
Jan Ki Baat/Asia Net News Survey: Is Yogi Really Coming Back?
क्या योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश में दोबारा मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं? क्या योगी आदित्यनाथ को अखिलेश यादव से मिल रही चुनौती योगी के लिए ख़तरा है? जन की बात/एशिया नेट न्यूज़ का ताजा सर्वे में इसका जवाब मिल जाता है। सर्वे के आंकड़े उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की बढ़त बता रहे हैं। लेकिन, इन्हीं आंकड़ों से जो रुझान दिखते हैं उससे स्पष्ट होता है कि योगी आदित्यनाथ के पैरों तले ज़मीन खिसकती जा रही है।
जन की बात के सीईओ और सैफोलॉजिस्ट प्रदीप भंडारी (Pradeep Bhandari, CEO and Saffologist, Jan Ki Baat) ने सर्वे में बताया है कि योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के तौर पर दोबारा देखने की हसरत पाले 48% लोग यूपी में हैं। अखिलेश यादव के लिए यही आंकड़ा 40% है जबकि मायावती के लिए 8% और प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए 4% है।
जाहिर है कि आंकड़े स्पष्ट कह रहे हैं कि प्रदेश में सबसे अधिक लोकप्रिय योगी आदित्यनाथ हैं। मगर, दूसरे प्रदेशों में मुख्यमंत्रियों की लोकप्रियता के लिए चुनाव पूर्व हुए सर्वे में ऐसे ही आंकड़ों के रुझानों को समझें तो स्थिति विपरीत है और योगी आदित्यनाथ के लिए अपनी कुर्सी बचाना मुश्किल होता दिख रहा है। वास्तव में निवर्तमान मुख्यमंत्री के लिए लोकप्रियता का पैमाना चुनाव में जीत की गारंटी हो, ऐसा नहीं होता।
जन की बात/एशिया नेट न्यूज़ का सर्वे
यूपी का अगला मुख्यमंत्री कौन होना चाहिए?
योगी आदित्यनाथ 48%
अखिलेश यादव 40%
मायावती 8%
प्रियंका गांधी वाड्रा 4%
सर्वे के आंकड़ों से स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी से लोकप्रियता में महज 8 फीसदी की बढ़त हासिल है। क्या यह बढ़त योगी आदित्यनाथ को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के लिए काफी है? इसका उत्तर जानने के लिए कुछ उदाहरणों पर गौर करते हैं।
उदाहरण नंबर 1 : 2017 में मायावती से 5% अधिक लोकप्रिय थे अखिलेश पर हार गये चुनाव
यूपी विधानसभा चुनाव 2017
एबीपी न्यूज-लोकनीति-सीएसडीएस का सर्वे
अखिलेश यादव 26%
मायावती 21%
राजनाथ सिंह 03%
2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को याद करें तो जनवरी में एबीपी न्यूज़-लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को मायावती के मुकाबले केवल 5 फीसदी अधिक की लोकप्रियता थी। अखिलेश चुनाव हार गये।
उदाहरण नंबर 2 : हेमंत सोरेन से 14% अधिक लोकप्रिय थे रघुवर पर जीत न सके चुनाव
झारखण्ड विधानसभा चुनाव 2018
पीएसई का ओपिनियन पोल
रघुवर दास 38%
हेमंत सोरेन 28%
झारखण्ड में 2018 में हुए पीएसई के सर्वे में मुख्यमंत्री रघुवर दास को हेमंत सोरेन के मुकाबले 10 फीसदी अधिक लोकप्रियता हासिल थी। फिर भी न सिर्फ रघुवर दास के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार चुनाव हार गयी, बल्कि खुद रघुवर दास भी अपनी सीट नहीं बचा पाए।
उदाहरण नंबर 3 : लोकप्रियता में 13 फीसदी के अंतर के बावजूद शिवराज सिंह चौहान की वापसी नहीं हुई
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2018
एबीपी न्यूज़-सीएसडीएस का सर्वे
शिवराज सिंह चौहान 37%
ज्योतिरादित्य सिंधिया 24%
कमलनाथ 10%
2018 में विधानसभा चुनाव से 17 दिन पहले हुए एबीपी न्यूज-सीएसडीएस के सर्वे में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 37 फीसदी लोकप्रियता हासिल थी। लोकप्रियता में ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले वे 13 फीसदी आगे थे। जबकि सिंधिया और कमलनाथ की साझा लोकप्रियता से भी शिवराज को 3 फीसदी की बढ़त थी। फिर भी शिवराज सरकार चुनाव में हार गयी।
उदाहरण नंबर 4 : 40% की लोकप्रियता और जोगी-बघेल से 6% आगे रहकर भी हारे रमन
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018
एबीपी न्यूज़-सीएसडीएस का सर्वे
रमन सिंह 40%
अजित जोगी 20%
भूपेश सिंह बघेल 14%
रमन सिंह की लोकप्रियता 40 प्रतिशत थी। जबकि, अजित जोगी की 20 प्रतिशत और भूपेश बघेल की 14 प्रतिशत। स्पष्ट लोकप्रियता के बावजूद रमन सरकार चुनाव में हार गयी।
वहीं पश्चिम बंगाल में 53 प्रतिशत, केरल में 51 प्रतिशत और असम में 43 प्रतिशत लोग ममता बनर्जी, पिनराई विजयन और सर्वांनंद सोनोवाल को दोबारा मुख्यमंत्री देखना चाहती थी। लोकप्रियता में अपने विरुद्ध चेहरों पर ममता बनर्जी को 20%, पिनराई विजयन को 11.5% और सर्वानंद सोनोवाल को 17% की बढ़त हासिल थी। इन सभी मुख्यमंत्रियों ने चुनाव में जीत हासिल की। हालांकि असम में बीजेपी ने जीत के बाद सर्वानंद सोनोवाल को दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाया।
महामारी को लेकर जनता का गुस्सा छिपाए नहीं छिपता
जन की बात और एशिया नेट न्यूज़ के साझा सर्वे में महामारी को लेकर योगी सरकार की राय भी ली गयी है। इसमें जनता का गुस्सा छिपाने के लिए विकल्प में ही चालाकी दिखलायी गयी है। ‘अच्छा’, ‘बहुत अच्छा’, ‘खराब’ की श्रेणी तो है लेकिन ‘बहुत खराब’ की श्रेणी न रखकर ‘सामान्य’ की श्रेणी रखी गयी है। ऐसा तो हो नहीं सकता कि बहुत खराब
जन की बात/एशिया नेट न्यूज़
महामारी पर योगी सरकार के बारे में राय
अच्छा 22%
बहुत अच्छा 23%
सामान्य 32%
खराब 23%
सर्वे में जनता ने खुलकर राय रखी है। महामारी में योगी सरकार के काम को ‘अच्छा’ और ‘बहुत अच्छा’ बोलने वाले 45 फीसदी हैं। जबकि ऐसा नहीं बोलने वाले 55 फीसदी हैं। इसमें अगर ‘सामान्य’ को सरकार के विरोध में समझें तो योगी सरकार के लिए जनता गुस्सा शबाब पर दिखता है। वहीं, इस ‘सामान्य’ को विरोध के रूप में न समझें तो शक का लाभ योगी सरकार को मिल जाता है।
राम मंदिर मुद्दा भी क्या योगी की नैय्या पार लगा पाएगी?
राम मंदिर यूपी में बड़ा मुद्दा जरूर है लेकिन इसे ज्यादा और बहुत ज्यादा प्रभावी मानने वाले 55 फीसदी है। यह आंकड़ा जाहिर है कि बीजेपी की उम्मीदों के अनुरूप नहीं है क्योंकि इसे कम और बहुत कम प्रभावी मानते हुए स्पष्ट राय रखने वालों की तादाद भी 45 प्रतिशत है।
यूपी चुनाव : राम मंदिर का मुद्दा कितना प्रभावी?
जन की बात/एशिया नेट न्यूज़
बहुत ज्यादा 33%
ज्यादा 22%
कम 32%
बहुत कम 13%
इस सर्वे को देखकर ऐसा कतई नहीं लगता कि राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी के लिए निर्णायक होने जा रहा है या फिर बीजेपी को चुनाव में स्पष्ट बढ़त दिला रहा है। आंकड़े कह रहे हैं कि इस मुद्दे पर प्रदेश की राय बंटी हुई है।
बदलता जातीय समीकरण भी बीजेपी के लिए खतरे की घंटी
सर्वे में जातिगत आधार पर पसंद-नापसंद के आंकड़े भी योगी सरकार के लिए बहुत संतोषजनक नहीं लगते। सर्वे के आंकड़े योगी सरकार के लिए खतरे की घंटी है। समाजवादी पार्टी के लिए ब्राह्मणों का 20% समर्थन जहां उत्साहजनक है वहीं 60% जाटों का रुझान बता रहा है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में बाजी पलट चुकी है। जाटव वोटों में भी समाजवादी पार्टी की घुसपैठ 25% के रूप में दिख रही है। यादव और मुसलमान क्रमश: 90% और 80% समर्थन के साथ समाजवादी पार्टी को बेहद मजबूत स्थिति में खड़ा कर रहे हैं।
यूपी चुनाव : कौन जाति किसके साथ?
जन की बात/एशिया नेट न्यूज़
जातियां बीजेपी एसपी बीएसपी कांग्रेस अन्य
जाट 30% 60% 5% 5%
यादव 10% 90%
ब्राह्मण 70% 20% 6% 4%
जाटव sc 30% 25% 35% 10%
नॉन जाटव sc 40% 35% 20% 10%
अन्य OBC 70% 10% 5% 10%
मुस्लिम 03% 80% 10% 7%
जाटव वोट बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बीएसपी में क्रमश: 30%, 25% और 35% समर्थन के रूप में बंटता दिख रहा है। समाजवादी पार्टी के लिए इस जाति वर्ग में बढ़ा समर्थन चौंकाने वाला है। वहीं गैर जाटव वोटों में भी बीजेपी और समाजवादी पार्टी में महज 5 फीसदी का अंतर है। यह बात भी बीजेपी के लिए चिंतित करने वाली है।
बीजेपी के लिए सर्वे में संतोष की बात है कि अन्य ओबीसी वर्ग (मौर्य, कुर्मी, कोयरी) में पार्टी का दबदबा बरकरार है। इस वर्ग के 70 फीसदी लोग बीजेपी के साथ हैं। वहीं ब्राह्मणों का वोट बैंक भी बहुत अधिक छिटकता नहीं दिख रहा है। ब्राह्मण वोटों का रुझान बीजेपी के लिए 70% है। ब्राह्मणों का अधिकाधिक वोट लेने के बावजूद बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है क्योंकि असंतोष निकटमत प्रतिदंद्वी समाजवादी पार्टी की ओर जमा होता दिख रहा है। जाट वोट भी बीजेपी से दूर हुए हैं। बीजेपी की तरफ इनका रुझान महज 30 फीसदी है। जाट समुदाय की नाराज़गी का खामियाजा पार्टी को चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
सर्वे में 45% लोगों ने कहा है कि योगी सरकार महंगाई को लेकर उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पायी है। यह आंकड़ा इसलिए भी बीजेपी के लिए चिंताजनक है क्योंकि महंगाई के लिए लोग सिर्फ राज्य सरकार को जिम्मेदार नहीं मानते। ऐसे में डबल एंटी इनकंबेंसी का खतरा नज़र आता है। आश्चर्यजनक ढंग से 25 % लोंग भ्रष्टाचार पर योगी सरकार को खरा उतरता नहीं मानते। यह आंकड़ा उस धारणा के विरुद्ध है कि योगी सरकार में भ्रष्टाचार कम हुआ है। 20 फीसदी लोग सड़क और 10 प्रतिशत अन्य मुद्दों पर योगी सरकार को उम्मीदों में सफल नहीं मानते।
(लेखक प्रेम कुमार जिन्हें टीवी, प्रिंट व डिजिटल पत्रकारिता में 25 साल का अनुभव है, जो पत्रकारिता पढ़ाते हैं और देश के राष्ट्रीय व क्षेत्रीय न्यूज़ चैनलों पर बतौर पैनलिस्ट सक्रिय रहते हैं।)
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