लगातार चौथी रात बिजली कटौती के कारण सो नहीं सके। बारिश न होने से खेतों को पानी चाहिए धन के लिए। बिजली के बिना सिंचाई अब होती नहीं। नदियां मार दी गईं। तालाब, कुंए और नहरें खत्म।
गर्मी बढ़ती जा रही है। बादल बरस नहीं रहे। जलवायु और मौसम की मार से न गांव बचेंगे न खेत।
कोलकाता से आने के बाद इतनी तकलीफ कभी नहीं हुई। मानसून के रूठ जाने से बिजली के भरोसे खेती कैसे होगी? जबकि गांव देहात में भी घर बाहर सारे काम बिजली से हैं। ऊपर से बिजली वालों की मनमानी।
बीमार और बजुर्गों की शामत है। सांस की तकलीफ वालों के लिए ये हालात बहुत मुश्किल है।
रात को सविता जी की सांसें उखड़ रही हैं।
घर से बाहर खुले में भी भयानक उमस है। मच्छर की वजह से टहल भी नहीं सकते।
कोरोना की तीसरी लहर के साथ सारी पुरानी महामारियां दस्तक दे रही हैं। हर बीमारी महामारी में तब्दील है। इसका जलवायु, मौसम और शहरी उपभोक्ता जीवन से गहरा नाता है।
गांव में अब न मिट्टी है न गोबर। न नीम और पीपल वट की छांव है। न जैव विविधता है। न चिड़िया हैं और न पालतू पशु।
गांव भी अब सीमेंट का जंगल है और बिजली रानी वह तोता है, जिसमें गांव के प्राण बसे हैं।
बिना मानसून देवभूमि पूरी तरह नरक है।