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पेगासस मामला : जस्टिस काटजू का लेख - क्यों ठंडा पड़ जाएगा ये मुद्दा

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hastakshep
31 Jul 2021

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पेगासस मामले मुद्दे के दो पहलू हैं, एक कानूनी और दूसरा यथार्थवादी। इस लेख में सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू दोनों कोणों से पेगासस मामले का विश्लेषण कर रहे हैं और बता रहे हैं कि ये मुद्दा ठंडा क्यों पड़ जाएगा ?

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पेगासस मामला

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न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू

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भारतीय समाचार पोर्टल thewire.in ने हाल ही में पेगासस मामले से संबंधित कई लेख प्रकाशित किए हैं.

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इस मुद्दे के दो पहलू हैं, एक कानूनी और दूसरा यथार्थवादी।

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हालांकि भारत सरकार ने यह स्वीकार नहीं किया है कि उसने इजरायली साइबरवेयर खरीदा है, परिस्थितिजन्य साक्ष्य (circumstantial evidence) उस दिशा की ओर इशारा करते हैं कि उसने ऐसा किया है। पेगासस (Pegasus) साइबरवेयर को केवल सरकारों या उनकी एजेंसियों को बेचता है, निजी व्यक्तियों या निजी संगठनों को नहीं।

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केएस पुट्टुस्वामी बनाम भारत संघ मामले में निजता के अधिकार ( right to privacy ) को भारतीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया गया है, इसलिए पेगासस का उपयोग करके जो किया गया वह अवैध प्रतीत होता है।

नि:संदेह निजता का अधिकार एक पूर्ण अधिकार ( absolute right ) नहीं हैजांच किया जा रहा मामला यदि राज्य सुरक्षा, आतंकवाद, आपराधिक कृत्यों आदि से संबंधित हैतो इसपर प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं, जैसा कि भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम ( Information Technology Act ) की धारा 69 और भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के धारा 5(2) में कहा गया है। लेकिन यह प्रतिबन्ध इससे आगे नहीं जा सकते। इसलिए भारत सरकार द्वारा जो किया जा रहा था वह अवैध प्रतीत होता है।

लेकिन इस मामले की यथार्थवादी कोण से भी जांच की जानी चाहिए।

सबसे पहले, पेगासस का मुद्दा भारत में आम आदमी को शायद ही प्रभावित करता है, जिसके असली मुद्दे बेरोजगारी, खाद्य पदार्थों, ईंधन आदि की कीमतों में भारी वृद्धि, किसानों का संकट, बाल कुपोषण का भयावह स्तर (वैश्विक भूख सूचकांक Global Hunger Index के अनुसार भारत में हर दूसरा बच्चा कुपोषित है), जनता के लिए उचित स्वास्थ्य देखभाल का लगभग पूर्ण अभाव, आदि।

जिस तरह से thewire.in और मीडिया के कुछ अन्य वर्गों ने इस मुद्दे को उजागर किया है, उसे लगता है जैसे कि पेगासस मामले के कारण स्वर्ग गिर जाएगा। सच तो यह है कि भारत में आम आदमी अपना और अपने परिवार का पेट भरने के लिए संघर्ष कर रहा है और उसे पेगासस की शायद ही कोई परवाह है।

कुछ लोगों का कहना है कि पेगासस मामले का मतलब है कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो गया है, क्योंकि अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं हो सकती। लेकिन भारतीय लोकतंत्र बड़े पैमाने पर जातीय और सांप्रदायिक वोट बैंक था, दूसरे शब्दों में, लोकतंत्र का नाटकI जब किसी चीज़ का अस्तित्व ही नहीं है तो वह ख़त्म कैसे हो सकती है ? इसके अलावा, भारत में अधिकांश लोग नौकरी, पौष्टिक भोजन, स्वास्थ्य देखभाल आदि चाहते हैं, और बोलने की स्वतंत्रता शायद ही उनके लिए कोई मायने रखती है।

दूसरे, अवैध टेलीफोन टैपिंग भारत में कोई नई बात नहीं है। 2010 में तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को एक पत्र लिखा था कि उनका टेलीफोन किसी अन्य सरकारी विभाग (शायद केंद्रीय गृह मंत्रालय) द्वारा टैप किया जा रहा है।

भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को डर था कि राष्ट्रपति भवन के कई कमरों में जासूसी ( bugging ) हो रही है ( यह सर्वविदित है कि तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी को जैल सिंह पर भरोसा नहीं था)।

तीसरा, आधुनिक तकनीक इतनी विकसित हो गई है कि जासूसी को रोका नहीं जा सकता। हो सकता है कि पेगासस का पता लगा लिया गया हो, लेकिन कई अन्य परिष्कृत उपकरण, डिवाइस और उपकरण हो सकते हैं जिनका पता लगाना असंभव होI

भारतीय संसद में पेगासस के मुद्दे पर (खासकर जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं) हो-हल्ला मचाया गया है, लेकिन भारत में घटनाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं, और संभावना है कि पेगासस मामले पर जल्द ही अन्य मुद्दे हावी हो जाएंगे।

(लेखक सर्वोच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश हैं। )

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