Thoughts of Gandhiji in Hindi which are relevant even today. गांधीजी के वे कौन से विचार हैं जिन पर चलकर भारत और सशक्त हो सकता है? गांधीजी के अनुसार ग्राम-स्वराज की कल्पना क्या थी?
वर्ष 2019 2 अक्टूबर से वर्ष 2 अक्टूबर 2020 तक सारे देश क्या सारी दुनिया को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती (150th birth anniversary of Mahatma Gandhi) मनानी थी। जयंती मनाने के लिए जबरदस्त तैयारियां हो चुकी थीं। परंतु कोरोना के हमले के कारण ये सारी तैयारियां धरी की धरी रह गईं। यदि सब कुछ सामान्य रहा होता तो दो अक्टूबर 2020 को सारे देश में जयंती के आयोजनो का समापन अनेक कार्यक्रमों से होता।
वर्ष 2020 बीत गया और अब 2021 का दो अक्टूबर आ गया है तो कम से कम हमें यह विचार करना चाहिए कि गांधीजी के वे कौन से विचार हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। वे कौन से विचार हैं जिन पर चलकर भारत और सशक्त हो सकता है।
मेरी राय में धर्मनिरपेक्षता, अल्पसंख्यकों और दलितों की सुरक्षा और विकास, अहिंसा और ग्राम स्वराज अर्थात गांवों को आत्मनिर्भर बनाते हुए उनका चतुर्दिक विकास आदि ऐसे विचार हो सकते हैं।
सबसे पहले मैं गांधीजी के ग्राम स्वराज संबंधी विचारों का उल्लेख करना चाहूंगा। उस स्थिति में जब कोरोना ने लाखों लोगों को बेकार कर दिया है, उनके रोजी-रोटी के साधनों को छीन लिया है, गांधीजी की ग्राम स्वराज की कल्पना प्रासंगिक है।
गांधीजी के अनुसार ग्राम-स्वराज की कल्पना क्या थी?
गांधीजी के अनुसार “ग्राम-स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि वह एक ऐसा पूर्ण प्रजातंत्र होगा, जो अपनी अहम जरूरतों के लिए अपने पड़ोसियों पर भी निर्भर नहीं रहेगा; और फिर भी बहुतेरी दूसरी जरूरतों के लिए - जिनमें दूसरों का सहयोग अनिवार्य होगा - वह परस्पर सहयोग से काम लेगा। इस तरह हर एक गांव का पहला काम वह होगा कि वह अपनी जरूरत का तमाम अनाज और कपड़े के लिए पूरी कपास खुद पैदा कर ले।...इसके बाद भी अगर गाव की जमीन बची तो उसमें वह ऐसी उपयोगी फसलें बोयेगा, जिन्हें बेचकर वह आर्थिक लाभ उठा सके; यों वह गांजा, तम्बाकू, अफीम वगैरह की खेती से बचेगा। जहां तक हो सकेगा, गांव के सारे काम सहयोग के आधार पर किए जाएंगे।...सत्याग्रह और असहयोग की कार्य-पद्धति के साथ अहिंसा की सत्ता ही ग्रामीण समाज का षासन-बल होगी। गांव की रक्षा के लिए ग्राम-सैनिकों का एक ऐसा दल रहेगा, जिसे लाजिमी तौर पर बारी-बारी से गांव के चौकी-पहरे का काम करना होगा। इसके लिए गांव में ऐसे लोगों का रजिस्टर रखा जाएगा। गांव का शासन चलाने के लिए हर साल गांव के पांच आदमियों की एक पंचायत चुनी जाएगी। इसके लिए नियमानुसार एक खास निर्धारित योग्यता वाले गांव के बालिग स्त्री-पुरूषों को अधिकार होगा कि वे अपने पंच चुन लें। इन पंचायतों को सब प्रकार की आवश्यक सत्ता और अधिकार रहेंगे। चूंकि इस ग्राम-स्वराज्य में आज के प्रचलित अर्थों में सजा या दंड का कोई रिवाज नहीं रहेगा, इसलिए यह पंचायत अपने एक साल के कार्यकाल में स्वयं ही धारासभा, न्यायसभा और कार्यकारिणी सभा का सारा काम संयुक्त रूप से करेगी। इस ग्राम-षासन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर आधार रखनेवाला संपूर्ण प्रजातंत्र काम करेगा। व्यक्ति ही अपनी इस सरकार का निर्माता भी होगा। उसकी सरकार और वह दोनों अहिंसा के नियम के वश होकर चलेगे। अपने गांव के साथ वह सारी दुनिया की षक्ति का मुकाबला कर सकेगा”।
गांधीजी की समाज व्यवस्था का आधार क्या था ? What was the basis of Gandhiji's social system?
गांधीजी की समाज व्यवस्था का आधार था धर्मनिरपेक्षता। उनसे एक विदेशी पत्रकार ने पूछा कि “यह कैसे हो सकता है कि आप धार्मिक हैं और धर्मनिरपेक्ष भी”।
उनका उत्तर था
“हां मैं धार्मिक हूं और धर्मनिरपेक्ष भी। मेरी मेरे सनातन धर्म में अगाध आस्था है। यदि कोई मेरी आस्था पर हमला करेगा तो मैं अपने धर्म की रक्षा करते हुए अपनी जान भी दे दूंगा। परंतु यदि मेरे पड़ोस में किसी अन्य धर्म का पालन करने वाला परिवार रहता है और उसकी आस्था पर कोई हमला करता है तो मैं उसकी रक्षा करते हुए भी अपनी जान दे सकता हूं”।
इस समय हमारे देश में धर्म के आधार पर अनेक आधार पर संघर्ष की स्थिति निर्मित हो जाती है। परंतु ऐसी स्थिति में हम तटस्थ हो जाते हैं और मूक दर्शक बनकर खून-खराबा होने देते हैं। यहां तक कि हमारी पुलिस भी तमाशबीन बन जाती है। पिछले 70 वर्षों में हमारे देश में धार्मिक वैमनस्य के कारण हुए दंगों से देश काफी कमजोर हुआ है। गांधीजी ने साम्प्रदायिक दंगों को रोकने के लिए मैदानी संघर्ष किया। नौआखली और दिल्ली के दंगों के दौरान उनकी भूमिका इतिहास का हिस्सा बन गई। धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और विकास गांधीजी की धर्मनिरपेक्षता का अभिन्न अंग था।
एक अवसर पर गांधीजी ने कहा था “यदि आजाद भारत में अल्पसंख्यक, दलित और स्त्रियों अपने आपको सुरक्षित महसूस नहीं करेंगीं तो वह भारत मेरे सपनों का भारत नहीं होगा। मेरे भारत में छुआछूत नहीं होगी। मेरे भारत में सभी को अपने धर्म का पालन करने का पूरा अधिकार होगा। मेरे भारत के नागरिकों को कोई यह आदेश नहीं देगा कि वह क्या खाए और क्या न खाए, क्या पहने और क्या न पहने। मेरे भारत की सरकार सभी धर्मों के अनुयायियों को बराबर सुरक्षा देगी और किसी एक धर्म को संरक्षण प्रदान नहीं करेगी”।
भारत में लोकतंत्र के विषय में गांधीजी की इच्छा क्या थी
गांधीजी की इच्छा थी कि भारत एक लोकतंत्र बने। लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उनके लोकतंत्र में ऐसी राजनीतिक पार्टियों का कोई स्थान नहीं होगा जो संकुचित, स्वार्थों को बढ़ावा दें, जो सिर्फ पैसे की ताकत से सत्ता पर कब्जा करें और जो षड़यंत्र करके सत्ता हथियाएं। लोकतंत्रात्मक समाज में पुलिस और सेना की क्या भूमिका होगी इसके बारे में गांधीजी के स्पष्ट विचार थे। गांधीजी के अनुसार आजाद भारत में पुलिस व सेना पूरी तरह से निष्पक्ष होनी चाहिए। उसका मुख्य कर्तव्य देश में शांति और भाईचारा स्थापित करना होना चाहिए। उन्हें गरीबों और असहायों की सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए। उन्हें हमेशा अल्पसंख्यकों और दलितों के अधिकारों का संरक्षण करना चाहिए। स्वयं पुलिस व सेना के भीतर जाति तथा धर्म के आधार पर विभाजन नहीं होना चाहिए। गांधीजी का कहना था कि “धार्मिक समरसता के साथ-साथ सभी के सिर पर छांव, सभी को भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा मिलनी चाहिए। सभी को सुलभता से न्याय प्राप्त होना चाहिए। सभी के बीच सीमेंट के समान एकता रहनी चाहिए। मैं स्वयं इस एकता के लिए सीमेंट की भूमिका अदा करने को तैयार हूं। इस एकता के लिए मैं अपना खून भी दे सकता हूं” और गांधी ने ऐसा किया भी।
नाथूराम गोडसे गांधीजी के इन्हीं विचारों से नाराज था और इसी के चलते उसने बापू की हत्या की और बापू ने यह सिद्ध कर दिया उन्होंने इस समरसता को कायम रखने के लिए सीमेंट का काम किया।
जान ब्रिले, जिन्होंने ‘गांधी‘ फिल्म की पांडुलिपि लिखी थी, से पूछा गया कि आपने ‘गांधी’ फिल्म की पांडुलिपि क्यों लिखी? उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘मुझे गांधीजी के अभूतपूर्व साहस, उनकी नम्रता, उनकी प्रतिबद्धता, सहनशीलता, उनकी दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने की चुंबकीय शक्ति, जिस शक्ति से गांधीजी विभिन्न संस्कृतियों के जीते-जागते प्रतीक जवाहरलाल नेहरू और हठ की हद तक दृढ़ और रूखे व्यक्तित्व के धनी सरदार पटेल को अपनी ओर आकर्षित कर सके।
“उनमें अद्भुत संगठन क्षमता थीं इसी क्षमता के बलबूते उन्होंने कांग्रेस को, जो शुरू में एक क्लब था, एक ताकतवर संगठन बना दिया। विरोध प्रकट करने के वे ऐसे तरीके निकालते थे जिनकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता था। नमक सत्याग्रह उनका ऐसा ही एक नायाब तरीका था। दांडी यात्रा के अंत में मुट्ठी भर नमक बनाते हुए उन्होंने यह कहा था कि इसके द्वारा मैंने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला दी है।
“उनके नेतृत्व के कारण कांग्रेस एक लोकतांत्रिक संस्था बनी जिसके अध्यक्ष का चुनाव प्रतिवर्ष होता था। उस समय कांग्रेस अध्यक्ष को राष्ट्रपति कहा जाता था। जब भी अवसर आता था तो गांधीजी अपनी हार स्वीकारने में नहीं हिचकिचाते थे। कांग्रेस के राष्ट्रपति चुनाव में जब सुभाष चन्द बोस ने पट्टाभिसीतारमैया को हराया तो गांधीजी ने घोषणा की कि पट्टाभि की हार मेरी हार है। उन्होंने आजादी के आंदोलन के दौरान घोषित किया था कि आजाद भारत के प्रत्येक बालिग नागरिक को मत देने का अधिकार होगा। उन्होंने बार-बार यह कहा था कि घृणा का मेरे जीवन में कोई स्थान नहीं है। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में जन संघर्ष का नेतृत्व करते हुए कह दिया था कि हिंसा रहित समाजवाद में मेरी आस्था है। गांधीजी के इन महान गुणों से प्रभावित होकर ही मैंने गांधी फिल्म की पांडुलिपि लिखी”। इस तरह ‘गांधी’ फिल्म उतनी महान बनी जितने महान गांधीजी थे।
- एल. एस. हरदेनिया