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क्या मौजूदा पूंजीवादी शोषणकारी व्यवस्था लोगों की समस्याओं का समाधान कर सकती है?

Can the present capitalist exploitative system solve the problems of the people? मार्क्स के विचारों ने पूंजीवादी और जमींदारी व्यवस्था के गठजोड़ के जुल्मों सितम, लूट खसोट, अधिकारविहीनता, शोषण, अन्याय और भेदभाव की पोल खोल दी।

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hastakshep
23 Oct 2023
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Munesh Tyagi

Can the present capitalist exploitative system solve the problems of the people?

वर्तमान पूंजीवादी शोषणकारी व्यवस्था लोगों की समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती 

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फ्रांसीसी क्रांति (french revolution) ने सबसे पहले फ्रांस में सामंतवादी और जमींदारी व्यवस्था का खात्मा (End of feudal and landlord system in France) करके पूंजीवादी व्यवस्था का आगाज किया था। तीन सौ साल पहले जमींदारी प्रथा और सामंतवादी व्यवस्था का खात्मा करके जब पूंजीवादी व्यवस्था का आगमन हुआ तो लोगों ने सोचा था कि यह व्यवस्था मनुष्य के सारे जुल्मों सितम, अन्याय, शोषण, भेदभाव और गैर बराबरी का खात्मा कर देगी और इसी आशा और विश्वास के साथ दुनिया के मजदूर कारखानों में काम करने लगे थे, उद्योगों में काम करने लगे थे।

मगर सौ वर्षों के बाद मजदूरों की नारकीय स्थिति देखकर लगा कि पूंजीवादी व्यवस्था मजदूरों के हजारों साल पुराने शोषण जुल्म अन्याय का खात्मा नहीं कर सकती, बल्कि इसने तो मजदूरों पर होने वाले शोषण जुल्म अन्याय को बेतहाशा बढ़ा दिया है। काम के घंटों को 18 (अट्ठारह घंटे) कर दिया है, उनको न्यूनतम वेतन नहीं मिलता, उनको कोई भी श्रम कानून उपलब्ध नहीं कराये, उनको कोई सुख सुविधा नहीं उपलब्ध कराई।

इस प्रकार हम देखते हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था का मुख्य मकसद मजदूरों का शोषण करके अकूत मुनाफा कमाना, शोषण अन्याय अत्याचार करके हक और अधिकारों को न देना और मानवता को रौंदना है। किसानों मजदूरों को गुलाम बनाकर 12-12, 18-18 घंटे काम करा कर उनका शोषण करना है, जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित करना है और विभिन्न तरह के मानवाधिकारों, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, अपनी मर्जी की शादी, कानून के समक्ष सब की समानता, समाज में समता और समानता, भाईचारा, न्याय, समय से वेतन, न्यूनतम वेतन, स्थाई नौकरी, बुढ़ापे की पेंशन, बेरोजगारों को काम, अपाहिज लोगों को सरकारी सुविधा आदि को, समाप्त करना है।

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मार्क्स और एंगेल्स ने अब से लगभग पौने दो सौ साल पहले अपने लेखों में दुनिया के सामने जगजाहिर किया कि पूंजीवादी व्यवस्था में मजदूरों का कोई कानूनी अधिकार नहीं है, वे बस पूंजीपतियों का मुनाफा कमाने के माध्यम हैं, औजार हैं। 

मार्क्स के विचारों ने पूंजीवादी और जमींदारी व्यवस्था के गठजोड़ के जुल्मों सितम, लूट खसोट, अधिकारविहीनता, शोषण, अन्याय और भेदभाव की पोल खोल दी। पूरी की पूरी पूंजीवादी लूट और मुनाफाखोरी के, दुनिया के सामने भेद खोल दिए और पूरे पूंजीवाद को नंगा कर दिया।

मार्क्स ने यह भी अवधारित किया कि मजदूरों को अपनी एकता कायम करके अपना संगठन बनाकर पूंजीपति वर्ग और व्यवस्था का खात्मा करके समाज में समाजवादी व्यवस्था कायम करनी होगी जिससे पूरे मजदूरों को पूरे मेहनतकशों को, पूरी जनता को, उसके रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य और दूसरे समस्त मानव अधिकार प्राप्त हो जाएंगे और इस तरह पूंजीवादी लूट शोषण और अन्याय का खात्मा हो जाएगा और पूंजीपति वर्ग और व्यवस्था का विनाश कर दिया जाएगा।

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मार्क्स के विचारों के बाद दुनिया भर में मजदूर अधिकारों के आंदोलन की आंधी चल पड़ी। मजदूरों ने अपने अधिकारों के लिए अपने संगठन बनाकर, आंदोलन करने और अपनी यूनियनें बनानी शुरू कर दीं। अब लड़ाई ने वर्गीय स्वरूप धारण कर लिया। पूंजीपति वर्ग बनाम मजदूर वर्ग, जमीदार वर्ग बनाम किसान वर्ग।

इसका नतीजा 1917 रूस में महान लेनिन और कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में पूंजीपति जमीदार वर्ग बनाम मजदूर किसान वर्ग में भीषण संघर्ष हुआ और 1917 में सर्वहारा क्रांति हुई और किसान और मजदूर, मानव इतिहास में सबसे पहले अपने भाग विधाता बन गए, उनकी सत्ता और सरकार कायम हो गई। सारे किसानों मजदूरों मेहनतकश छात्रों नौजवानों महिलाओं को रोजी रोटी कपड़ा शिक्षा स्वास्थ्य पानी बिजली और मनोरंजन के मूलभूत अधिकार मुहैया करा दिए गए।

इसके बाद भी दुनिया का लुटेरा पूंजीपति वर्ग चुपचाप नहीं बैठा। उसने अपनी लूट और मुनाफा को बढ़ाने और बनाए रखने के बदले मजदूरों किसानों के वर्गीय शोषण और अन्याय का खात्मा नहीं किया गया। उसने अपनी लूट शोषण अन्याय और मुनाफाखोरी को कायम रखने की अपनी मुहिम जारी रखी। अपनी लूट और शोषण को बरकरार रखने के लिए लुटेरे पूंजीपति वर्ग ने दो-दो विश्वयुद्ध किए। लाखों-करोड़ों आदमियों को मार डाला, करोड़ों लोगों को अपंग कर दिया। करोड़ों अरबों रुपए की संपत्ति नष्ट कर दी।

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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दुनिया के कई देशों में जनता ने राहत की सांस ली और अपनी आजादी हासिल की। उन्हें हजारों साल के शोषण अन्याय और जुल्मों सितम से कुछ राहत मिली। इस सबसे दुनिया में कुछ विकास हो पाया। दुनिया अभी राहत की सांस ले ही रही थी कि दुनिया के सारे पूंजीवादी लुटेरों ने अपने लूट को और अपने मुनाफों को जारी रखने के लिए और बढ़ाने के लिए, 1991 में दुनिया के तमाम मेहनतकशों पर फिर हमला किया और समाजवादी मुल्कों को छोड़कर पूंजीवादी और सामंती देशों की दुनिया के मजदूरों और किसानों और अधिकांश जनता से लगभग सब कुछ छीन लिया और वर्तमान समय में अधिकांश देशों में, दुनिया 80 साल पुरानी साम्राज्यवादी व्यवस्था में पहुंच गई।

दुनिया के मेहनतकशों ने अपनी रोजी-रोटी शिक्षा स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो आधार और बढ़त हासिल की थी जो विकास और मानवाधिकार हासिल किए थे, आज उन सब को एक-एक करके छीन लिया गया है। 1991 में दुनिया के तमाम पूंजीवादी लुटेरों ने, जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, पश्चिमी यूरोप के देश, जापान, आस्ट्रेलिया आदि ने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की मुहिम शुरू करके मजदूरों किसानों और तमाम मेहनतकशों के लगभग तमाम हक और अधिकार और मानवाधिकार छीन लिए हैं।

यह बात सही है की दुनिया पहले से आगे बढ़ी है, उसने विकास किया है, वैज्ञानिक विकास किया है, दूसरे क्षेत्रों में विकास किया है, मगर इस विकास का लाभ दुनिया के पूरे लोगों को नहीं मिल पाया और इस विकास का लाभ चंद लोगों को ही मिला है और जनता का 85 परसेंट हिस्सा आज भी बुनियादी जरूरतों से महरूम है और पूंजीवाद के 300 साल के इतिहास (300 years of capitalism) को देखकर हम पूरे इत्मीनान से कह सकते हैं कि पूंजीवादी दुनिया, जनता की बुनियादी समस्याएं हल नहीं कर सकती, क्योंकि जनता की बुनियादी समस्याएं हल करना उसके एजेंडे में नहीं हैं। उसका एजेंडा केवल और केवल अपना साम्राज्य कायम करना, पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम करना, अपने लूट के साम्राज्य को बढ़ाना, जनता का शोषण करना, उसके अधिकारों में कटौती करना,  अपने मुनाफों को बढ़ाना और पूरी दुनिया में युद्धोन्मादी मुहिम को बढाना है। इसके अलावा उसका कोई मकसद नहीं है। जनता की मूलभूत समस्याओं का समाधान और पूरी जनता का विकास करना उसके एजेंडे में नहीं है।

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पिछले 30 सालों में पूंजीपतियों की लूटपाट में गजब की बढ़ोतरी हुई है। 30 वर्षों में दुनिया के लुटेरे पूंजीपतियों की संपत्तियों में जमीन आसमान का फर्क आ गया है। किसानों मजदूरों मेहनतकशों की गरीबी शोषण अन्याय बेरोजगारी और अधिकारहीनता बढ़ी है। दूसरी ओर पूंजीपति सरकारों की मदद से, चंद पूंजीपतियों की आय, पैसे और संपत्तियों के पहाड़ के पहाड़ खड़े हो गए हैं। आज के हालात में भारत में 85 परसेंट मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता। 85 परसेंट परिवारों की आय घट गई है और असंगठित क्षेत्र के 95 परसेंट मजदूरों की आय घट गई है, उनको न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है, उनको सभी श्रम कानूनों से वंचित कर दिया गया है और यह सरकार निकम्मी और निष्ठुर बनी हुई है, कुछ करने को तैयार नहीं है। वर्तमान समय की अधिकांश सरकारें पूंजीपति वर्ग की दलाल, पिट्ठू और जेबी सरकारें बन गई हैं।

पूंजीवादी व्यवस्था एक बीमार व्यवस्था है। मनुष्य का शोषण और उसके साथ अन्याय करने वाली व्यवस्था है। पूंजीवादी व्यवस्था मजदूर की मेहनत को हडपती है, उसका पूरा भुगतान नहीं करती, उसे न्यूनतम वेतन नहीं देती, श्रम कानूनों को लागू नहीं करती, मजदूरों को बोनस नहीं देती, प्रोविडेंट फंड और ग्रेच्युटी नहीं देती, मजदूरों को यूनियन नहीं बनाने देती, सारे श्रम कानूनों का उल्लंघन करती है। पूंजीवादी व्यवस्था बहुत सारी सनातन बीमारियों से ग्रसित है जैसे यह व्यवस्था युद्धोन्मादी है, एकदम मुनाफाखोर है, हिंसा करती है, शोषण करती है, अन्याय करती है, महंगाई को बढ़ाती है, भ्रष्टाचारी है, लगातार युद्ध करती रहती है और रह-रहकर लगातार मंदी की मार का शिकार होती रहती है। यह एक बीमार व्यवस्था है जो मानवता का कल्याण नहीं कर सकती। इस व्यवस्था का विनाश करके और इसके स्थान पर वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था काम करके ही मनुष्य जाति, मानवता और पूरी दुनिया का कल्याण किया जा सकता है

दुनिया भर के पूंजीपतियों ने अपने बड़े-बड़े लुटेरे साम्राज्य, किसानों मजदूरों को लूट कर, उनका खून पीकर, उनके हकों अधिकारों को मारकर और छीनकर कायम किए हैं, उन्हें आधुनिक गुलाम बनाकर हासिल किया गया है। इस प्रकार उपरोक्त के आलोक में हम कह सकते हैं कि दुनिया की लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था, दुनिया के तमाम दुख, परेशानियों, गरीबी, शोषण, अन्याय, जुल्मों सितम और अधिकारहीनता को खत्म नहीं कर सकती। अगर समाजवादी व्यवस्था न होती तो मानव जाति को कुछ भी हासिल होने वाला नहीं था, कुछ भी मिलने वाला नहीं था। पूंजीवादी दुनिया में जनता का कल्याण होने वाला नहीं है। 

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पूरी दुनिया भर में लुटेरे पूंजीपतियों की जनविरोधी, किसान विरोधी और मजदूर विरोधी हरकतों, नीतियों, शोषण, जुल्मोसितम, हिंसा, हत्या, अपराध, और दुनिया के देशों को गुलाम बनाने की हरकतों और दुनिया के प्राकृतिक संसाधनों को लूटने कब्जाने और मुनाफाखोरी की नीतियों और हरकतों को देखकर यह निश्चित है कि पूंजीवादी व्यवस्था एक जनविरोधी, युद्धोन्मादी और बीमार व्यवस्था है। यह सारी दुनिया और मानवाधिकारों के लिए एक अभिशाप बन गई है। यह जनविरोधी व्यवस्था मानवता का कल्याण नहीं कर सकती है।

मुनेश त्यागी

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार और प्रसिद्ध अधिवक्ता हैं।)

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