Democracy is the soul of August 15, not Modi's promises
15 अगस्त की आत्मा लाल किला, पीएम का पद, बड़े बड़े वायदे नहीं हैं, बल्कि इसकी आत्मा है लोकतंत्र। इसे हम स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाते हैं। यह स्वाधीनता बहुत बड़ी कुर्बानियां देकर मिली है, इतिहास के तमाम दुर्गम पहाडों से गुजरकर मिली है, अनेक बुरे फैसले लेने के बाद मिली है।
अगर भारत विभाजन न होता तो क्या होता
अधिकांश नेता भारत-विभाजन से दुखी थे, लेकिन वह मजबूरी थी, देश विभाजन न होता तो देश नष्ट होता, आजादी न मिलती।
यह भी सच है देश विभाजन की बहुत बड़ी कीमत अदा की है जनता ने। देश की जनता देश विभाजन के पक्ष में नहीं थी, मुस्लिम लीग और कांग्रेस के बीच उस समय जो स्थिति थी उसमें देश विभाजन से बेहतर फैसला संभव ही नहीं था, इससे भारत को बड़ी क्षति से बचाने में मदद मिली, इसका अर्थ यह नहीं है कि देश विभाजन से भारत की कोई क्षति नहीं हुई, देश विभाजन से भारत को बहुत बड़ी क्षति उठानी पड़ी।
विभाजन की पीड़ा को हम आज भी झेल रहे हैं। लेकिन समग्रता में देखें तो विभाजन और सम्पूर्ण देश विनाश में से विभाजन को चुनकर कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व ने सही फैसला लिय़ा था।
संप्रभु राष्ट्र के रूप में भारत का जन्म हमारे देश की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसके कारण हम लोकतंत्र, स्वाधीनता और समानता के सपनों के लिए संघर्ष का बुनियादी आधार बनाने में सफल रहे। आज भी लोकतंत्र, समानता और बंधुत्व हम सबके लिए सपने की तरह है। इनके सपनों में जीना और सपनों को पाने के लिए निरन्तर जद्दोजहद करना हमारी दैनंदिन जिन्दगी है।
लोकतंत्र आज हमारी प्राणवायु है, इसके बिना हम जिन्दा नहीं रह सकते। लोकतंत्र पर कोई समझौता नहीं कर सकते, क्योंकि भारत विभाजन जैसी बड़ी कीमत अदा करके हमने इसे पाया है।
लोकतंत्र हम सबके लिए बेहद कीमती मूल्य है, जीवनशैली है, हमारे समाज की आत्मा है और आत्मा को बेचकर, आत्मा पर हमले करके कोई समाज सुख से नहीं रह सकता।
स्वाधीनता का अर्थ जानिए
स्वाधीनता का अर्थ है लोकतंत्र। वह हमारे देश की प्राणवायु है, यह झूठा लोकतंत्र नहीं है अधूरा लोकतंत्र है, इसे संपूर्ण बनाने के लिए निरंतर संघर्ष और लोकतांत्रिक आंदोलनों की जरूरत है। स्वाधीनता आंदोलन की यह महानतम उपलब्धि है। हमें इस पर गर्व है।
15 अगस्त को हर साल केन्द्र और राज्य सरकारों के सालभर के काम को लोकतंत्र की कसौटी पर कसकर देखना चाहिए। मोदी सरकार को भी इसी कसौटी पर परखने की जरूरत है, यह दिन लोकतंत्र की सालाना ऑडिट रिपोर्ट जारी करने का दिन है।
अफसोस की बात है मोदी एंड कंपनी अपने लोकतंत्र में योगदान का लेखा-जोखा देने की बजाय तानाशाही की उपलब्धियों को बताते रहे।
असल में हम सबको 15अगस्त को देखने का मानक बदलना होगा। मोदी के सत्ता में आने के बाद जनता में गरीबी, बेकारी बढी है। राज्यों के संवैधानिक हकों पर हमले बढ़े हैं। एक राज्य खत्म कर दिया गया। दूसरे में जनसंहार चल रहा है। जीएसटी के नाम पर लूट चल रही है। सीएजी की आधा दर्जन मंत्रालयों की रिपोर्ट में करप्शन सामने आया है। इन सब पर मोदी सरकार चुप है।
सन् 2014 में देश जहां खड़ा था आज उससे पीछे चला गया है। देश में विगत नौ सालों में 22 करोड़ लोगों की नौकरी गई, साढ़े चार लाख उद्योग-धंधे-छोटे कारखाने बंद हुए। पामाली का आलम है कि सरकार को अस्सी करोड़ परिवारों को राशन देना पड़ रहा है। यह सब विकास का लक्षण नहीं है। इससे समझो और मोदी का विरोध करो।
प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी