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Patriarchy and politics nexus
2012 में निर्भया के साथ हुए दुष्कर्म के बाद जिस तरह जनता ने सड़कों पर आकर विरोध प्रकट किया और फिर रेप कानून की भी बनाया गया और आगे अपराधियों को सजा दिलवाने और पीड़िता को न्याय दिलवाने के लिए निर्भया फंड बनाया गया तो ऐसा लगा कि अब इस तरह की वारदातें आगे नहीं होंगी, लेकिन उसके बाद भी बलात्कार की घटनाएं लगातार अखबार की सुर्खियां बनी रहीं, जब-जब बलात्कार की वारदातों का विरोध होता है तब तब बलात्कारियों को फांसी देने की मांग उठने लगती है जैसे फांसी के डर से अपराधी कांपने लगेंगे और महिलाओं की ओर गलत नजर से देखने से भी डरेंगे। लेकिन सच्चाई इससे उलट है केवल अपराधी को सजा तब ही दी जा सकती है जब अपराधी पकड़ा जाए और अपराधी को पकड़वाने में समाज तभी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जब उस समाज का प्रत्येक प्राणी संवेदनशील हो। लेकिन हाथरस की घटना के बाद पुलिस प्रशासन और सरकार की जिस तरह की संवेदनहीनता देखी गई उससे इंसानियत भी शर्मसार हो गई।
एक तरफ बलिया का भाजपा विधायक सुरेन्द्र सिंह लड़कियों को संस्कार सिखाने में लग गया है तो दूसरी तरफ रंजीत श्रीवास्तव जैसे लोग दलित जाति की लड़कियों को ही रेप के लिए दोषी करार दे रहा है।
अपराधी की जगह प्रदर्शनकारियों को ही जेल में डाल रही सरकार | Government is putting protesters in jail instead of criminals
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार अपने देश हर पन्द्रह मिनट में एक रेप होता है। नए दुष्कर्म कानून से भी अपराध करने वाले डरे नहीं, बल्कि ऐसे मामलों में बढ़त दर्ज की गई। एक तरफ रोज उत्तर प्रदेश में ही नहीं भारत के कोने-कोने से बलात्कार की खबरें आ रही हैं जिसमें पीड़िता 35 साल की महिला से लेकर 8 साल की मासूम बच्ची है। ये केस भी ऐसे हैं जिसमें बलात्कारियों ने वहशीपन की हद पार कर दी।
हाथरस की घटना में अगर पीड़िता के पार्थिव शरीर को नहीं जलाया जाता तो शायद यह घटना भी मात्र एक दुर्घटना बन कर रह जाती। लेकिन मीडिया में आ जाने के कारण यह एक बड़ा मुद्दा बन गया। अब इसी मुद्दे में मीडिया चैनल को अपनी टीआरपी दिख रही है। नेताओं को अपने वोट दिख रहे हैं और सरकार को फिर एक बार मौका मिल गया ये बताने के लिए कि देश खतरे में है और बाहर से दंगाई आकर देश का माहौल बिगाड़ रहे हैं। यही कारण है जब फैक्ट फाइडिंग के लिए जब मुस्लिम पत्रकार सिद्दकी कप्पन जो दिल्ली में केरल युनियन वर्किंग जर्नलिस्ट के सदस्य थे तथा तेजस अखबार में काम करते थे उनके साथ उनके तीन अन्य पत्रकारों को अतीर-उर-रहमान, मसूद अहमद और आलम को रास्ते से ही सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और मेरठ जेल भेज दिया गया। उसके बाद उन पर देश के शान्त माहौल को खराब करने का आरोप लगा कर यूएपीए एक्ट लगा दिया गया।
योगी सरकार हाथरस की पीड़िता को न्याय (Justice to the victim of Hathras) दिलाने और दोषियों को सजा देने की जगह विरोध करने वालों को ही निशाना बना रही है। ये वैसा ही है जैसे जब दिल्ली उत्तर प्रदेश में सीएए और एनआरसी के विरोध में आम मुस्लिम जनता धरने व प्रदर्शन में बैठी थी तब सीएए और एनआरसी का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया था। उत्तर प्रदेश सरकार हाथरस केस को भी उसी तरह दबाना चाहती है और बलात्कार का विरोध करने वालो को ही दंगाई बनाकर जेल में डाल रही है।
मर्दवादी सोच और राजनीति का गठजोड़ देश को कहां तक ले जायेगा
हाथरस की घटना से जाति के आधार पर बंटे हुए समाज और वोटों के आधार पर बंटे हुए राजनीतिक दलों की कलई खुल कर सामने आ गई। एक तरफ विपक्षी पर्टियां इस मुद्दे को एक अवसर के रुप में देख रही हैं तो दूसरी तरफ दलित संगठन एकजुट हो रहे हैं तो इसे केवल दलित मुद्दा बना रहे हैं। जबकि ये पहले एक उस महिला का मुद्दा है जो एक उस पुरुषवादी मानसिकता का शिकार हुई जो हर बात में ’मां और बहन’ की गाली देते हैं जिसमें महिला को यौनिक रुप से देखा जाता है हर गली नुक्कड़ पर महिला को इस तरह की गाली से संबोधित किया जाता है।
बलात्कार का कारण (Cause of rape) स्त्री देह में नहीं बल्कि पुरुष के पितृसत्तात्त्मक आचरण और हिंसक व्यवहार में निवास करते है जो सभी जाति में विद्यमान है चाहे वह निम्न हो या उच्च जाति, हां यह जरूर है कि निम्न जाति होने के कारण दलित महिला को दुगुनी प्रताड़ना झेलनी पड़ती है उच्च जाति की महिला की तुलना में एक तो जाति उत्पीड़न तथा महिला उत्पीड़न।
ऐसे लोगों को बोलने से पहले सौ बार सोचना चाहिए जो बलात्कार का कारण पुरुषों की दूषित मनोवृत्तियों में नहीं बल्कि स्त्री की जाति, कपड़ों और महिलाओं का समाज में आगे बढ़ने में खोजते हैं।
बहरहाल केस कोर्ट तक पहुंच गया है और पीड़िता के पिता और भाई से बार-बार पूछताछ हो रही है जैसा कि भारत के कानूनी प्रक्रिया में होता है कि बलात्कार की पुष्टि पीड़िता को ही करनी पड़ती है अब इस केस में पीड़िता नहीं है तो दिवंगत के पिता और भाई को ही साबित करना है कि उनकी बेटी/बहन के साथ बलात्कार हुआ या नहीं।
वहीं ठाकुर समुदाय के लोग एकजुट होकर आरोपियों के लिए यह ऐलान कर दिया है कि उन्होंने बलात्कार किया ही नहीं।
यहां एक बात की ओर केस और स्मरण कराना चाहूंगी कि 5 सितंबर 2019 में एक कानून की छात्रा ने भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रिय गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानन्द पर यौन शोषण का आरोप लगाया था जिसमें साक्ष्य के रुप में एक वीडियो भी जारी हुआ था जो कि सोशल मीडिया खूब चला था। आज वह छात्रा अपने बयान से मुकर गई और कोर्ट ने अब उसके ही खिलाफ कार्यवाही करने की अर्जी दे दी है। अतः भारतीय न्याय व्यवस्था और राजनैतिक व्यवस्था में अगर हाथरस पीड़िता के पिता और भाई आने वाले समय में अगर अपने बयान से मुकर जायें तो कोई ताज्जुब नहीं होगा। यहां पितृसत्ता और राजनीति का मजबूत गठजोड़ है जो कुछ भी कर सकते हैं।
डॉ. अशोक कुमारी