इस निर्वस्त्र औरत की आड़ में चल रहे हैं इक भीड़ के नंगे सच
सच यह है
जो दिन के
उजालों में
सरेआम
दौड़ा रहे हैं
उसे
दरअसल
वो खुद ही
बेहद डरे हुए हैं
इस निर्वस्त्र औरत से
इन दिनों
न्यूज़ चैनलों पर
शिद्दत से
दिखाई जा रही है
भीड़ से घिरी हुई
चलती
निर्वस्त्र औरत
भीड़
खदेड़ रही है
उसे
चलचित्रों में
निरन्तर जारी है
भीड़ का खदेड़ना
मगर
झूठ है
यह सब
सरासर झूठ !
मुझे तो
कहीं नहीं दिख
रही
कोई निर्वस्त्र औरत
झूठ बक रहा है
मीडिया।
सच यह है
जो दिन के
उजालों में
सरेआम
दौड़ा रहे हैं
उसे
दरअसल
वो खुद ही
बेहद डरे हुए हैं
इस निर्वस्त्र औरत से
इस भीड़ की
यह लानतें
इस औरत के
लिये
हरगिज़ नही
इनके
खुद के लिये हैं
यह भीड़ खुद पर
शर्मिन्दा है
और धिक्कार रही है
अपने-अपने भीतर के
घटिया
ग़लीज़
डरपोक
जात को
क्योंकि इस भीड़
को मालूम है
अपना
सदियों पुराना
भ्रामक खोखली
ताक़तों का सच
जिसे
बद क़िस्मती से
ये औरत भी
जान चुकी है
अब यह निर्वस्त्र
औरत, औरत नही
नक़ाब है
इस भीड़ में शामिल
हर चेहरे का
जो ग़लती से
ज़रा सा भी
इधर उधर सरका
तो भीड़ को
नंगा कर देगा
इसी लिए कहीं
कोई
निर्वस्त्र औरत नहीं
चल रही
बल्कि इस
निर्वस्त्र औरत की
आड़ में
चल रहे हैं
इक भीड़ के
सैकड़ों
करोड़ों
लुके ढुके
नंगे सच।
डॉ कविता अरोरा