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‘इंडिया’ के समक्ष बहुजन बुद्धिजीवियों की अपील और प्रस्ताव !
एच. एल. दुसाध
27 अगस्त को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में बहुजन डाइवर्सिटी मिशन और संविधान बचाओं संघर्ष समिति के संयुक्त तत्वावधान में 17वें ‘डाइवर्सिटी डे’ का आयोजन हुआ जो एकाधिक कारणों से चर्चा का विषय बना हुआ है. इसमें इंडिया महागठबंधन से जुड़े जदयू के केसी त्यागी, कांग्रेस के कैप्टेन अजय सिंह यादव, आम आदमी पार्टी के राजेन्द्र पाल गौतम. सहित प्रो रतनलाल, चंद्रभान प्रसाद, डॉ अनिल जयहिन्द, निर्देश सिंह,प्रो सूरज मंडल, प्रो अवधेश साह, शीलबोधि, आईके गंगानिया, शम्भुनाथ सिंह, रमेश भंगी जैसे अन्य कई बहुजन बुद्धिजीवियों ने एक साथ शिरकत किया. इसमें प्राख्यात अधिवक्ता व राज नीतिक चिन्तक आर आर बाग़ तथा स्त्री काल के संपादक संजीव चन्दन को ‘डाइवर्सिटी मैन ऑफ़ द इयर’ तो अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त जर्निस्ट मीना कोटवाल को ‘डाइवर्सिटी वुमन ऑफ़ द इयर’ से सम्मानित किया गया. इसमें लोगों ने विस्मित भाव से एच. एल. दुसाध की एक साथ सात किताबों का विमोचन होते देखा. लेकिन इतनी उल्लेखनीय घटनाओं के मध्य जिस कारण से 17 वें डाइवर्सिटी डे की खासतौर से चर्चा हो रही है, वह है एक पैम्फलेट ,जिसे ‘इंडिया के समक्ष हमारी’ शीर्षक से ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ और संविधान बचाओं संघर्ष समिति’ की ओर से जारी किया गया एवं जिसका विमोचन किया मुख्य अतिथि केसी त्यागी ने. यह इतना महत्त्वपूर्ण पैम्फलेट है, जिसका अनुसरण आने वाले दिनों में दूसरे संगठन भी कर सकते. इसे जारी करने के क्रम में उभय संगठनों ने लोकसभा चुनाव: 2024 के लिए सामाजिक संगठनों की ओर से एक ऐसी बड़ी पहलकदमी कर दी है, जो आगामी आम चुनाव को कुछ-कुछ प्रभावित कर सकता है. इसकी पूरी सामग्री हम ज्यों का त्यों रख रहे हैं!
इंडिया के समक्ष हमारी अपील
‘एक ऐसे समय में जबकि भाजपा नीत सरकार जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हित में हिन्दू राष्ट्र के नाम पर हजारों वर्ष पूर्व की भांति हिन्दू धर्म का प्राणाधार वर्ण-व्यवस्था के तहत देश को परिचालित करने व बाबा साहेब का संविधान बदलने की परिकल्पना कर रही हैं;हजारों वर्ष से सामाजिक अन्याय का शिकार रहे तबकों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए हमारे महान राष्ट्र निर्माताओं ने आरक्षण का जो प्रावधान किया उस आरक्षण के खात्मे के लिए सरकारी संस्थानों को अंधाधुन बेच एवं संविधान के उद्देश्यों को व्यर्थ रही है; संघ के लक्ष्यों को पूरा करने लिए जुनून के साथ नफरत का सैलाब बहाकर देश की एकता और अखंडता को छिन्न-भिन्न कर रही है:स्वाधीन भारत के ऐसे भयावह दौर में इंडिया (इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इन्क्लूसिव अलायंस) का वजूद में आना हम नई सदी की सबसे सुखद घटनाओं में एक मानते हैं और विश्वास करते हैं इससे हमारा लोकतंत्र सबकी भागीदारी वाला लोकतंत्र बनेगा तथा सामाजिक अन्याय – मुक्त व समतापूर्ण वह भारत आकार लेगा, जिसका सपना हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने देखा था. ऐसे में हम दलित, आदिवासी, पिछड़ों एवं इनसे धर्मान्तरित अल्पसंख्यकों तथा आधी आबादी की आशा और आकांक्षा का प्रतीक बन चुके इंडिया के लिए अपना सर्वस्व देने की घोषणा करते हैं.आज सामाजिक अन्याय तथा साप्रदायिक नफरत का सैलाब बहाने वाली भाजपा को सत्ता से हटाना इतिहास की सबसे बड़ी मांग है. इसे देखते हुए हम इंडिया के समक्ष कुछ विनम्र प्रस्ताव रख रहे हैं.
1 -हम सबसे पहले इंडिया में शामिल उन दलों के प्रति विशेष आभार प्रकट करते हैं,जिन्होंने कभी संघ के राजनीतिक संगठन भाजपा के साथ सत्ता में भागीदारी नहीं किया एवं विपरीत हालातों में भी उसकी देश और बहुजन विरोधी नीतियों के खिलाफ अविराम संघर्ष चलाते रहे. 2 - भाजपा को हराने के लिए सबसे जरुरी है कि इंडिया उसे सामाजिक न्याय की पिच पर खेलने के लिए बाध्य करे. क्योंकि नई सदी का इतिहास इस बात का साक्षी है कि चुनाव को सामाजिक न्याय पर केन्द्रित करने पर भाजपा हार ने के सिवाय कुछ नहीं कर सकती. भाजपा को सामाजिक न्याय कि पिच पर खिलाकर बड़ी आसानी से उसे मात दिया जा सकता है, इसका उज्जवल दृष्टान्त 2015 के बिहार तथा 2023 के कर्णाटक विधानसभा चुनावों में स्थापित हो चुका है.3 – हम मानते हैं कि भाजपा दलित, आदिवासी,पिछड़ों को अपने नफरती राजनीति के नशे में इस कदर मतवाला बना दी है कि वे आरक्षण सहित अपने अपने ढेरों अधिकार खोने तथा गुलामों की स्थिति में पहुचने से भी निर्लिप्त हो गए हैं. कश्मीर फाइल्स, द केरला स्टोरी तथा ग़दर 2 जैसी साधारण प्रोपागंडा फिल्मों की असाधारण सफलता मोदी राज में विकसित हुई नफरती मानसिकता का ही परिणाम है, जिसे बहुत ही सुनियोजित तरीके से विकसित किया गया है. बहुजन इसलिए नफरती राजनीति के नशे मतवाला हो गए क्योंकि जिस सामाजिक न्याय की राजनीति के जरिये अप्रतिरोध्य भाजपा को लाचार और कमजोर किया जा सकता है, उस सामाजिक न्याय की राजनीति को हवा देने का काम पिछले एक दशक से नहीं के बराबर हुआ. ऐसे में बहुजनों का यह घातक नशा सिर्फ उग्र सामाजिक न्याय की राजनीति के जोर से ही उतारा जा सकता है, ऐसा हमारा मानना है.
4 - हम जून,2023 में अमेरिकी दौरे पर राहुल गांधी की कही इस बात से पूरी तरह सहमत हैं कि ‘भाजपा को हराने के लिए सिर्फ विपक्षी एकजुटता ही काफी नहीं है: जरुरत वैकल्पिक विजन की है’. चूँकि भाजपा का विजन विशुद्ध सामाजिक न्याय विरोधी विजन है, इसलिए इंडिया भाजपा की हार सुनिश्चित करने के लिए उसके वैकल्पिक विजन:‘सामाजिक न्यायवादी विजन’ के साथ 2024 के चुनाव में उतरे.5 – हम मानते हैं कि महंगाई,बेरोजगारी,साम्प्रदायिकता, आवारा पशु, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था जैसे रूटीन मुद्दे तथा किसान और भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाकर भाजपा का कुछ भी नहीं बिगाड़ा जा सकता. 2019 के लोकसभा चुनाव में किसानों का आन्दोलन तथा रफायल जैसे भ्रष्टाचार के मुद्दे खूब उछाले गए,पर विपक्ष भाजपा को रिकॉर्ड सीटें जीतने से नहीं रोक पाया.परीक्षित सच्चाई यही है कि भाजपा सिर्फ सामाजिक न्याय के मुद्दों के समक्ष लाचार हो सकती है, जिसका ताजा दृष्टांत इस वर्ष कर्णाटक विधानसभा चुनाव में स्थापित हुआ है! 6 - मंडल के खिलाफ उभरे मंदिर आन्दोलन के जरिये नफरत की राजनीति को तुंग पर पहुंचा कर अप्रतिरोध्य बनी भाजपा के नरेंद्र मोदी ने जिस तरह वर्ग संघर्ष का इकतरफा खेल खेलते हुए राजसत्ता का इस्तेमाल हजारों साल के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के हित में किया है, वह नई सदी में वर्ग संघर्ष के इतिहास की अनोखी घटना है. इसी सुविधाभोगी वर्ग के हित में उन्होंने जिस तरह विनिवेश नीति को हथियार बनाकर सरकारी संस्थाओं एवं परिसंपत्तियों निजी हाथों में बेचा ; इसी वर्ग के हित में जिस तरह संविधान के उद्देश्यों को व्यर्थ करने के साथ बहुजनों के आरक्षण को कागजों की शोभा बनाया; इसी वर्ग के हित में जिस तरह संविधान की अनदेखि करते हुए आनन-फानन में इडब्ल्यूएस के नाम पर सुविधाभोगी वर्ग के कथित गरीबों को आरक्षण सुलभ कराने के साथ जिस तरह लैटरल इंट्री के जरिये इस वर्ग के अपात्र लोगों को आईएएस जैसे उच्च पदों पर बिठाने का असंवैधानिक प्रावधान रचा है , उससे यह मानकर चलना चाहिए कि भारत के जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के लोग आगामी 25 वर्षों तक अपना वोट भाजपा को छोड़कर अन्य किसी भी दल को ,किसी भी सूरत में नहीं देने जा रहे हैं. ऐसे में इंडिया जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग के वोटों से मोहमुक्तR होने की मानसिकता विकसित करते हुए सारा जोर उन दलित, आदिवासी, पिछड़े और इनसे धर्मान्तरित अल्पसंख्यक समुदाय के वोटरों पर लगाये जिनका मोदी-राज में सर्वनाश हुआ है!
7 - जिस सामाजिक न्याय के जोर से शर्तिया तौर पर भाजपा को शिकस्त दिया जा सकता है उस सामाजिक न्याय की परिभाषा पर इंडिया एक बार विचार कर ले.वैसे तो सामाजिक न्याय की कोई निर्दिष्ट परिभाषा नहीं है किन्तु विभिन्न समाज विज्ञानियों के अध्ययन के आधार पर कहा जाय तो शासक वर्ग द्वारा समाज में विद्यमान विभिन्न समूहों में कुछेक का जाति/ नस्ल, धर्म, लिंग इत्यादि कारणों से शक्ति के स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक- शैक्षिक – धार्मिक ) से जबरन बहिष्कार ही सामाजिक अन्याय कहलाता है और शक्ति के स्रोतों से दूर धकेले गए लोगों को कानूनन शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी दिलाना ही सामाजिक न्याय है. भारत में सामाजिक अन्याय का विशाल अध्याय उस हिन्दू धर्म, जिसका सबसे बड़ा उत्तोलक वर्तमान में भाजपा और उसका पितृ संगठन संघ है, के प्रावधानों द्वारा रचा गया जो प्रधानतः शक्ति के स्रोतों के बंटवारे की व्यवस्था वाला धर्म रहा है. हिन्दू धर्म के प्रावधानों द्वारा ही दलित,आदिवासी,पिछड़ों और महिलाओं को पूरी तरह शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत करके सामाजिक अन्याय के दलदल में फंसाया गया.इन्हीं लोगों को न्याय दिलाने के लिए सदियों से तथागत गौतम बुद्ध, रैदास ,कबीर, गुरुनानक इत्यादि ढेरों संत; फुले, शाहूजी महाराज, पेरियार बाबा साहेब आंबेडकर, सर छोटू राम तथा नए दौर में मा. कांशीराम जैसे महामानवों ने अविराम संघर्ष चलाया . अंततः बाबा साहेब के प्रयासों से आरक्षण का प्रवधान रचित हुआ , जिसके तहत सबसे पहले शक्तिहीन दलित- आदवासियों और परवर्तीकाल में पिछड़ों को आरक्षण मिला तथा भारत में सामाजिक न्याय की धारा प्रवाहमान हुई. स्मरण रहे आरक्षण और कुछ नहीं शक्ति के स्रोतों से बहिष्कृत तबकों को कानून के जोर शक्ति के स्रोतों में हिस्सेदारी दिलाने का मध्यम मात्र है.इसी आरक्षण के खात्मे में राजसत्ता का इस्तेमाल कर भाजपा ने नए सिरे से सामाजिक अन्याय का सैलाब पैदा किया है, जिसका जवाब सामाजिक न्याय का मुकम्मल एजेंडा ही हो सकता है.
अब तक सामाजिक न्याय के नाम पर शक्ति के थोड़े से स्रोतों- सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों के प्रवेश, कुछ वस्तुओं के डीलरशिप इत्यादि- में ही आरक्षण दिया गया है, जिसे सामाजिक न्याय की खानापूर्ति ही कहा जा सकता है. अगर सही सामाजिक न्याय की स्थापना करनी है तो शक्ति के समस्त स्रोतों, जिसके दायरे में सेना, पुलिस बल व न्यायालयों इत्यादि सहित सरकारी और निजी क्षेत्र की सभी प्रकार की नौकरियां ,पौरोहित्य, डीलरशिप, सप्लाई,सड़क-भवन निर्माण इत्यादि के ठेकें,पार्किंग,परिवहन, शिक्षण संस्थानों; विज्ञापन व एनजीओ को बंटने वाली धनराशि; ग्राम पंचायत, शहरी निकाय, संसद- विधानसभा की सीटें , विभिन्न मंत्रालयों के कार्यालयों, राष्ट्रपति,राज्यपाल, प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्रियों के कार्यालयों के कार्यबल इत्यादि आते में हैं, में विविध समाजों के स्त्री- पुरुषों के संख्यानुपात में आरक्षण लागू करना होगा. अगर इंडिया की ओर से सामाजिक न्याय का मुकम्मल एजेंडा घोषित होता है तो भाजपा बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाएगी और नफरत के नशे में मतवाले अज्ञानी बहुजन इंडिया के पीछे लामबंद हो जायेंगे, ऐसा मानने में हमें कोई द्विधा नहीं !
8 - हम मानते है कि भारत में सामाजिक अन्याय की सर्वाधिक शिकार देश की आधी आबादी है, जिसे आर्थिक-सामाजिक रूप से पुरुषों के बराबर आने में 257 साल लगने के कयास लगाये जा रहे हैं.आधी आबादी को शक्ति के स्रोतों में उसका प्राप्य दिलाने बिना सामाजिक न्याय और समतामूलक भारत का सपना , सपना ही बना रहेगा. आधी आबादी को सामाजिक अन्याय के दलदल से निकालने के लिए जरुरी है कि विभिन्न समुदायों के आरक्षण में पहले 50% हिस्सा उसके महिलाओं को और शेष 50 उस समुदाय के पुरुषों को मिले. अगर सामाजिक अन्याय की सर्वाधिक शिकार आधी आबादी है तो सर्वाधिक अन्यायकारी वर्ग जन्मजात सुविधाभोगी वर्ग का पुरुष समुदाय है, जिसकी आबादी तो बमुश्किल साढ़े सात- आठ प्रतिशत है,परन्तु शक्ति के स्रोतों पर कब्ज़ा उसकी आबादी से प्रायः दस गुना ज्यादा है. यदि इंडिया इस वर्ग को उसके संख्यानुपात रोकने का प्रावधान कर दे तो उसके हिस्से का 60 -70% अवसर अतिरक्त अर्थात surplus हो जायेंगे. फिर यदि इस अतिरिक्त अवसर को सामाजिक अन्याय के शिकार वर्गों के मध्य वितरित कर आसानी से वैसा भारत निर्माण किया जा सकता है,जिसका सपना हमारे राष्ट्र- निर्माताओं ने देखा था! 9 - हम मानते हैं कि नई सदी में कांग्रेस सबसे बड़ी सामाजिक न्यायवादी दल के रूप में उभरी है, जिसने रायपुर के अपने 85वें अधिवेश से लेकर 2023 के कर्णाटक विधानसभा चुनाव में सामाजिक न्याय की राजनीति का अभूतपूर्व दृष्टांत स्थापित किया तथा इस क्रम में राहुल गाँधी सामाजिक न्याय की राजनीति के नए आइकॉन के रूप में उभरे. साथ में हम यह भी मानते हैं कि इतिहास ने साबित कर दिया है कि भाजपा हम वंचित बहुजनों की वर्ग-शत्रु है तो कांग्रेस वर्ग-मित्र! भाजपा ने जहां राजसत्ता का इस्तेमाल बहुजनों को बर्बाद करने में किया है तो कांग्रेस ने उसका इस्तेमाल इनकी समृद्धि और उन्नति के लिए किया है.आज वंचित बहुजनों ,विशेषकर दलित और आदिवासियों मे कुछ लोग आर्थिक- राजनीतिक- शैक्षिक क्षेत्र में विशेष उपलब्धि अर्जित किये हैं तथा इनमें समाज को नेतृत्व देने लायक एक मध्यम वर्ग तैयार हुआ है तो उसका अधिकतम श्रेय आजाद भारत के कांग्रेस सरकारों को जाता है.
10- हम मानते हैं केवल कार्यपालिका में भागीदारी अर्थात नौकरियों में आरक्षण से ही हमारे राष्ट्र निर्माताओं का समतामूलक भारत निर्माण का सपना पूरा। ऐसे तो एक हजार वर्ष तक भी बहुजन ( अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और इनसे धर्मान्तरित) समता का लक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाऐंगे। हमारी आने वाली 50 पीढ़ियाँ यूँ ही विषैले आर्थिक और सामाजिक का दंश झेलती और शोषण, अन्याय का शिकार होती रहेंगी और हम विधवा विलाप करते रहेंगे। सामाजिक क्रांति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है आर्थिक समता अर्थात देश की धन, दौलत, जमीन, जायदाद, उद्योग- व्यापार, कल- कारखानों, बाजार में बहुजनों का 85% हिस्सा । आज भारत के सरकारी क्षेत्र में डेढ करोड़ नौकरियाँ हैं। 50% आरक्षण से बहुजनों को केवल 75 लाख नौकरियाँ मिल सकती हैं। यदि 5 सदस्यों का एक परिवार मान लें तो आरक्षण से करीब 4 करोड़ वंचित बहुजनों का ही कल्याण हो पाऐगा। बहुजनों की जनसँख्या भारत की कुल 142 करोड़ आबादी में 123 करोड़ है। 123 में से 4 करोड़ का कल्याण हो गया तो क्या हम बाकी 119 करोड़ बहुजन को लावारिस छोड़ दें? आज हमारे राजनीतिक - समाजिक नेताओं ने इन 119 करोड़ बहुजनों को वास्तव में लावारिस छोड़ रखा है और बहुजन आंदोलन को बहुजन समाज के अभिजात वर्ग का आंदोलन बना दिया है जिसमें केवल अभिजात बहुजन के मुद्दों के लिए ही सारे संघर्ष होते हैं। निजीकरण का दौर चल रहा है, सरकारी संस्थान बेचे जा रहे हैं। विडंबना यह है कि अडानी अदानी जैसे धन्ना सेठों को व्यापार करने के लिए लाखों करोड़ रूपयों का बैंकों से कर्ज दिया जाता है। विजय माल्या जैसे लोग 25 हजार करोड़ रूपए का बैंक कर्ज लेकर विदेश भाग जाते हैं। वहीं बहुजनों के लिए 50 हजार से 5 लाख तक ही कारोबारी व्यवसायिक बैंक कर्ज मिलता है। यह बहुजन को जलील, अपमानित करने का घिनौना काम है। क्या आज की 21वीं शताब्दी में भी हमें नीच माना जाएगा? सवर्ण समाज के सदस्यों को हजारों करोड़ का बैंक कर्ज और बहुजन के लिए च॔द लाख का बैंक कर्ज वो भी किसी- किसी को! आज के इस पूंजीवाद के दौर में अगर अदानी - अंबानी बिना बैंक कर्ज के कारोबार नहीं कर सकते तो गरीब बहुजन कैसे व्यपार कर लेगा? गरीब बहुजन को तो इन धन्नासेठों से कई गुना बैंक कर्ज मिलना चाहिए। हमारी मांग है कि भारत के तमाम बैंकों से दिए जाने वाले कुल बैंक कर्ज का 85% बहुजन समाज के सदस्यों को मिले या फिर प्रत्येक बहुजन जब 18 वर्ष की आयु का हो तो उसे अपना व्यापार शुरू करने के लिए कम ब्याज दर पर न्यूनतम एक करोड़ रुपए का बैंक कर्ज मिले।
इसके साथ-साथ संविधान को जड़ से उखाड़ फेंकने की जो साजिश प्रधानमंत्री के आर्थिक मामलों के परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबराय को ढाल बनाकर की जा रही है, उसका मुंह तोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। हम संविधान बचाने की पवित्र लड़ाई जब तक हमारे शरीर मे खून का एच कतरा भी बाकी है, आखिरी सांस तक लड़ेंगे।
हम उम्मीद करते हैं इस अपील/ प्रस्ताव में जो 123 करोड़ लोगों की भावना का प्रतिबिम्बन हुआ है:’इंडिया’ लोकसभा- 2024 का चुनावी एजेंडा स्थिर करते समय उसकी अनदेखी नहीं करेगी !
अपीलकर्ता
बहुजन डाइवर्सिटी मिशन, दिल्ली –
संविधान बचाओ संघर्ष समिति, दिल्ली