टीम के कैप्टन होने के नाते खुद इस्तीफा देते पीएम मोदी!

hastakshep
08 Jul 2021

 PM Modi himself should resign as the captain of the team!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डॉ हर्षवर्धन, अश्विनी चौबे समेत 11 मंत्रियों की कैबिनेट से छुट्टी कर ज्योतिरादित्य सिंधिया, नारायणे राणे, वीरेंद्र कुमार, अश्विनी वैष्णव और भूपेंद्र सिंह समेत 15 मंत्रियों को कैबिनेट में लेकर 43 नये मंत्री भी बना दिये हैं।

मोदी सरकार के लिए काम करने वाला गोदी मीडिया मंत्रियों के फेरबदल को पिछड़ों की सरकार की संज्ञा भी देने लगा है। मतलब पिछड़े समाज से अधिक मंत्री बनाने पर मोदी सरकार पिछड़ों की सरकार बन गई है। वह बात दूसरी है कि मोदी के लिए अगड़े पिछड़े सभी अडानी और अंबानी ही हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि इतने बड़े स्तर पर मंत्रियों को हटाकर नये मंत्री क्यों बनाये गये हैं ?

अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात और पंजाबप में होने वाले चुनाव को देखते हुए यदि मंत्रियों का फेरबदल हुआ है तो राजनीतिक दृष्टि से इसे सही माना जा सकता है क्योंकि राजनीति में जातीय समीकरण बहुत मायने रखता है। पर जिस तरह से प्रधानमंत्री ने गोदी मीडिया से काम को लेकर फेरबदल की बात कहलवाना शुरू कर दिया है। मीडिया कह रहा है कि मोदी मंत्रिमंडल में वह ही मंत्री टिकेगा जो काम करेगा। ऐसे में सबसे पहले उंगली खुद प्रधानमंत्री पर ही उठती है।

यदि मोदी सरकार के मंत्री काम नहीं कर रहे थे तो सरकार विफल चल रही थी। हमारे देश में यह धारणा रही है कि जो कैप्टन अपनी टीम से काम न ले पाए उसे कैप्टन पद पर रहने का कोई अधिकार नहीं होता है। यदि मोदी अपनी टीम से काम नहीं ले पा रहे थे तो मोदी को नैतिकता के नाते पहले खुद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था। वैसे भी उनकी काम करने की जो शैली है उसके अनुसार तो वह किसी मंत्री को काम करने देते ही नहीं। उनका प्रयास तो यह होता है कि चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक के निर्णय वह खुद ही लें।

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देश में भले ही कितने मंत्री हों पर प्रधानमंत्री मीडिया पर ऐसा माहौल बनाये रहते हैं कि जैसे सभी मंत्रालय उनके पास हों। कभी वह शिक्षा मंत्री की तरह बच्चों को पढ़ाने लगते हों तो कभी गृह मंत्री की तरह देश विभिन्न राज्यों के जिलाधिकारियों की बैठक लेने लगते हैं। तो कभी रक्षामंत्री की तरह सीमा पर जाकर शेखी बघारने लगते हैं।

प्रधानमंत्री ने जिस तरह से विदेश में दौरे किये हैं उसके आधार पर विदेश मंत्री का काम तो वह खुद ही संभाले रहे हैं। कोरोना काल में तो वह खुद स्वास्थ्य मंत्री की भूमिका में रहे। थालियां और तालियां बजाकर कोरोना को भगाने का फार्मूला तो प्रधानमंत्री ने ही किया तैयार किया था।

सीबीएसई इंटरमीडिएट की परीक्षा में भले ही रक्षामंत्री राजनाथ सिंह के लिए कई दिनों तक मजमा लगा रहा हो, भले ही मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियल निशंक थे पर परीक्षा रद्द करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही थे। मतलब देश में लगभग सभी मंत्रालय बस नाममात्र के ही हैं। खुद प्रधानमंत्री ही सभी मंत्रालय के काम देखते हैं।

जब मोदीजी खुद ही सभी मंत्रालयों की जिम्मेदारी लिये बैठे हैं तो फिर इन बेचारे मंत्रियों को हटाने का क्या मतलब ?

इन बेचारे सांसदों को मंत्री बनाने का क्या औचित्य ? मतलब सब ढकोसला है। जैसे मोदी ने 15 लाख रुपए खाते में डालने के नाम पर लोगों का बेवकूफ बनाया, जैसे किसानों की आमदनी डेढ़ गुणा करने क नाम पर बनाया, जैसे हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार देने के नाम पर बेवकूफ बनाया, जैसे जीएसटी और नोटबंदी के नाम पर लोगों को बेवकूफ बनाया वैसे ही मंत्री फेरबदल के नाम पर भी बेवकूफ बना दिया है।

ये वही मोदी हैं जो कोरोना महामारी में भी सत्ता के लिए प. बंगाल में डटे रहे। संक्रमित लोगों की चिताएं जलती रहीं और वह राजनीति करते रहे।

ये वह मोदी हैं जो किसानों के सात महीने से सडक़ों पर बैठे रहने के बावजूद नहीं पसीजे हैं।

यह वही मोदी हैं जिन्होंने नये किसान कानून बनाकर किसानों को उनके ही खेत में बंधुआ बनाने का षड़यंत्र रच डाला है।

यही वही मोदी हैं जिन्होंने श्रम कानून में संशोधन कर नई पीढ़ी को निजी कंपनियों में बंधुआ बनाने की पूरी तैयारी कर दी है।

वह वही मोदी हैं जो निजीकरण कर पिछड़ों की रोजी-रोटी छीनने में लगे हैं। 

यह वही मोदी हैं जो आरक्षण समाप्त करने में लगे हैं।

जो लोग यह कहने लगे हैं कि यह पिछड़ों की सरकार है। क्या अपने ही सांसदों को मंत्री बनाकर कोई सरकार पिछड़ों की हो सकती है। पिछड़ों की सरकार के लिए पिछड़ों के लिए काम करना पड़ता है। यह सरकार न पिछड़ों की है और न ही अगड़ों की। यह सरकार अडानी और अंबानी की है। यदि ऐसा नहीं है तो फिर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और रक्षा मंत्री पिछड़े वर्ग से बनाये जाते। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात के मुख्यमंत्री पिछड़ों से बनाते।

मोदी सरकार में जब मंत्रियों की कोई हैसियत ही नहीं है। ऐसे में किसी को भी मंत्री बना दो निर्णय तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को लेने हैं।

चरण सिंह राजपूत

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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