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समाजवादियों और साम्यवादियों को एकजुट होना क्यों जरूरी है?

Why is it important for socialists and communists to unite? यह जानना आवश्यक है कि आखिर यह वैज्ञानिक समाजवाद क्या है? समाजवादी विचारधारा केवल कल्पनाओं में ही नहीं बस्ती है, वह केवल भावनाओं में भी नहीं रहती है

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hastakshep
15 Oct 2023
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Munesh Tyagi

मुनेश त्यागी

वैज्ञानिक समाजवाद के मर्म को समझ कर एकजुट होना होगा सारे समाजवादियों और साम्यवादियों को

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Why is it important for socialists and communists to unite?

डॉ राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि 12 अक्टूबर के अवसर पर समाजवाद पर बहुत चर्चा हो रही है। हम समाजवाद और वैज्ञानिक समाजवाद के बारे में बहुत चर्चाएं सुनते आए हैं। हमारे बहुत सारे मित्र जो समाजवादी विचारों से प्रभावित रहे हैं, भी कई बार समाजवाद की बात किया करते थे। हम कई बार सोचा भी करते थे कि आखिर यह समाजवाद क्या है? और इसके बारे में जानने की इच्छा लगातार बलवती होती चली गई।

मने अपने छात्र जीवन में पढ़ा था कि यहां जो लोग खेती करते हैं वह भूखे मरते हैं जो लोग मकान बनाते हैं वह सड़कों पर रहते हैं जो कपड़ा बनाते हैं वह नंगे रहते हैं। तभी कुछ दिन बाद पता चला कि ये शब्द जर्मनी के दार्शनिकों कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स के हैं। बाद में छात्र संघर्ष और पढ़ते-पढ़ते पता चला कि समाजवाद के असली जनक कार्ल मार्क्स और एंगेल्स हैं, जिन्होंने इसे वैज्ञानिक समाजवाद की संज्ञा दी और 19वीं सदी के उत्तरार्ध से दुनिया में वैज्ञानिक समाजवाद की धूम मच गई जो आज भी दुनिया की सर्वश्रेष्ठ और सबसे चर्चित विचारधारा का रूप धारण किए हुए हैं।

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अब यहां पर यह जानना आवश्यक है कि आखिर यह वैज्ञानिक समाजवाद क्या है? 

जर्मनी के दार्शनिकों कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स ने मानव समाज का अध्ययन करके बताया कि मानव समाज अभी तक आदिम साम्यवाद, दास समाज, सामंती समाज, पूंजीवादी समाज व्यवस्था से होकर गुजरा है। इसके आगे का विकास समाजवादी समाज से होकर गुजरेगा और इस समाजवाद को ही मार्क्स ने वैज्ञानिक समाजवाद की संज्ञा दी और बताया कि पूंजीवादी व्यवस्था के बाद दुनिया में समाजवादी व्यवस्था कायम होगी और आज इस व्यवस्था को ही वैज्ञानिक समाजवाद कहा जाता है।

वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था पर मार्क्स और एंगेल्स ने अवधारित किया था कि दुनिया में दो वर्ग हैं पूंजीपति वर्ग और मजदूर वर्ग। इसमें पूंजिपति वर्ग मजदूरों का शोषण करता है, उनकी मेहनत को हड़प लेता है उन्हें न्यूनतम वेतन नहीं देता। इस प्रकार उनमें लगातार संघर्ष से चलता रहता है। उन्होंने आगे कहा कि पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीपतियों और मजदूर वर्ग के बीच जीवन मरण का संघर्ष होगा जिसके परिणाम स्वरूप मजदूर वर्ग के नेतृत्व में समाजवादी व्यवस्था कायम होगी और सरकार मजदूर वर्ग की होगी। यह व्यवस्था समाज के सब लोगों के कल्याण और सबके विकास के लिए काम करेगी, जिसमें सबको शिक्षा, सबको काम, सबको स्वास्थ्य, सबको घर मोहिया कराए जाएंगे और जमीन,जल, जंगल, उत्पादन और सार्वजनिक संपत्ति पर समाज का कब्जा हो जाएगा।

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मार्क्स और एंगेल्स की इस विचारधारा को लेनिन ने और पुख्ता किया और पहली दफा किसानों और मजदूरों में एकता कायम करके कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में, रुस में जार की सरकार से लोहा लिया और वहां पर भयंकर संघर्ष के बाद, जार की सत्ता को ध्वस्त करके, उसमें मजदूर और किसानों के नेतृत्व में मेहनतकशों का राज कायम किया गया। यह संघर्ष रूस की कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में आगे बढ़ा और कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में रूस में समाजवादी समाज की स्थापना की गई और दुनिया में सबसे पहले मजदूरों और किसानों का राज कायम किया गया।

क्रांति के बाद रूस में सबको रोटी, सबको मुफ्त शिक्षा, सबको मुफ्त इलाज, सब को मुफ्त बिजली, सबको घर मुहैया कराए गए। हजारों साल से चले आ रहे शोषण, अन्याय, भेदभाव और जुल्मों सितम का खात्मा करके समानता, न्याय और भाईचारे के सिद्धांतों पर समाजवादी व्यवस्था की स्थापना की गई। उत्पादन, वितरण, उद्योग और जमीन पर सब का निजी अधिकार खत्म करके, इन सब को पूरे समाज की संपत्ति बना दिया गया। सारी जनता को मुफ्त बिजली मोहिया कराई गई। इस समाजवादी क्रांति के बाद, रूस दुनिया की एक महा शक्ति बन गया।

1917 की रूसी क्रांति के बाद, दुनिया में सबसे पहले किसानों मजदूरों को अपना भाग्य विधाता बनाया गया, उनकी सरकार और सत्ता कायम की गई और समाज में शोषणविहीन और अन्यायरहित व्यवस्था कायम की गई और इस प्रकार मानव इतिहास में सबसे पहले वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धांतों को, अमलीजामा पहनाकर, धरती पर उतारा गया।

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इसके बाद दुनिया में वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था की आंधी चल गई। देखते ही देखते दुनिया समाजवादी और पूंजीवादी दो धडों में बंट गई। उसके बाद चीन, पूर्वी यूरोप, कोरिया, वियतनाम, बोलिविया, क्यूबा और दुनिया का तीसरा हिस्सा, लाल हो गया। दुनिया दो हिस्सों में बंट गई, कमेरा यानी मेहनतकश वर्ग और लुटेरा यानी पूंजीपति वर्ग।

इसके बाद पूरी दुनिया में समाजवाद की आंधी चल पड़ी। हमारा देश भी रुसी क्रांति के प्रभाव से अलग थलग न रह पाया। मौलाना हसरत मोहानी ने सबसे पहले 1921 में "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे की रचना की। हमारे देश में कम्युनिस्ट पार्टी और हिंदुस्तानी समाजवादी गणतंत्र संघ के नेतृत्व में वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था की व्याख्या और बड़े पैमाने पर प्रचार प्रसार किया गया। इस अभियान में भगत सिंह और उसके साथियों ने बहुत बड़ी भूमिका अदा की। उन्होंने भारत की आजदी की लड़ाई में इंकलाब जिंदाबाद के नारे को अपनाया और इसे मजदूरों, किसानों, छात्रों और नौजवानों और सारी संघर्षरत जनता का नारा बनाया और कहा कि जब तक मार्क्सवादी सिद्धांतो पर आधारित समाजवादी व्यवस्था और समाज की स्थापना नहीं की जाती, तब तक जनता को, किसानों, मजदूरों और मेहनतकशों को हजारों साल पुराने शोषण, अन्याय, दमन और भेदभाव से मुक्ति नहीं मिल सकती।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी ने भी इस वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था के अभियान को आगे बढ़ाया। इस अभियान ने करोड़ों किसानों, मजदूरों, नौजवानों, महिलाओं, लेखकों और नौजवानों को अपने आगोश में ले लिया। इस प्रकार पूरे भारत में वैज्ञानिक समाजवाद क्रांति और कम्युनिस्ट पार्टी की बयार बहने लगी। समाज और देश का बड़ा हिस्सा गीत, संगीत, फिल्में, लाल रंग की विचारधारा में रंग गयी।

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दुनिया और देश में छायी समाजवादी विचारधारा से, हमारे देश के दूसरे दल, नेता और व्यक्ति भी अछूते नहीं रहे।  कांग्रेस में राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, नेहरू और बाद में कर्पूरी ठाकुर,  लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी ने भी समाजवादी विचारों को आगे बढ़ाया और समाजवादी पार्टी की स्थापना की। जयप्रकाश नारायण ने इमरजेंसी के आंदोलन में "संपूर्ण क्रांति"  यानी टोटल रिवोल्यूशन की बात की, लोहिया ने सप्त क्रांति की बात की थी। इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान की उद्देशिका में समाजवादी शब्द को शामिल किया। इस प्रकार कई नेता और बहुत सारे छात्र संगठन समाजवादी रंग में रंग गए। उन्होंने समाजवादी विचारधारा और समाजवादी समाज को आगे बढ़ाने और बनाने के लिए काम किया। मगर उनका समाजवाद वह काम नहीं कर पाया जो रुस चीन और दूसरे समाजवादी मुल्कों ने कर दिखाया था।

आज हम देख रहे हैं कि जयप्रकाश नारायण,  राम मनोहर लोहिया, कर्पूरी ठाकुर,  इंदिरा गांधी और मुलायम सिंह यादव का समाजवाद उस रंग में नहीं रंग पाया जिसकी जरूरत थी। समाजवादी पार्टी भी बस नाम की पार्टी रह गई है। समाजवादी पार्टी कई बार उत्तर प्रदेश में सरकार में आने के बाद भी वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा को धरती पर नहीं उतर पाई, किसानों मजदूरों और आम जनता के हक में कोई वैज्ञानिक कार्यक्रम और प्रचार-प्रसार नहीं कर पायी।

आखिर ऐसा क्यों हुआ? यह सब कैसे हुआ और  सब एक के बाद एक ये सब सिकुडते क्यों चले गए? ऐसा इसलिए हुआ कि ये तमाम लोग वैज्ञानिक समाजवाद के मर्म को समझ ही नहीं पाए। इन्होंने कभी भी वर्गीय आधार पर अपनी राजनीति नहीं की, वर्गीय आधार पर जनता के कल्याण का कोई प्रोग्राम नहीं बनाया। इन्होंने समाजवादी मर्म को समझे बिना ही, समाजवाद का भारतीयकरण करने की कोशिश की। ये सब के सब वैज्ञानिक समाजवादी कार्यक्रम, वर्गीय राजनीति, कम्युनिस्ट पार्टी की नेतृत्वकारी भूमिका, किसानों मजदूरों और जनता के संगठन, उनके कल्याण के कार्यक्रम और उनकी सरकार और सत्ता में किसानों मजदूरों की सरकार की अहम भूमिका को भूल गए और इन सब कारणों से इनका समाजवाद बीस तीस वर्षों में ही विलुप्त हो गया।

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यहीं पर यह जानना जरूरी है कि भारत के साम्यवादी दलों ने वैज्ञानिक समाजवाद के मर्म को समझा और इन्होंने किसानों मजदूरों छात्रों नौजवानों बुद्धिजीवियों के वर्गीय संगठन बनाये, उनमें वैज्ञानिक समाजवादी विचारधारा का प्रचार प्रसार किया और इसी आधार पर अपने कार्यक्रम बनाए। लोगों ने देश के बहुत सारे हिस्सों में इस कार्यक्रम को पसंद किया और इन साम्यवादी दलों ने अपने इसी कार्यक्रम के आधार पर काम किया और वह केरल पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा में वैज्ञानिक समाजवाद के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में लग गए। वहां पर किसानों मजदूरों की राज्य सरकारी बनाई और जनता के बुनियादी सवालों का समाधान किया और ये काफी लंबे समय तक वहां की राज्य की सरकारों में बने रहे। ई एम एस नम्बूदरीपाद, ज्योति बसु, मानिक सरकार और अब पिन्नरायी विजयन इनके मुख्यमंत्री बनें।

समाजवादी विचारधारा केवल कल्पनाओं में ही नहीं बस्ती है, वह केवल भावनाओं में भी नहीं रहती है और उसे लेकर समाजवादी होने का प्रदर्शन करना, दिखावा करना और एक वहम पाल लेना ही समाजवादी हो जाना नहीं है। वैज्ञानिक समाजवादी और एक सच्चा समाजवादी बनने के लिए समाजवाद के मर्म को समझना जरूरी है, उसके सिद्धांतों को, उसकी अंतर्वस्तु को और उसकी चेतना को समझना और उसकी असली विचारधारा को धरती पर उतारना और जनता की जनमुक्ति का प्रोग्राम बनाकर, उसे लागू करना वैज्ञानिक समाजवाद की पहली शर्त है और यह काम ही सबसे ज्यादा जरूरी है। ऐसा किए बगैर कोई भी आदमी, कार्यकर्ता या नेता, वैज्ञानिक समाजवादी नहीं बना सकता।

पश्चिमी देशों के कई पूंजीवादी देशों जैसे अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली, जर्मनी, कनाडा आदि में समाजवाद को पूंजीवाद का सेफ्टी वाल्व कहा जाता है। आज जब हम इस बात पर गंभीरता से विचार करते हैं, तो हम पाते हैं कि वास्तव में काल्पनिक समाजवाद पूरी दुनिया में कागजी समाजवाद, पूंजीवाद का समर्थक, उसे बचाने वाला और उसका सेफ्टी वाल्व ही बना हुआ है। भारत के संदर्भ में भी हम यह कह सकते हैं कि भारत में भी सारे  समाजवादी पूंजीवाद के पिछलग्गू और हवा सवाई बनकर ही रह गए हैं क्योंकि उन्होंने कभी भी वर्गीय आधार पर राजनीति नहीं की, किसानों और मजदूरों की मुक्ति का कार्यक्रम नहीं बनाया। उन्होंने मजदूरों किसानों के वर्गीय संगठन और सरकार नहीं बनायी और किसानों छात्रों नौजवानों मजदूरों की मुक्ति कार्यक्रमों को लागू नहीं किया, उन्होंने अपनी सत्ता कायम नहीं की। वे बस समाजवाद के नाम पर सरकार बनाते रहे। इससे जनता का एक बड़ा हिस्सा समाजवाद को लेकर गुमराह होता रहा और वैज्ञानिक समाजवादी विचारधारा जनता की नजरों में बदनाम होती रही। इनके कारनामों को देखकर, जनता मजाक उड़ाती रहे और पूछती रही कि क्या ऐसा ही होता है समाजवाद?

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ऐसा इसलिए भी हुआ कि ये सब के सब तथाकथित समाजवादी, वैज्ञानिक समाजवाद से, सचमुच का वास्ता और राफ्ता कायम ही नहीं कर पाए। इनके समाजवाद का, वैज्ञानिक समाजवाद से कोई लेना-देना नहीं रहा, इसलिए समाजवादियों के जनता की मुक्ति के, उसे शोषण और अन्याय से मुक्ति दिलाने के और सबको रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार देने के सपने अधूरे के अधूरे ही रह गए।

उपरोक्त विवरण के आधार पर हमारा यह कहना है कि भारत के समस्त समाजवादियों और कम्युनिस्टों को मिलकर वैज्ञानिक समाजवाद के मर्म को समझना होगा और वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा के अनुसार कार्यक्रम बनाने होंगे, उसी के आधार पर किसानों मजदूरों छात्रों नौजवानों महिलाओं और बुद्धिजीवियों के वर्गीय संगठन बनाने होंगे और इसी कार्यक्रम के तहत संघर्ष करके किसानों और मजदूरों के वर्गीय संगठन बनाकर, अपनी सत्ता और सरकार कायम करनी होगी और जन्म मुक्ति के कार्यक्रम लागू करने होंगे, तभी जाकर साम्यवादियों और समाजवादियों के अधूरे सपने पूरे हो सकते हैं।

यहीं पर यह भी जरूरी है कि हम पूरी दुनिया के समाजवादी देशों की उपलब्धियों का और योगदान का अध्ययन करें, उनसे सही सबक लें और उनके आधार पर भारतीय परिस्थितियों के आलोक में अपने कार्यक्रम बनाएं और किसानों मजदूरों की सत्ता और सरकार बनाने का संघर्ष शुरू करें। हम यह भी ज़ोर देकर कहेंगे कि भारत के तमाम साम्यवादियों, समाजवादियों, प्रगतिशील, जनवादी और धर्मनिरपेक्ष ताकतों के एकजुट संघर्ष और जन-मुक्तिकारी कार्यक्रम को लागू किए बिना, भारत में वैज्ञानिक समाजवादी व्यवस्था कायम नहीं की जा सकती।  

मुनेश त्यागी

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार व प्रसिद्ध अधिवक्ता है।

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