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आज अपने सर्वकालीन अंधेरे समय से गुजर रहा है भारत

भारत की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर बड़ी आसानी से यह कहा जा सकता है कि आज भारत अपने अस्तित्व के सबसे अंधेरे काल से गुजर रहा है।

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hastakshep
02 Nov 2023
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discussion and opinion

Today India is going through its darkest time of all time.

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भारत की वर्तमान परिस्थितियों को देखकर बड़ी आसानी से यह कहा जा सकता है कि आज भारत अपने अस्तित्व के सबसे अंधेरे काल से गुजर रहा है।

भारतवर्ष के अनेकों अनेक महापुरुष जैसे गौतम बुद्ध, कबीर, रविदास, सम्राट अशोक, अकबर द ग्रेट, टीपू सुल्तान, बहादुर शाह जफर, लक्ष्मी बाई, टैगोर, गांधी, नेहरू, पटेल, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, प्रेमचंद, निराला, साहिर, मुजफ्फर अहमद, नम्बूदरीपाद, ज्योति बसु आदि आदि जैसे महापुरुष हुए हैं।

हमारे इन सभी महापुरुषों ने पुराने भारत में व्याप्त गरीबी, शोषण, जुल्म, अन्याय, जातिवाद, वर्णवाद, सामंतवाद और पिछड़ेपन का विरोध किया था। भारत के स्वतंत्रता संग्राम (India's freedom struggle) के दौरान हमारे तमाम स्वतंत्रता सेनानियों और क्रांतिकारियों ने एक सपना देखा था कि आजादी मिलने के बाद भारत में समता, समानता, न्याय, शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था कायम की जाएगी, भारत में जनता का जनतंत्र, गणराज, संप्रभुता, धर्मनिरपेक्षता समाजवाद और जनता में भाईचारे के मूल्यों को रोपा जाएगा।

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इसी के साथ-साथ यह भी कामना की गई थी कि भारत की जनता को आधुनिक शिक्षा दी जाएगी, उसे शोषण, जुल्म और अन्याय के शासन को समाप्त करने की शिक्षा दी जाएगी और उसे दुनिया का आधुनिक नागरिक बनाया जाएगा जो धर्मनिरपेक्षता जनवाद, धर्मनिरपेक्षता समाजवाद और आपसी भाईचारे के मूल्यों से परिपूर्ण और लबरेज होगा, वह पूरे देश की जनता और पूरी दुनिया के कल्याण के सपने देखेगा और उन सपनों को साकार करेगा।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन मूल्यों को धरती पर उतारने का काम किया गया। सबको शिक्षा, सबको स्वास्थ्य, आरक्षण, कुछ हद तक जमीन का बंटवारा, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने जैसे काम किए गए। मगर धीरे-धीरे भारत के पूंजीपति और सामंती वर्ग और सांप्रदायिक ताकतों के गठजोड़ द्वारा इन मूल्यों का निरादर और अवमूल्यन किया गया और जनता को लगातार इन मूल्यों से दूर किया गया।

आज हालात यह हैं कि भारत के अधिकांश लोग जातिवादी, वर्णवादी, भ्रष्टाचारी, मुनाफाखोर, सत्ता और शासन के भूखे और लुटेरे बन गए हैं। आज जैसे भाई-भाई के अधिकार को खा रहा है, मां बाप का निरादर किया जा रहा है, जमीन के लिए भाई का, मां-बाप का गला काटा जा रहा है, उनकी हत्या की तक की जा रही है, भाई- भाई की जमीन और हक छीन रहा है, बच्चे मां-बाप को घर से बाहर निकल रहे हैं, उन्हें छोड़कर जा रहे हैं, उनके खाने-पीने का, उनकी दवाई का इंतजाम नहीं करते हैं और उन्हें बोझ मानने लगे हैं।

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आज सबसे ज्यादा खतरा शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार पर छा गया है। भारत में आज सबसे ज्यादा हमला शिक्षा पर है, गरीबों से तो जैसे शिक्षा छीन ही ले गई है, क्योंकि शिक्षा का निजीकरण करके शिक्षा को इतना महंगा कर दिया गया है कि भारत की लगभग 100 करोड़ जनता सस्ती और आधुनिक शिक्षा पाने के अधिकार से महरूम हो गई है और पूरी शिक्षा व्यवस्था मुनाफाखोरी के अभिशाप से अभिशप्त हो गई है।

यही हाल स्वास्थ्य का है। आज स्वास्थ्य को मुनाफाखोरी से जोड़ दिया गया है, अस्पतालों के अधिकांश मालिक आज सबको सस्ता स्वास्थ्य देना नहीं चाहते, बल्कि उनका केवल एक ही काम है कि वे किसी भी तरह से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाए, किसी भी तरह से मरीजों को गुमराह कर, उन्हें मूर्ख बनाकर, उनसे ज्यादा से ज्यादा पैसा वसूल किया जाए? अधिकांश अस्पताल मालिक का केवल और केवल यही उद्देश्य रह गया है।

दूसरा सबसे बड़ा हमला रोजगार पर हुआ है। भारत के संविधान में सबको रोजगार देने की बात कही गई थी। धन को सब में बांटने की बात कही गई थी और गरीबी दूर करने की बात की गई थी मगर आजादी के बाद पिछले तीस सालों में और विशेष कर पिछले दस सालों में भारत की जनता में गरीबी और अमीरी का बहुत बड़ा पहाड़ खड़ा हो गया है। आज हमारे देश में अमीरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सबसे दुखदाई बात यह है कि आज हमारे देश में दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब लोग मौजूद हैं जिनकी संख्या एक अरब से भी ज्यादा है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ही हमारे देश में 80 करोड़ से ज्यादा गरीब लोग मौजूद हैं।

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इसी के साथ-साथ पिछले तीस साल में और विशेषकर पिछले दस साल में हमारे ज्ञान विज्ञान की संस्कृति पर बहुत बड़ा हमला किया गया है। आज ज्ञान विज्ञान विवेक और लॉजिक व अनुसंधान के साम्राज्य को बढ़ाने की बात नहीं हो रही है, हर एक चीज में धर्मांता और देवताओं देवी को ठूंसा जा रहा है जिसके कारण जनता ने आज अपनी दुर्दशा पर, अपनी गरीबी, जुल्मों सितम, अन्याय, अशिक्षा और बेरोजगारी पर सोचना लगभग बंद कर दिया है। उन्हें सिर्फ और सिर्फ अंधविश्वास और धर्मांता के गर्त में धकेला जा रहा है और वह देवी देवताओं, अंधविश्वासों और धर्मांधताओं में अपनी मुक्ति ढूंढने को मजबूर कर दी गई है।

यही हाल न्याय और अन्याय को लेकर व्याप्त है। भारत के संविधान में प्रावधान किया गया था कि भारत की जनता को सस्ता और सुलभ न्याय प्राप्त कराया जाएगा। मगर आज हम देख रहे हैं कि भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मुकदमें लंबित हैं जिनकी संख्या 5 करोड़ से ज्यादा है और सरकार का जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने का कोई इरादा या एजेंडा नहीं है। सरकार लगातार मांग के बावजूद भी मुकदमों के अनुपात में न्यायाधीश नियुक्त नहीं कर रही है, मुकदमों के अनुपात में बाबू स्टैनो पेशकार नियुक्त नहीं कर रही है और मुकदमों के अनुपात में न्यायालयों और अदालतों का निर्माण नहीं कर रही है।

जहां पहले प्रावधान था कि सुनवाई के लिए एक दिन में 27 या 30 मुकदमे होने चाहिए। आज इनकी संख्या 150 से 200 प्रतिदिन से ज्यादा बढ़ गई है कई कई साल से न्यायाधीशों के पद खाली पड़े हुए हैं और सरकार इस बारे में कोई ध्यान नहीं दे रही है।

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पिछले कुछ सालों में सबसे बड़ा कुठाराघात जनता की एकता और एकजुटता पर किया गया है। अंग्रेजों की अपनाई गई रीति "फूट डालो राज करो" यानी "बांटों और राज करो" का अनुसरण हमारी सरकार भी कर रही है। भारत की जनता में धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र को लेकर लगातार फूट डाली जा रही है। उसकी एकता और अखंडता को तोड़ा जा रहा है और उसके अंदर जातिवादी और हिंदू मुसलमान के नाम पर नफरत फैला कर भारत की मिली जुली हिंदुस्तानी सभ्यता और संस्कृति पर हमला किया जा रहा है।

इस प्रकार हम यह कहने को मजबूर हैं कि आज हमारा देश उस काल से गुजर रहा है कि जिसकी कल्पना हमारे लाखों करोड़ों स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों ने नहीं की थी। आज उनके सपनों को बिल्कुल धराशाई कर दिया गया है। सरकार ने जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय और रोजगार को बिल्कुल गड्ढे में डाल दिया है और वह अब सिर्फ और सिर्फ कुछ पूंजीपतियों के दौलत के साम्राज्य को, मुनाफाखोरी के साम्राज्य को ही आगे बढ़ाने में लगी हुई है, इसी के लिए वह सत्ता पर काबिज है। इसके अलावा वह और कुछ भी नहीं कर रही है और आज हमारा देश अपने सर्वकालीन जनविरोधी और अंधेरे समय से गुजर रहा है और अब हमारे पास इस सबके खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा रह गया है।

मुनेश त्यागी

 

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