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Opposition to CAA-NPR-NRC and new definition of Hindu by RSS
देश भर में सीएए-एनपीआर-एनआरसी की जिस ढंग से मुखालफत (CAA-NPR-NRC opposed)हुई, वह लम्बे समय तक याद रखी जाएगी। विरोध प्रदर्शन स्वतःस्फूर्त थे और उनमें अनेक पार्टियों, विचारधाराओं और सामाजिक-धार्मिक समुदायों से जुड़े लोग शामिल थे। कहने की आवश्यकता नहीं कि ये विरोध प्रदर्शन इतने व्यापक और बड़े थे कि इनसे भाजपा और उसके सहयोगी भी हिल गए। इन जबरदस्त विरोध प्रदर्शनों के चलते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कुछ ऐसे बातें कहनीं पड़ीं जो तथ्यों और सत्य के विपरीत थीं।
पकड़े गए मोदी के झूठ Caught Modi's lies
दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि एनआरसी पर सरकार में कोई चर्चा ही नहीं हुई है। उनके इस दावे का मीडिया ने तुरंत खंडन किया और यह साबित किया कि न केवल भाजपा के कई नेता एनआरसी की बात करते रहे हैं, बल्कि मोदी की सेना के प्रधान सेनापति अमित शाह ने भी संसद में घोषणा की थी कि पूरे देश में एनआरसी लागू की जाएगी।
मोदी ने यह दावा भी किया कि भारत में कहीं भी कोई डिटेंशन सेंटर (Detention centers in India) नहीं है। यह बात भी गलत सिद्ध हो गई। देश में कितने डिटेंशन सेंटर चल रहे हैं, इस सम्बन्ध में आधिकारिक जानकारी उपलब्ध है। यह भी सबके सामने है कि इस तरह का एक सेंटर कर्नाटक में बनाया जा रहा है और यह भी कि महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस के राज्य में डिटेंशन सेंटर बनाये जाने का आदेश रद्द कर दिया है।
भाजपा और उसकी सरकार के इन अनावश्यक कदमों के समर्थकों को उम्मीद थी कि केवल मुसलमान ही उनके विरोध में आगे आएंगे। परन्तु संघ परिवार को यह देख कर बहुत धक्का लगा कि सभी धार्मिक समुदायों के सदस्यों, विद्यार्थियों और अधिकांश राजनैतिक दलों, जिनमें एनडीए गठबंधन में शामिल दल जैसे जेडी(यू) और अकाली दल भी शामिल हैं, ने सीएए-एनआरसी का विरोध किया। इससे यह भी जाहिर हुआ कि राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर भी भाजपा अपने गठबंधन साथियों को विश्वास में नहीं लेती।
The chief spokesperson of Hindu nationalism, RSS chief Mohan Bhagwat, is deliberately trying to spread confusion.
जहां मोदी इस विवादास्पद मुद्दे से बच निकलने का रास्ता ढूंढ रहे हैं वही हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रमुख प्रवक्ता आरएसएस मुखिया मोहन भागवत जानबूझकर भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। मुसलमानों को आश्वस्त करने का प्रयास करते हुए उन्होंने कहा कि सभी 130 करोड़ भारतीय हिन्दू हैं। अर्थात हर भारतीय हिन्दू है। यह चाल कामयाब होने वाली नहीं है क्योंकि यह सभी जानते हैं कि संघ की राजनीति, हिन्दुओं की पहचान से जुड़े मुद्दों के आसपास घूमती है। इसके अलावा, जैसे कि बाबासाहेब आंबेडकर ने कहा था, देश में जिस हिन्दू धर्म का आज बोलबाला है, उसकी मूल आत्मा ब्राह्मणवाद है।
क्या ईसाई, मुसलमान, सिक्ख और बौद्ध स्वयं को हिन्दू मानेंगे? यह प्रश्न बार-बार उठता रहा है।
Will Christians, Muslims, Sikhs and Buddhists consider themselves Hindus? This question has been arising again and again.
आरआरएस एक ओर हिन्दू पवित्र ग्रंथों पर आधारित हिन्दू राष्ट्र का निर्माण करने का अभियान चला रहा है तो दूसरी ओर चुनावी समीकरणों के चलते, गैर-हिन्दुओं को अलग-अलग तरह के सन्देश दे रहा है। आरएसएस के नेता यह खेल इसलिए खेल सकते हैं क्योंकि हिन्दू धर्म, पैगम्बर-आधारित नहीं है। वह भारत की कई धार्मिक परम्पराओं का मिश्रण है। ये परम्पराएं ब्राह्मणवादी भी है और श्रमण (नाथ, तंत्र, भक्ति, शैव इत्यादि) भी। ब्राह्मणवाद, ऋग्वेद के 'पुरुष सूक्त' पर आधारित है और जातिगत और लैंगिक पदक्रम का पैरोकार है वहीं अन्य परम्पराएं समतामूलक हैं।
Diversity of Hinduism has always been a problem for Hindu nationalists
दरअसल, हिन्दू धर्म की विविधता, हिन्दू राष्ट्रवादियों के लिए हमेशा से एक समस्या रही है। हिन्दू राष्ट्रवादी चिन्तक सावरकर ने हिन्दू को परिभाषित करने का प्रयास करने हुए लिखा था कि हिन्दू वह है, जिसकी जन्मभूमि और पुण्यभूमि, दोनों सिन्धु नदी की पूर्व में हैं। उन्होंने हिंदुत्व शब्द भी गढ़ा, जिसे कब-जब हिन्दू धर्म का पर्यायवाची मान लिया जाता है, जो कि सही नहीं है।
सावरकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत में हिन्दुओं का दर्जा मुसलमानों और ईसाईयों से ऊंचा है क्योंकि यह धरती हिन्दुओं की है।
एक अन्य प्रमुख हिन्दुत्ववादी चिन्तक माधव सदाशिव गोलवलकर, जर्मनी की विचारधारा से बहुत प्रभावित और अल्पसंख्यकों के प्रति हिटलर की नीति के प्रशंसक थे।
आरएसएस की शाखाओं और उसके द्वारा संचालित स्कूलों में यह बताया जाता है कि हिन्दू, मुसलमानों और ईसाईयों से उच्च और श्रेष्ठ हैं। यह धारणा धीरे-धीरे, सामूहिक सामाजिक समझ का हिस्सा बन गई है। आरएसएस बरसों-बरस से अपनी विचारधारा का प्रचार करता आ रहा है और अब हालात ऐसे बन गए हैं कि पहचान से जुड़े मुद्दों को समाज बहुत महत्व देने लगा है और धर्म की दीवारें, ऊंची, और ऊंची, होती जा रहीं हैं। जाहिर है कि इससे हमारा बंधुत्व गंभीर खतरे में आ गया है और हमारे समाज की आर्थिक और सामाजिक प्रगति भी बाधित हुई है।
सन् 1990 के दशक में जैसे ही भाजपा सत्ता के नज़दीक पहुंचने लगी, उसने सभी भारतीयों को हिन्दू बताना शुरू कर दिया। मुरली मनोहर जोशी, मुसलमानों के लिए अहमदिया हिन्दू और ईसाईयों के लिए क्रिस्टी हिन्दू शब्द प्रयुक्त करते थे। संघ परिवार का तो यह दावा भी है कि सिक्ख धर्म, हिन्दू धर्म का हिस्सा है।
इस तरह दो समान्तर प्रक्रियाएं एक साथ चल रहीं हैं। एक ओर ऐसे कदम उठाये जाए रहे हैं जिनसे मुसलमानों और ईसाईयों को कटघरे में खड़ा किया जा सके। राममंदिर आन्दोलन, गौरक्षा, लवजिहाद, घरवापसी और राष्ट्रवाद (पुलवामा-बालाकोट) ऐसे ही कुछ मुद्दे हैं। दूसरी ओर, हिन्दू राष्ट्रवाद के सबसे बड़े झंडाबरदार, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, मुसलमानों और ईसाईयों को हिन्दू धर्म की छतरी तले लाने का प्रयास कर रहे हैं। राष्ट्रीय मुस्लिम मंच और इसी तरह के ईसाई संगठन, इन दोनों समुदायों में पहले से ही काम कर रहे हैं।
To call all Indians as Hindus is nothing but fooling them.
सभी भारतीयों को हिन्दू बताना, उन्हें बेवकूफ बनाने के अलावा कुछ नहीं है। इसे गैर-हिन्दुओं पर हिन्दू धर्म थोपने की कोशिश के रूप में भी देखा जा सकता है। इस मुद्दे को देखने का एक और तरीका भी है - और वह है गांधीजी का तरीका। गांधीजी मानते थे सभी धर्म भारतीय हैं। इसके विपरीत संघ सभी धर्मों के लोगों को हिन्दू बताने पर तुला हुआ है। लोग इसे किस रूप में लेते हैं यह तो समय ही बताएगा। परन्तु मोदी और भागवत ने जिस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त की है, उससे साफ है कि सीएए-एनआरसी के कड़े विरोध ने उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया है।
राम पुनियानी