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नारी शक्ति वंदन विधेयक मोदी सरकार के ताबूत में एक कील साबित होने जा रहा है!

मोदी ने अपनी भले ही प्रचंड बहुमत वाली सरकार के जोर से ‘ईडब्ल्यूएस आरक्षण’ की भांति वर्षो से लंबित पड़ा महिला आरक्षण विधेयक आसानी से पारित करा लिया हो, लेकिन इस आरक्षण में ओबीसी की अनदेखी कर उन्होंने विपक्ष को प्रबल विरोध का अवसर दे दिया है.    

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OPINION DEBATE

Nari Shakti Vandan Bill is going to prove to be a nail in the coffin of the Modi government!

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पिछले कई वर्षो से लंबित पड़ा महिला आरक्षण विधेयक ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक’ के बदले नाम के साथ संसद के नए भवन के दोनों संदनों में बहुत आसानी से पारित हो चुका है. इसके आसानी से पारित होने का यह आलम रहा कि जो दल इसके कुछ प्रावधानों को लेकर शिकायत कर रहे थे या संशोधन की मांग उठा रहे थे, इस बार वे भी अपनी आपत्तियों के साथ समर्थन के लिए सामने आए. महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं की सीटों में 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित कराने वाला यह विधेयक कुछ वर्षों बाद, राहुल गाँधी के शब्दों में संभवतः दस वर्ष बाद ही अमल में आ सकेगा, क्योंकि इसे लागू करने के पहले जनगणना होगी और फिर परिसीमन. परिसीमन ही निर्दिष्ट करेगा कि कौन सी सीट महिलाओं को आरक्षित होगी. महिला आरक्षण की व्यवस्था 15 वर्षों के लिए की गयी है: 15 वर्ष बाद समीक्षा करने के संसद यदि चाहेगी तो यह आगे बढ़ेगी. इस विधेयक के पारित होने से भाजपा में नए उत्साह का संचार हुआ है. 

नारी शक्ति वंदन विधेयक पर संसद की मुहर लगने के बाद भाजपा की महिला मोर्चे की ओर से पार्टी मुख्यालय में भव्य समारोह आयोजित कर प्रधानमंत्री मोदी का अभिनन्दन किया गया है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इसे ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदृष्टि, अटल निशचय और दृढ़ समाधान से सम्भव हुआ है. केन्द्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा है, ’दोनों सदनों में पारित‘ नारी शक्ति वंदन विधेयक’ के माध्यम से मोदी जी ने अमृतकाल में एक अधिक समावेशी संसदीय लोकतंत्र की मजबूत नींव रखी है, जहां महिलाओं की बात अधिक सुनी जाएगी और उनके मुद्दों पर अधिक जोरदार ढंग से चर्चा की जाएगी.’

केन्द्रीय महिला बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा है कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम से एक नए भारत की नींव रखी गयी है और इससे नारी सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलेगा.’ 

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इस विधेयक के भाजपा की ओर से जिस नरेंद्र मोदी का जयगान हो रहा है, उन्होंने इसके लिए अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार को श्रेय देते हुए कहा है, ’नारी शक्ति वंदन अधिनियम सिर्फ महिलाओं के विकास की बात नहीं है. हमें मानव जाति की विकास यात्रा में नए पड़ाव को अगर प्राप्त करना है, राष्ट्र की विकास यात्रा में नई मंजिलों को अगर पाना है तो आवश्यक है कि हम महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास को बल दें. महिला सशक्तिकरण की हमारी हर योजना ने महिला नेतृत्व करने की दिशा में बहुत सार्थक कदम उठाये हैं.’

बहरहाल मोदी ने अपनी भले ही प्रचंड बहुमत वाली सरकार के जोर से ‘ईडब्ल्यूएस आरक्षण’ की भांति वर्षो से लंबित पड़ा महिला आरक्षण विधेयक आसानी से पारित करा लिया हो, लेकिन इस आरक्षण में ओबीसी की अनदेखी कर उन्होंने विपक्ष को प्रबल विरोध का अवसर दे दिया है.       

नारी शक्ति वंदन के नए नाम से पारित विधेयक में ओबीसी वर्ग की महिलाओं की हिस्सेदारी सुनिश्चित करायी जाय, इसकी मांग खुद भाजपा से जुड़े ओबीसी नेताओं की रही, जिसकी सबसे मुखर वकालत भाजपा की वरिष्ठ नेत्री उमा भारती ने की हैं. मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने महिला शक्ति वंदन बिल का स्वागत करते हुए इसमें ओबीसी वर्ग की महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की पैरवी की थी. भाजपा के सहयोगी दल ‘अपना दल’ की अनुप्रिया पटेल भी महिला आरक्षण में ओबीसी वर्ग के महिलाओं की हिस्सेदारी सुनिश्चित हो, इसकी पुरजोर मांग उठाती रही हैं. सिर्फ उमा भारती या अनुप्रिया पटेल ही नहीं, ओबीसी सांसद संघमित्रा मौर्य (लोकसभा, बदायूं), संगीता यादव (राज्यसभा, उत्तर प्रदेश), कल्पना सैनी (राज्यसभा, उत्तराखंड), केशरी देवी पटेल (लोकसभा, फूलपुर) ने भी महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी के लिए ‘कोटे के भीतर कोटा’ की मांग रखीं, किन्तु मोदी ने उसकी अनदेखी कर दी. 

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फ़रवरी 2023 में अपने 85वें अधिवेशन में महिला आरक्षण ‘कोटे में कोटा’ का समर्थन करने वाली कांग्रेस ने भी महिला आरक्षण में ओबीसी की महिलाओं की हिस्सेदारी तय नहीं होने पर क्षोभ प्रकट किया. कांग्रेस की ओर से राहुल गाँधी ने महिला आरक्षण को तुरंत लागू करने के लिए जनगणना व परिसीमन की शर्त हटाने की मांग की. इस अवसर पर उन्होंने 2010 में यूपीए द्वारा राज्यसभा में पारित महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी कोटे का प्रावधान नहीं होने को लेकर खेद जताते हुए कहा कि उन्हें इसका सौ प्रतिशत अफ़सोस है, हमें यह तभी करना चाहिए था. 

निश्चय ही नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित होने के बाद कहा जा सकता है कि 2010 में कांग्रेस ने जो ऐतिहासिक भूल की उसका फायदा मोदी सरकार ने उठा लिया है, जिसकी भरपाई के लिए कांग्रेस को बहुत मशक्कत करनी पड़ेगी. बहरहाल नारी शक्ति वंदन विधेयक के पारित होने से भले ही भाजपा के महिला मोर्चा सहित उसके कनिष्ठ से लेकर तमाम नेताओं में जश्न का माहौल हो, किन्तु यह विधेयक मोदी सरकार की ताबूत में एक कील साबित होने जा रहा है, इसका लक्षण साफ़ दिखने लगा है.  

महिला आरक्षण विधेयक में ‘कोटे में कोटा’ का समर्थक राजद- सपा इत्यादि बहुजनवादी दल विविध कारणों से भले ही नारी शक्ति वंदन विधेयक का समर्थन कर दिया, पर उनके समर्थक बुद्धिजीवियों, एक्टिविस्टों इत्यादि में इसे लेकर भारी आक्रोश है और वे इसका 30 सितम्बर को प्रदर्शन करने का मन बना लिए हैं, इसकी खबरें सोशल मीडिया पर आ रही हैं. इस विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, पटना जैसे बड़े शहरों के ही नहीं, जंगल–पहाड़ों से घिरे दुर्गम इलाकों के बुद्धिजीवी- एक्टिविस्ट भी मन बना लिए हैं. रांची से राष्ट्रीय ओबीसी मोर्चा की ओर से एक खबर वायरल हुई है, जिसमें बताया गया है कि मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष राजेश गुप्ता ने प्रेस वार्ता में कहा है, ’नारी शक्ति वंदन अधिनियम में ओबीसी महिलाओं को आरक्षण नहीं मिलने के कारण ओबीसी समुदाय में भारी आक्रोश है, जिसका विरोध-प्रदर्शन 30 सितम्बर, 2023 को ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ की प्रति को जला कर किया जायेगा, क्योंकि इस बिल में ओबीसी महिलाओं को अलग से कोटा नहीं दिया गया है. यह बिल संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के खिलाफ है. उन्होंने सवाल खड़ा किया है कि देश में आखिर किस वर्ग की महिलाओं के साथ दुराचार, शोषण, हत्या, अपहरण और बलात्कार होता है ? एनसीआरबी के आंकड़ें बताते हैं कि सबसे ज्यादा एससी, एसटी और ओबीसी महिलाओं को समाज में हिंसक, यौन उत्पीडन एवं अपमानजनक घटनाओं का शिकार होना पड़ता है. फिर इन्हें 33% महिला आरक्षण में अलग से कोटा (आरक्षण ) निर्धारित क्यों नहीं किया गया ? शहरी और पढी-लिखी सशक्त अगड़ी जाति की महिलाओं की तुलना में एससी, एसटी, व ओबीसी वर्ग की महिलाएं निर्बल और शोषित हैं, जिन्हें सशक्तिकरण की जरुरत है. झारखण्ड में राष्ट्रीय ओबीसी मोर्चा सामूहिक एवं व्यक्तिगत रूप से बिल की प्रति को फाड़ते हुए जलाकर विरोध दर्ज करेगा. जब तक महिला आरक्षण बिल अर्थात नारी शक्ति वंदन अधिनियम में संशोधन कर ओबीसी और एससी /एसटी महिलाओं को अलग से आरक्षण का प्रावधान नहीं किया जाता है तब तक आने वाले समय में ओबीसी समुदाय चुप नहीं बैठेगा : वह सड़कों पर उतर कर पुरजोर विरोध करता रहेगा. मोर्चे की ओर से नारा उछाला जा रहा है, ’जिस महिला विधेयक में ओबीसी की भागीदारी नहीं- वह बिल हमारी नहीं’; ‘33% महिला आरक्षण में ओबीसी कोटा लागू करो-वर्ना कुर्सी खली करो!’

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बहरहाल 30 सितम्बर को नारी शक्ति वंदन विधेयक के खिलाफ होने वाले विरोध प्रदर्शन पर जो राय झारखण्ड के ओबीसी मोर्चे का है, प्रायः वही देश भर में फैले दलित –पिछडों के असंख्य संगठनों का है. ओबीसी मोर्चे की भांति ही बड़े-बड़े शहरों से लेकर सुदूर इलाकों के संगठन सड़कों पर उतर विधेयक की प्रति फाड़कर जलाने के साथ, जब तक विधेयक में संशोधन नहीं हो जाता तबतक तरह-तरह से विरोध प्रदर्शन करने का संकल्प ले लिए हैं. इसीलिए पूर्व पंक्तियों में कहा हूँ यह बिल मोदी सरकार की ताबूत में एक कील साबित होने जा रहा है. इस बीच नारी शक्ति वंदन अधिनियम की प्रति जलाने का दिल्ली ‘संविधान बचाओ संघर्ष समिति’ ओर से रिहर्शल भी हो चुका है.

हाल के वर्षों में बहुजन आन्दोलनों में अग्रणी भूमिका निभाने वाले दिल्ली के संविधान बचाओं संघर्ष समिति जैसे वैचारिक संगठन की ओर से 28 सितम्बर को एक प्रेस वार्ता आयोजित की गयी, जिसका लाइव प्रसारण आंबेडकरनामा चैनल की ओर से हुआ. इसमें प्रो रतन लाल, डॉ. अनिल जयहिन्द, आप सरकार के पूर्वमंत्री डॉ. राजेन्द्र पाल गौतम, प्रो. सूरज मंडल सहित तेलंगाना और हैदराबाद से आए बुद्धिजीवी और छात्र-छात्राएं शामिल रहे. इसमें 30 सितम्बर को नारी शक्ति वंदन अधिनियम के खिलाफ होने वाले विरोध-प्रदर्शन की रणनीति पर विस्तार से रोशनी डालते हुए संविधान बचाओं संघर्ष समिति की ओर से कहा गया है कि आरक्षण को तहस-नहस करना संघ परिवार का लक्ष्य है. इसी के तहत ईडब्ल्यूएस आरक्षण धडाधड लागू हो रहा है और बहुजनों के आरक्षण की अनदेखी की जा रही है. हमारा मानना है कि महिलाओं में जाति है और दलित, आदिवासी ,पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय की महिलाएं सर्वाधिक अशक्त व वंचित हैं. इस रूप में विधेयक पास होने पर सारा का सारा लाभ सवर्ण समुदाय की उन आभिजात्य महिलाओं को मिलेगा जो किट्टी पार्टी करती हैं और शाम को पांच सितारा होटलों में कॉफ़ी पीने जाती है. ओबीसी सहित समस्त बहुजन समाज के लोग नारी शक्ति वंदन अधिनियम के पास होने से सदमे में हैं. इसके खिलाफ हम 30 सितम्बर से अपना आन्दोलन शुरू करने जा रहे हैं और हमारा आन्दोलन स्टेप बाई स्टेप तबतक जारी रहेगा जबतब तक इसमें एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटीज की हिस्सेदारी सुनिश्चित नहीं हो जाती. हम इसे चुनाव का मुद्दा बनायेंगे और सरकार को चलने नहीं देंगे. जो संगठन सामाजिक न्याय में विश्वास करते हैं: जो संविधान के सिपाही हैं, वे सभी लोग और संगठन अपने-अपने झंडे-बैनर तले और लीडरशिप में 30 सितम्बर को सडकों पर उतरें. जिस तरह हमने 2 अप्रैल, 2018 को एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और 5 मार्च 2019 को 13 पॉइंट रोस्टर के खिलाफ उतर कर भारत बंद किया और सरकार को झुकने के लिए मजबूर किया, वही इतिहास हम नारी शक्ति वंदन विधेयक के खिलाफ 30 सितम्बर को दोहराएंगे.’

अपनी बात रखने के बाद संविधान बचाओं संघर्ष समिति की ओर से ‘नारी शक्ति वंदन अधिनयम’ की प्रति जलाकर 30 सितम्बर का रिहर्शल किया गया.      . .                

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बहरहाल जिस तरह संविधान बचाओ संघर्ष समिति सहित झारखण्ड के ओबीसी मोर्चा जैसे देश भर के बहुजन संगठनों की ओर से 30 सितम्बर के लिए संकल्प लिया गया है, उससे 2 अप्रैल, 2018 और 5 मार्च, 2019 से भी कुछ बड़ा होने का लक्षण स्पष्ट हो गया है, जो मोदी सरकार के अंत का एक अन्यतम सबब बन सकता है. 

-एच. एल. दुसाध

(लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.)    

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