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प्रचंड की भारत यात्रा पर पवन पटेल की टिप्पणी
“मेरी नस नाड़ी में बहने वाली खून की हरेक बूँद-बूँद में हिंदुत्व समाया हुआ है. इसीलिए मैं हिंदुत्व के खिलाफ कभी नहीं जा सकता. हमारे दो मुल्कों के सम्बन्ध अयोध्या और जनकपुर के अटूट सम्बन्ध पर आधारित हैं, जो किसी (बाहरी शक्ति) के मिटाए न कभी मिटेंगे और न ही ख़त्म होंगे.”
--- (प्रचंड, 2011; पान्चजन्य के संपादक तरुण विजय से दिल्ली में बातचीत करते हुए; देखें “घटना र विचार साप्ताहिक, काठमांडू,” 20 जुलाई, 2022)
क्या आप को झटका लगा यह सुनकर कि नेपाल की माओवादी क्रांति के नेता प्रचंड (Nepal's Maoist revolution leader Prachanda) ने ऐसा कुछ कहा होगा. पर सत्य यही है. भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मुंह से यह बात सुनना सहज लगता है, बनिस्बत प्रचण्ड के. लेकिन दुर्भाग्य से यही सत्य है. प्रचंड और मोदी में वैचारिक स्तर पर आज कोई फर्क नहीं रह गया है. इस छोटे से लेख में इस सत्य की भीतरी परत को हल्का सा खरोंचने का प्रयास किया गया है.
समाज विज्ञान में यह अक्सर कहा जाता है कि दृष्टिकोण समय की उपज होते हैं या कहें समय सापेक्ष होते हैं। दृष्टिकोण की कच्ची सामग्री समाज की गतिकी में उपलब्ध रहा करती हैं। बस यहाँ पर उस दृष्टिकोण को खोजने वाली आँखें चाहिए, जो मौजूदा समय के सही सवाल उठा सकने का दृष्टिकोण दे सके। मायने फलसफा, जिसे भारतीय मार्क्सवादी चिंतन की किदवंती शख्शियत (अब दिवंगत) प्रो. रणधीर सिंह यह कहकर व्याख्यायित किया करते थे, कि जब आप सही सवाल करना सीख जाओगे तो उत्तर भी आपको सही मिलेंगे। अक्सर हम गलत सवालों के चक्कर में ही उलझे रहते हैं, इसलिए हम उस दृष्टिकोण तक नहीं पहुँच पाते, जो हमें सही सवाल करना सिखाता है। "कैश माओवाद" एक ऐसा ही दृष्टिकोण है, जो मैंने नेपाली माओवादी आंदोलन के प्रतीक थबाङ् गाँव के शोध अध्ययन के आधार पर सूत्रबद्ध किया था।
इसी कैश माओवाद के प्रणेता प्रचंड हाल ही में (16-18 जुलाई, 2022) भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख जेपी नड्डा के निमंत्रण में दिल्ली आये हुए थे।
प्रचंड का पूरा नाम नेपाली युद्ध सरदार है। इसीलिए तो वे कैश माओवाद के जनक बने। कैश माओवाद तो सैन्य फासीवाद का नेपाली पर्यायवाची है।
दस साल तक “नव जनवादी क्रांति” के नाम पर नेपाली राजसत्ता के विरुद्ध सशत्र युद्ध लड़ने वाले ये युद्ध सरदार आज एक अतिवादी दक्षिणपंथी दल के बुलावे पर दिल्ली आये हुए थे। सशत्र युद्ध लड़ने की प्रक्रिया में वे तो नेपाली युद्ध सरदार की पदवी पा गए, पर इस प्रक्रिया में उन्होंने हजारों लोगों का कत्लेआम कराया और नेपाल को स्विट्जरलैंड बनाने के तथाकथित सपने में श्रमजीवी लोगों को अपने दिवस्वप्न में उलझाकर संसद की सीढियाँ चढ़ गए। कैश माओवादी यही है।
आज प्रचंड को संसद में बैठाने वाले लोग अरब के रेगिस्तानों में ऊँट चरा रहे हैं और हरेक दिन प्रचंड युद्ध सरदार के सपने में यकीन करने का खामियाज़ा हर दिन त्रिभुवन हवाई अड्डे पर लाश के रूप में काठमांडू एअरपोर्ट पर लौटकर चुका रहे हैं।
उनकी यह यात्रा उस समय हुई है, जबकि हाल ही में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के अन्तर्राष्ट्रीय विभाग के प्रमुख काठमांडू आये हुए थे. वे नेपाल की सत्ता पर काबिज वाम-लोकतान्त्रिक गठबन्धन के नेताओं से मिले. भले ही यह वाम गठबंधन नेपाली जनता की नजर में तथाकथित है, क्यूंकि इसके सर्वेसर्वा वामपंथियों के चिरपरिचित वर्ग शत्रु नेपाली कांग्रेस के सभापति शेर बहादुर देउबा हैं. बावजूद इसके उनका मंतव्य यह था कि सत्ता पर काबिज नेपाल के वाम समूह आपसी बैर भाव भुलाकर एकजुट हों और अमेरिका (बरास्ते भारत) की चीन को घेरने की रणनीति के तहत हाल ही में नेपाली संसद में पास की गयी एमसीसी परियोजना के व्यापक भू-राजनितिक (दुष्प्रभावों) के दबाव से नेपाल को बचाएं.
चीन के नेताओं के जाने के दूसरे दिन ही नेपाली मीडिया में यह खबर प्रसारित होने लगी, कि प्रचंड दिल्ली जा रहे हैं. और लब्बोलुवाब यह कि प्रचंड की पार्टी नेकपा-माओवादी केंद्र के शीर्ष नेताओं तक को इस भ्रमण के बारे में पता तक न था !
गौर तलब है कि चीन के नेताओं के भ्रमण के बीच ही प्रधानमन्त्री शेर बहादुर देउबा की पत्नी डॉ आरजू राणा दिल्ली गयीं और भाजपा नेताओं से मिली. और दिल्ली ने तलब कर लिया नेपाली युद्ध सरदार को. यहाँ वे जेपी नड्डा के साथ साथ आर.एस.एस के नेताओं और भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर प्रसाद और प्रधानमंत्री के रक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मिले.
प्रचंड का नरेन्द्र मोदी से भी मिलने का कार्यक्रम था, पर उनकी मुलाकात होते-होते रह गयी. साथ ही वे आरजू राणा से भी मिले.
नेपाल में आगामी कुछ ही महीनों में चुनाव होने वाले हैं. भारत नहीं चाहता कि तथाकथित जो भी नेपाली वामपंथी दल हैं, वे एकजुट हों. भारत नेपाली युद्ध सरदार प्रचंड का अपने हितों को पूरा करने के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है.
दिल्ली ने शेर बहादुर देउबा की पत्नी आरजू की उपस्थिति में प्रचंड को हिंदुत्व की शपथ दिलाई है कि नेपाली कांग्रेस और वे अगले ढ़ाई-ढ़ाई सालों तक आपसी समझदारी के साथ मिल बैठकर सत्ता चलायें. यह घटनाक्रम दिखाता है कि नेपाली युद्धसरदार दिल्ली के चरणों पर नतमस्तक एक दास से ज्यादा कुछ भी नहीं और केवल वही नहीं, नेपाल की सत्ता में जो भी काबिज होता है, वे सब दिल्ली की गुलामी बजाते हैं.
बरसों पहले (करीब सात बरस पहले) मैंने कैश माओवाद के जनक प्रचंड युद्ध सरदार पर यहाँ प्रस्तुत यह कविता लिखी थी, जो 2021 में प्रकाशित मेरी किताब “एक स्वयं भू कवि की नेपाल डायरी” में संकलित है। आज नेपाल की सत्ता में वही सब पात्र बैठे हैं, जो कमोवेश उस समय भी बैठे थे। प्रचंड, देउबा से लेकर दलबदलू बौद्धिक बाबुराम, मधेसी नेता उपेन्द्र यादव, महंथ ठाकुर और माधव नेपाल आदि इत्यादि। एमाले के केपी ओली को छोड़कर, जो देउबा के पहले वामपंथी शक्तियों के गठबंधन के तहत प्रधानमंत्री थे. कैसी बिडंबना भोग रहा है नेपाली जन समाज। उसके हृदय में अब मुक्ति का सवाल बस एक टीस बन कर उभरता है।
प्रचण्ड माया
जनता के नाम पर
जंगे माया बनती है प्रचंड
अवसर की दुधारी तलवार से
वार करती चौतरफा.
जनता के नाम पर
जंगे माया बनती है प्रचण्ड
कभी जला रोल्पाली आग
करती भस्म शाही लंका
बनाने एक नयी लंका
राम के संरक्षण में
बन लंकाधीश.
जनता के नाम पर
जंगे माया बनती है प्रचण्ड
भोगने लंका की माया
ले अगल बगल हनुमानों की टोली
रामनामी दिव्य किरणों से सुशोभित.
जनता के नाम पर
जंगे माया बनती है प्रचण्ड
कभी ले आग दोआब के उर्बर मैदानों से
भारदारों के बूटों तले घुटती मूक बेदनाओं से सिंचित
सदियों के लहू पसीने से निर्मित
ध्वस्त करने लंका में बसे
गोर्खाली उपनिवेश को
बन कर राम का सच्चा बिभीषण.
जनता के नाम पर
जंगे माया बनती है प्रचण्ड
करती दो नावों की सवारी
प्रायः दक्षिण की
कभी कभार उत्तर की भी
इतिहास से सीख ले
अवसर के मुताबिक.
जनता के नाम पर
जंगे माया बनती है प्रचण्ड
बजाती राष्ट्रवाद का डंका
करती तब्दील राम की लंका को
२१ वीं सदी के लैंडुपों की लंका में
पैदा करते जाने
अवसर के होली संस्करण
सजाकर दीप चीनी मिटटी में
कर अर्पित सुर्ख फूल कमल के
जन-गण-मन बिरोधी फूल
मनाने दीपा-ओली रक्त रंजित
ओम संसार के मजदूर एक हौंओं!
ओम हाम्रो राजा प्राणभन्दा प्यारो!!
जनता के नाम पर
जंगे माया जरूर बनती है प्रचण्ड
पर जंगे माया करती रही थी
एक नाव की सवारी मात्र
बनकर अंग्रेजों का बहादुर कुत्ता
प्रचण्ड माया करती है
दो नावों की सवारी एक साथ
करने पैदा बहादुर कुत्तों की शेर नस्लें
क्यूंकि प्रचण्ड माया न तो
पूर्णतया बुर्जुवा बन पायी है
और न ही कम्युनिस्ट.
प्रचण्ड माया मात्र जन्माती हैं
पराधीन कौमें.
(5 मई, 2016)
नोट: लैंडुपों = काजी लेंडुप दोर्जी १९७५ में सिक्किम का भारत में विलय संभव कराने के मुख्य पात्र थे.
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(लेखक नेपाली समाज के एक स्वतन्त्र भारतीय अध्येता हैं और अपने गृह जनपद बाँदा में रहकर खेती करते हैं. उनकी “द मेकिंग ऑफ़ कैश माओइज्म इन नेपाल: ए थाबांगी पर्सपेक्टिव (2019)” और “एक स्वयं भू कवि की नेपाल डायरी (2021)” नामक दो किताबें प्रकाशित हैं.)
Pawan Patel's comment on Prachanda's visit to India