हमारा बचपन ढिबरी और लालटेन की रोशनी में बीता है और आपका?

हमारा बचपन ढिबरी और लालटेन की रोशनी में बीता है और आपका?

विश्व साहित्य, बांग्ला, हिंदी और अंग्रेजी की पत्र पत्रिकाओं, रवींद्र, शारत, बंकिम, माइकल के साहित्य, गोर्की की मां, पर्ल बक की गुड अर्थ, हेमिंग्वे की द ओल्डमैन एंड द सी, विक्टर ह्यूगो की हंचबैक ऑफ नॉस्टरडम से लेकर प्रेमचंद, अमृतलाल नागर, तारा शंकर बंदोपाध्याय, समरेश बसु, निराला, मुक्तिबोध, शैलेश मटीयानी, अमृता प्रीतम सभी इसी मद्धिम सी रोशनी में समाहित है।

इसलिए शायद मेरे साहित्य के पाठ में पथेर पांचाली, देवदास, श्रीकांत, पिंजर, आधा गांव, गोदान की उदासी बहुत ज्यादा है।

हमारी स्मृतियां और लोकछवियां श्वेत श्याम हैं, जिसमें तकनीक का कोई चमत्कार नहीं है।

जनता की रोजमर्रा की जिंदगी की रोशनी भी इसीतरहा मद्धिम सी है। जो रंग हैं वे या इंद्रधनुष के हैं या फसलों के, फूलों के तितलियों और पक्षियों के हैं।

दुनिया बदल ज्ञान है लेकिन इन स्मृतियों में लोक की पुरानी दुनिया अभी आबाद है, जिसमें लता मंगेशकर, सचिन देव बर्मन, भूपेन हजारिका, भीमसेन जोशी, रविशंकर, के एल सहगल, तलत महमूद, शमशाद बेगम के स्वर हैं।

अब लालटेन सिर्फ एक चुनाव चिन्ह है। बैलों की जोड़ी, झोपड़ी और दीपक चुनाव चिन्ह हैं या नहीं मालूम।

बाजार ने सारा कायाकल्प कर दिया है और तकनीक ने जनता को स्मृतियों और लोक से, संगीत और भाषा, बोली से बेदखल कर दिया है।

विभाजन से, भुखमरी, महामारी और नरसंहार से भी बड़ी, युद्ध, गृहयुद्ध, परमाणु युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु परिवर्तन से भी बड़ी त्रासदी यह है।

बिडंबना यह है कि अपने अतीत, इतिहास और विरासत, जल जंगल जमीन आजीविका और प्रकृति, मनुष्यता, सभ्यता और संस्कृति से इस अनंत बेदखली का अहसास हमें नहीं है।

दिनेशपुर में राष्ट्रीय लघु पत्र पत्रिका सम्मेलन की व्यवस्था को अंतिम रूप देने के लिए आज प्रेरणा अंशु परिवार की बैठक थी।

बैठक के बाद हम परिवार के खास सदस्य आरती और असित के घर चले गए, जहां लालटेन और ढिबरी को बड़े जतन से रखा गया है।

अंशु और डुग्गू के साथ कुछ देर के लिए हम पुरानी दुनिया की टाइम मशीन की यात्रा पर निकल गए।

पलाश विश्वास

Web title : Our childhood is spent in the light of candles and lanterns and yours?

अगला आर्टिकल