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भारत में प्रजातंत्र और राष्ट्रवाद के बारे में क्या सोचती है दुनिया?
मणिपुर में हिंसा के शिकार कौन हैं?
मणिपुर में जारी हिंसा के शिकार मुख्यतः निर्दोष लोग हो रहे हैं. वे शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हैं. इस बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राएं (Foreign visits of Prime Minister Narendra Modi) जारी हैं. अपने पूर्व कार्यकाल (2014-19) में उन्होंने विदेश यात्राओं का रिकॉर्ड बनाया था. अपने दूसरे कार्यकाल में कोविड-19 महामारी के कारण उनकी विदेश यात्राओं पर कुछ रोक लगी थी परन्तु महामारी समाप्त होते ही वे एक बार फिर दुनिया भर में घूम रहे हैं.
FAQs
FAQs
वर्तमान में अमरीका और फ्रांस के सरकारें भले की हमारे प्रधानमंत्री के लिए लाल कालीन बिछा रही हों परन्तु उनके ही देशों में भारत के शासक दल की नीतियों के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं क्योंकि ये नीतियां अल्पसंख्यकों को आतंकित करने वाली हैं.
प्रधानमंत्री की हालिया अमरीका और फ्रांस यात्रा में उच्च पदासीन लोगों ने भले ही उनकी जय-जयकार की हो, परन्तु मोदी के खिलाफ विदेशों में आमजनों ने प्रदर्शन किये, कई प्रतिष्ठित समाचारपत्रों ने उनकी आलोचना करते हुए सम्पादकीय लिखे और यूरोपीय संसद सहित कई प्रमुख संस्थाओं ने उनके खिलाफ प्रस्ताव पारित किये. विरोध प्रदर्शनकारियों और प्रधानमंत्री से असहज करने वाले प्रश्न पूछने वालों को ट्रोल किया गया और भारत के अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी करने के लिए उनकी आलोचना की गयी. परन्तु यह साफ़ है कि इन्टरनेट के युग में समाज के कमज़ोर वर्गों के साथ दुर्व्यवहार और भेदभाव या उनके खिलाफ अत्याचार को छुपाना मुश्किल है. दुनिया सिकुड़ रही है और निडर पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की टोली ज़मीनी स्तर पर समाज के एक बड़े तबके के मानवाधिकारों के उल्लंघन का पर्दाफाश कर रही है. ऐसे मामलों को सरकार या तो नज़रअंदाज़ कर रही है या इस तरह के अन्याय को प्रोत्साहन दे रही है और दोषियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर रही है.
अमरीका में राष्ट्रपति जो बाइडन मोदी ने गले लगाया, तो उन्होंने मोदी को व्हाइट हाउस में पत्रकार वार्ता संबोधित करने के लिए राजी कर लिया. बड़ी मुश्किल से मोदी दो प्रश्नों का जवाब देने के लिए राजी हुए. और इतने ही में उनकी कलई खुल गई.
‘वालस्ट्रीट जर्नल’ की सबरीना सिद्दीकी के उनसे पूछा कि उनके देश में मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ बढ़ते अत्याचारों के मद्देनज़र उनकी सरकार अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों, के साथ भेदभाव रोकने के लिए क्या कर रही है.
बाइडन यह प्रश्न मोदी ने नहीं पूछ सकते थे क्योंकि वे भारत को दक्षिण एशिया में अमरीका का मित्र राष्ट्र बनाना चाहते हैं. भारत, पाकिस्तान का स्थान लेगा. पाकिस्तान ने कच्चे तेल के भंडारों पर नियंत्रण स्थापित करने सहित अमरीका के सभी उद्देश्यों और लक्ष्यों की पूर्ती में अपनी भूमिका का निर्वहन कर दिया है और अमरीका के लिए अब उसकी कोई उपयोगिता नहीं बची है. अब चीन की बढ़ती ताकत से मुकाबला करने के लिए अंकल सैम को भारत की दरकार है.
सिद्दीकी के प्रश्न के उत्तर में मोदी ने कुछ सामान्य सी बातें कहीं – हम प्रजातंत्र हैं और भेदभाव नहीं करते आदि. इसके बाद भारत की सुप्रशिक्षित ट्रोल आर्मी को सिद्दीकी के पीछे छोड़ दिया गया. ट्रोलिंग इतनी भयावह थी कि व्हाइट हाउस के प्रवक्ता को उनके बचाव में आगे आना पड़ा. व्हाइट हाउस ने कहा कि वह पत्रकारों को इस तरह परेशान किये जाने को उचित नहीं मानता.
जो नहीं कह सके बाइडन, उसे उनके पूर्ववर्ती बराक ओबामा ने कहा.
सीएनएन के साथ एक साक्षात्कार में ओबामा ने कहा कि अगर भारत में अल्पसंख्यकों को संरक्षण नहीं दिया गया तो देश टूट जायेगा.
ओबामा को ट्रोल करने की ज़िम्मेदारी दलबदल कर भाजपा में शामिल हुए हेमंत बिस्वा सरमा ने निभायी. उन्होंने ओबामा के नाम में हुसैन शब्द जोड़ कर कहा कि भारत में बहुत से हुसैन ओबामा हैं, जिनसे निपटा जाना है. मोदी के खिलाफ अनेक प्रदर्शन तो हुए ही, भारत में मुसलमानों, ईसाईयों, दलितों और आदिवासियों पर अत्याचारों का विस्तृत विवरण देते हुए अरुंधती राय का लेख ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने प्रमुखता से प्रकाशित किया.
अरुंधती ने इस लेख में अमरीका के पुराने दोस्तों की चर्चा की है.
“अमरीका ने अपने साथी के रूप में जिन बेहतरीन महानुभावों को चुना है उनमें शामिल हैं ईरान के शाह, पाकिस्तान के जनरल मुहम्मद ज़िया-उल-हक, अफ़ग़ानिस्तान के मुजाहिदीन, ईराक के सद्दाम हुसैन, दक्षिण वियतनाम के कई छुटभैय्ये तानाशाह और चिली के जनरल ऑगुस्तो पिनोचे. अमरीका के विदेश नीति का आधार है: अमरीका के लिए प्रजातंत्र और उसके अश्वेत दोस्तों के लिए तानाशाही”.
फ्रांस का मामला भी ऐसा ही है.
राष्ट्रपति मैक्रॉन ने मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया और दोनों समृद्ध प्रजातंत्रों की दोस्ती की सराहना की. स्ट्रासबर्ग में लगभग उसी समय यूरोपीय पार्लियामेंट ने भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति, और विशेषकर मणिपुर में हिंसा, पर दुःख और चिंता व्यक्त करते हुए इस उत्तरपूर्वी राज्य में खूनखराबे पर छह प्रस्तावों पर चर्चा की और संकल्प पारित किया. इस संकल्प में ईसाई और अन्य अल्पसंख्यकों की ‘प्रताड़ना’ और हिन्दू बहुसंख्यकवाद पर चर्चा की गयी है.
‘ले मोंडे’ ने भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति पर क्या लिखा?
फ्रांस इस अग्रणी समाचारपत्र ‘ले मोंडे’ ने भारत में अल्पसंख्यकों की स्थिति और प्रजातान्त्रिक आज़ादियों में गिरावट की खुल कर निंदा की. अख़बार ने लिखा, “परन्तु क्या हम इस तथ्य को भुला सकते हैं कि मोदी ने नेतृत्व में भारत एक गंभीर संकट से गुज़र रहा है और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, एनजीओ और पत्रकारों पर हमलों में बढोत्तरी हो रही है?”
इन अग्रणी और जाने माने समाचारपत्रों की टिप्पणियों, आम लोगों के प्रदर्शन और बराक ओबामा जैसे लोगों की राय को हमें ‘हमारे आतंरिक मामलों में दखलंदाजी’ के रूप में लेना है या हमें आत्मचिंतन कर हमारे देश की प्रजातान्त्रिक संस्कृति और मूल्यों में क्षरण को थामने के प्रयास करने हैं? यह वह प्रश्न है जिसका हम सबको आने वाले समय में सामना करना है.
-डॉ राम पुनियानी
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया; लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)
What does the world think about democracy and nationalism in India?