स्वाधीनता का सरकारी अमृत महोत्सव औऱ आधुनिक भारत के निर्माता पं. नेहरू का बहिष्कार
Government’s Amrit Festival of Independence and boycott of Pt. Nehru, the architect of modern India - Vijay Shankar Singh
सरकार चाहती है कि, नेहरू और सावरकर बराबर चर्चा में बने रहें। लोग यह याद करते रहें कि नेहरू के ही सभापतित्व में पूर्ण आज़ादी का प्रस्ताव कांग्रेस ने 1930 में पारित किया था और स्वाधीनता संग्राम में उनकी क्या भूमिका थी। लोग नेहरू की भूमिका को जानें। उनके योगदान का मूल्यांकन करें। उनकी खूबियों और खामियों पर भी चर्चा करें। नयी पीढ़ी देश के उंस गौरवशाली संघर्ष को याद करे जब क्रांतिकारी आंदोलन से लेकर आज़ाद हिंद फौज तक, आज़ादी की अलख जल रही थी तो, आरएसएस उंस समय उस महान संघर्ष से अलग, क्या कर रहा था।
साथ ही लोग यह भी याद करते रहे कि, सावरकर ₹ 60 की मासिक पेंशन पर, अंगेजों की मुखबिरी कर के जिन्ना के हमख़याल बने रहे, और आज जब संघ के मानस पुत्रों की सरकार सत्ता में आयी है तो वे उसके अमृत महोत्सव के पोस्टर में 'आड मैन आउट' की तरह दिख रहे हैं। सावरकर की ज़िंदगी के इस पक्ष को बार बार याद करें।
सावरकर माफी मांग कर जेल से बाहर आये। हो सकता है वे यातना सह नहीं पाए हों। हर व्यक्ति की यातना सहन करने की क्षमता अलग अलग होती है। पर अंग्रेजों की पेशन क्यों उन्होंने स्वीकार की और उनका स्वाभिमान तब कहाँ खो गया था, यह उनके मन और दिशा परिवर्तन का, एक जटिल पक्ष है, जिस पर, अध्ययन किया जा सकता है। इसे पढा जाना चाहिए।
गांधी को केंद्र में रखना तो इनकी मजबूरी हैं। इन पर गांधी को मारने, हत्या करने के आरोप लगे, पर गांधी की ही ताकत है कि, वह इनको बार-बार, अपने सामने शीश नवाने को, मजबूरी में ही सही, बाध्य कर देते हैं।
स्वाधीनता संग्राम के दौरान, गांधी को यह रावण के रूप में देखते थे। आज भी हत्या के कारणों का निर्लज्जता के साथ समर्थन करते हैं। आज इस सरकारी पोस्टर में जिन महानुभावों के फोटो आप देख रहे हैं, उनमें से, अधिकांश, कभी रावण के दस शिर हुआ करते थे !
1925 से लेकर 1947 तक आरएसएस ने किसी भी स्वाधीनता संग्राम में भाग नहीं लिया है। न ही, अंग्रेजों के खिलाफ, अपना ही कोई आंदोलन छेड़ा। जिस हिंदुत्व की बात करते यह थकते नहीं है, उसी हिन्दू धर्म की कुरीतियों के खिलाफ इन्होंने कोई जागरूकता आंदोलन नही किया। गांधी के अस्पृश्यता विरोधी अभियान और अंबेडकर के दलितोत्थान से जुड़े कदमों से यह दूर ही बने रहे। इन सारे तथ्यों से यह अनजान नहीं हैं, और यही इनकी हीन भावना का एक बड़ा कारण है।
अमृत महोत्सव के इस पावन वर्ष में आप सब स्वाधीनता संग्राम का इतिहास तो पढ़ें ही, साथ ही सावरकर, डॉ मुखर्जी और संघ के नेताओं ने क्या कहा और लिखा है, उसे भी पढ़े।
© विजय शंकर सिंह
विजय शंकर सिंह Vijay Shankar Singh लेखक अवकाशप्राप्त वरिष्ठ आईपीएस अफसर हैं।