Advertisment

पीहर

author-image
Guest writer
12 Jul 2022
पीहर

Advertisment

ब्याह कर क्या आई, सब पीछे ही छूट गया

Advertisment

अम्मा पुकारती थी मुझे उनकी चिड़िया,

Advertisment

तो बाबुल का तो

Advertisment

कलेजा ही थी मैं, उनकी रानी बिटिया!

Advertisment

हरदम जेहन में रहता मेरे,

Advertisment

वो मिट्टी की मुंडेरे,

Advertisment

और टूटा – फूटा सा वो छज्जा।

हाँ, लेती आई थी मैं

दो मुट्ठी मिट्टी, उस आँगन की मेरे साथ

लेकर पूरा सा विश्वास, कि रास आ जाए उसे

नयी हवा, धूप, पानी और आकाश !

बड़ी उमंगों से फैलाया मैंने

उस मिट्टी को, यहाँ की बीच अँगनियां

फतह हासिल कर मैंने,

या

गोल्ड मेडल कोई मुझे मिल गया ?

क्या ही कहना, जो गुलमोहर के पौधे सा दिल मेरा,

उसमें, आज

यहाँ आखिरकार खिल गया!

मोना अग्रवाल

Advertisment
Advertisment
Subscribe