महाकवि
जिन्होंने नहीं की व्यवस्था के विरोध में कभी कोई बात
नहीं विचलित हुए अन्याय और अत्याचार से
जो अपने अस्तित्व को परजीविता और दया के साये में छिपाकर गौरवान्वित हुए
भजन कीर्तन किया
नहीं हुए शर्मशार कभी पाखंड और दोगलेपन पर
झूलते रहे निरंतर समझौतों के झूले पर
फेसबुक पर हर व्यक्ति के मरने पर श्रद्धांजलि
और जन्मदिन पर बधाई देते
किसानों की हत्या, गरीबों पर जुल्म, सांप्रदायिकता और धार्मिक जुनून पर चुप्पी साधे रहे
खामोश रहे राजसत्ता की निरंकुशता पर
पूंजीपतियों और सरकार से पाकर पुरस्कार परम प्रसन्न होते रहे
उन्होंने
स्त्रियों से प्रेम, काल्पनिक विवरणों और फूल-पत्तियों पर ढेरों लच्छेदार कविताएं लिखीं
वे महाकवि कहलाए.
शैलेन्द्र चौहान