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मोदी की भाजपा की सियासी ज़मीन का दम भी घोंट रही हैं महामारी
राज्य मुख्यालय लखनऊ (तौसीफ़ क़ुरैशी)। कोरोना वायरस कोविड-19 की दूसरी लहर लोगों की साँसों पर भारी पड़ रही हैं। देशभर में ऑक्सीजन की कमी जहाँ लोगों की मौत का कारण बन रही है और सरकारें तमाशबीन बनी हुई हैं।
वहीं यह महामारी मोदी की भाजपा की सियासी ज़मीन का दम भी घोंटती दिखाई दे रही है। परन्तु लगता है कि मोदी सरकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है, विदेशों से आई मदद भी लोगों तक नहीं पहुँच पा रही हैं।
पूरे देश का मंजर देखने से लगता है कि लोग कैसे तड़प-तड़प कर जान दे रहे हैं कैसे अस्पताल में एक अदद बैड को लेकर संघर्ष करना पड़ रहा है फिर भी बैड नसीब नहीं हो पा रहे हैं इसकी सबसे बड़ी वजह पिछले सात साल से केन्द्र में बैठी मोदी सरकार को माना जा रहा है, लेकिन मोदी की भाजपा व सरकार अपने इस निकम्मेपन को न स्वीकार कर रही है और न ठोस कार्य योजना बनाती दिख रही है।
अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से लोगों की जानें जा रही हैं और मोदी सरकार व राज्य सरकारें तमाशबीन बनी हुई हैं, लोगों में बीमारी के साथ-साथ भय का वातावरण भी बन रहा है।
इस सरकार में सबसे बड़ी कमी यह भी है ये न किसी से सुझाव लेती हैं और न ख़ुद कार्य योजना तैयार करती हैं बस चुनाव कैसे जीतेंगे इस पर वर्क करती रहती हैं। अब सवाल यह भी है कि जब देशवासी सही सलामत रहेंगे तभी तो चुनाव जीते या हारे जाएँगे लेकिन नहीं हम तो आएँ ही चुनाव जीतने के लिए चाहें इसके लिए कुछ भी करना पड़े।
देश के वर्तमान हालात मोदी की भाजपा और आरएसएस के दामन पर ऐसा दाग लग गया है जो किसी भी धार्मिक डिटर्जेंट पाउडर से धुलाएँ नहीं धुलेगा, क्योंकि इस महामारी से ग्रस्त हिन्दू भी है मुसलमान भी, सिख भी हैं, और ईसाई भी इस महामारी की पहली लहर को मोदी सरकार सहित राज्य सरकारों ने और उनके सिस्टम ने योजनाबद्ध तरीक़े से हिन्दू मुसलमान करने की कोशिश की थी बल्कि अगर यूँ कहा जाए कि कर दिया था तो ग़लत नहीं होगा।
दूसरी लहर में नियमों की जिस तरह से अनदेखी कर कुंभ का आयोजन कराया गया सिर्फ़ हिन्दू तुष्टिकरण के लिए यह भी किसी से ढका छिपा नहीं हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि दूसरी लहर को सरपट दौड़ने के लिए कुंभ का आयोजन भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है।
दिल्ली के एक अच्छे, बड़े पुराने, नामी और निजी बत्रा अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर अपने ही अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी से मर गए थे। इसके बाद आम लोगों में डर बैठना स्वाभाविक है।
आम लोग तो उसी दिन से डरे हुए हैं जब दिल्ली के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से इस समस्या की चर्चा की और प्रधानमंत्री ने कोई जवाब नहीं दिया।
आम आदमी तो मर ही रहे थे अब तो बड़े अस्पतालों में भी बुरा हाल हो गया है बत्रा अस्पताल आम आदमी से ऊपर का है। विदेशी दूतावासों के अधिकारियों के स्तर का।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि दिल्ली में तैनात किसी विदेशी दूतावास के अधिकारी को जरूरत हुई तो दिल्ली में जो दो-चार अस्पताल हैं उनमें गंगाराम (वहां पहले ही मौतें हो चुकी हैं), अपोलो, बत्रा आदि जैसे अस्पताल ही हैं। एम्स में उच्च स्तर पर सरकारी हस्तक्षेप के बिना वैसे भी दाखिला मुश्किल है इसलिए कोई विदेशी शायद ही वहां कोशिश करे। वैसे भी, उन्हें हम देशवासियों की तरह पांच लाख के बीमे में पूरे परिवार का खर्चा तो चलाना नहीं है। ऐसे में गंगाराम की मौतों के बाद बत्रा में मौतें बड़े बड़े धनपशुओं को भी हिला देने वाली थीं। इसका एक असर यह हुआ कि दूतावास ने ऑक्सीजन सिलेंडर युवक कांग्रेस से मांगा।
मोदी की भाजपा ने फिर बता दिया है कि हिन्दू-मुसलमान की राजनीति के अलावा राजनीति उसे आती ही नहीं है। मोदी की भाजपा का सियासी ऑक्सीजन लेवल गिरता जा रहा है। अगर वह खुद को संभाल नहीं पाई तो यहीं से भाजपा के पतन की कहानी शुरू होगी।