क्यों एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं जातिवाद और सांप्रदायिकता? जातिवाद और सांप्रदायिकता : कुछ मिलते जुलते तर्क | Casteism and Communalism: Some Similar Arguments
Why are casteism and communalism the same thing?
जातिवाद और सांप्रदायिकता : कुछ मिलते जुलते तर्क | Casteism and Communalism: Some Similar Arguments
1. दोनों इतिहास का सहारा लेते हैं। एक हिन्दू साम्प्रदायिक यह बताएगा कि मध्यकाल में मुसलमानों ने हिंदुओं पर बड़े अत्याचार किये और अब मुसलमानों को सही करना है। मुस्लिम साम्प्रदायिक इतिहास में अपनी गौरवगाथा खोजेगा। जातिवाद भी इतिहास का सहारा लेता है। कोई बताएगा कि फलां जाति पर फलां जाति ने बहुत जुल्म ढाए या फलां जाति बहुत उन्नत बुद्धि वाली थी और बाकी सब कमतर थे। दोनों की इतिहास दृष्टि कुछ कथनों, प्रसंगों, घटनाओं पर केंद्रित रहती है और वे जातिवादी या साम्प्रदायिक चश्मे से सारे इतिहास को दूषित करके देखते हैं।
2. जातिवाद और साम्प्रदायिकता, दोनों किसी धर्म या जाति को टारगेट करते हैं और उसके खिलाफ कुछ भी बोल सकते हैं। समाज का सबसे बड़ा खतरा भी बताते हैं। अपमानजनक टिप्पणियाँ करते रहते हैं।
3. वे समाज की मुख्य शक्ति के रूप में अपनी नफरती सोच को रखते हैं। दलित जातिवादी बोलेगा कि ये सब व्यवस्था ब्राह्मणों (सवर्णों) के हितों को देखकर बनाई गई है। ब्राह्मण (सवर्ण) जातिवादी बोलेगा कि ये पिछड़ी जातियों और दलित को व्यवस्था में उनकी अयोग्यता के बावजूद घुसा दिया गया है और यही वजह से सब चौपट है। हिन्दू साम्प्रदायिक भी जिस धर्म को अपने एजेंडे में रखते हैं उसे ही सारी बुराइयों की जड़ बताते हैं।
4. जातिवाद और साम्प्रदायिकता, दोनों का इस्तेमाल चुनावी राजनीति में जनता की लामबंदी के लिए होता है। यह सबसे आसान उपाय है कि किसी की जातीय या साम्प्रदायिक भावना को उकसा दो और अपना उल्लू सीधा करो।
5 दोनों सोच में पिछड़ी हुई और प्रतिक्रियावादी हैं। दोनों जो हैं उसको स्वीकार करने से इनकार करती हैं। कोई जातिवादी या साम्प्रदायिक ये नहीं कहेगा कि वो ऐसा है। वो ज्यादा कुरेदो तो यही बताएगा कि हम तो मानवतावादी हैं पर फलाने धर्म या जात वाले ऐसे हैं तो हमको भी वैसा बनना पड़ जाता है।
आलोक वाजपेयी
(लेखक इतिहासकार हैं, उनकी एफबी टिप्पणी का संपादित रूप साभार)