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अंतत: जनता को ही भुगतना पड़ता है मूर्ख शासकों की कथनी और करनी दोनों का फल

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hastakshep
10 Apr 2021
किसान आंदोलन : सरकार झुकेगी या किसान !

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Ultimately, the people have to suffer the consequences of both the words and actions of foolish rulers.

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देशबन्धु में संपादकीय आज | Editorial in Deshbandhu today

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मूर्ख शासकों की कथनी और करनी दोनों का फल अंतत: जनता को ही भुगतना पड़ता है, यह समयसिद्ध सत्य है। हम किसी मुद्दे पर सरकार के समर्थन में रहें या विरोध में रहें। किसी फैसले पर आवाज उठाएं या चुप्पी साध लें। लेकिन जब उस मुद्दे पर नुकसान उठाने की बारी आती है, तो जनता को ही बलि का बकरा बनना पड़ता है। हिंदुस्तान में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिन्होंने बालकनी में आकर ताली या थाली न बजाई हो या दिए और टार्च न जलाएं हों। लॉकडाउन की घोषणा होने पर अच्छा है, अच्छा है का दम भरते हुए लोग घरों में भी खुशी-खुशी कैद हो गए। एसी और कूलर की हवा खाते हुए उन लोगों को लानत भेजने से भी बाज न आए, जो मजबूरन घर लौट रहे थे और इसके लिए बसों पर सवार होने की कोशिश में थे या फिर पैदल ही निकल पड़े थे। पिछले साल इन्हीं दिनों तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat) को कई खबरिया

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चैनल पौराणिक कथाओं में वर्णित दानव की तरह पेश कर रहे थे, जिनके कारण कोरोना संक्रमितों के आंकड़े कुछ हजार तक जा पहुंचे थे। हमारे शासक जनता की इस भक्ति का लाभ उठाते हुए पिछले दरवाजे से कई बड़े फैसले ले चुके थे, और सामने वे जनता को यही बतला रहे थे कि दुनिया की महाशक्ति अमेरिका कैसे सबसे ज्यादा प्रभावित है। हम तो उससे फिर भी पीछे ही हैं।

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The second wave of Corona has arrived in the country like a tsunami.

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अब कोरोना की दूसरी लहर देश में सुनामी की तरह आ चुकी है। और लॉकडाउन का डर (Fear of lockdown) फिर दिखने लगा है, बल्कि छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में अलग-अलग तरह से लॉकडाउन लगने भी लगा है। आम जनता तो बीमारी के डर से घबरा ही रही है, प्रवासी मजदूर भी एक बार फिर अपनी रोजी-रोटी के साथ जान की चिंता में उलझ गए हैं। महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, दिल्ली से रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों में मजदूरों की बढ़ती भीड़ दिखाई देने लगी है। सरकार ने इनकी ओर से आंखें मूंद ली हों, तो औऱ बात है। सरकार को वैसे भी कहां कुछ दिखाई देता है।

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कोई मोदी जितना संवेदनहीन कैसे हो सकता है

जैसे इस वक्त प्रधानमंत्री मोदी ने परीक्षा पर चर्चा की। उन्हें शायद ये नजर नहीं आया कि पिछले साल से अब तक किशोर और युवा अपनी पढ़ाई और रोजगार को लेकर कितने असमंजस में हैं। कक्षाओं का ठिकाना नहीं है, सोशल मीडिया पर परीक्षाओं के बहिष्कार की मुहिम चल रही है, ऑनलाइन-ऑफलाइन के सी-सॉ में विद्यार्थियों का भविष्य झूल रहा है और मोदीजी बच्चों को परीक्षा में आत्मविश्वास बढ़ाने के नुस्खे (Tips to increase confidence in the exam) बता रहे हैं। कोई इतना संवेदनहीन कैसे हो सकता है।

Modi government is not only insensitive, but also biased

यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि मोदी सरकार न केवल संवेदनहीन है, बल्कि पक्षपाती भी है। सरकार जो फैसले जनता पर थोप रही है, खुद उस पर अमल नहीं कर रही। इसका सबसे बड़ा प्रमाण चुनावी रैलियां और रोड शो हैं, जिनमें निर्वाचन आयोग की नियमावलियों का उल्लंघन हो रहा है। कार को सार्वजनिक स्थान बताकर उसमें अकेले चालक को भी मास्क अनिवार्य कर दिया गया है, लेकिन प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सार्वजनिक सभाओं में बिना मास्क के नजर आ रहे हैं।

इंदौर में पुलिसवालों ने एक ऑटोचालक पर मास्क न पहनने के कारण सख्ती के नाम पर बर्बरता दिखाई, लेकिन माननीयों से सख्ती तो दूर, नरमी से यह पूछना भी गुनाह माना जा सकता है कि साहेब आपने मास्क क्यों नहीं पहना।

प्रधानमंत्री ने 8 अप्रैल की सुबह टीके की दूसरी खुराक भी लगवा ली। माना जा सकता है कि वे अब सुरक्षित हैं और उन्हें सुरक्षित रहना भी चाहिए। लेकिन प्राणों की कीमत तो सबकी एक जैसी ही होती है।

जनता तक टीके की आसान पहुंच कब होगी, कब टीके की किल्लत खत्म होगी, कब इसकी कालाबाजारी रुकेगी, कब टीके सबके लिए सुरक्षित होंगे, ये सवाल उठ रहे हैं। क्या सरकार इनका जवाब देगी। या कोरोना के नाम पर उन व्यापारियों का धंधा चमकाने में लगी रहेगी, जिनसे भारी-भरकम चंदा मिलता है।

आंकड़े बताते हैं कि आम जनता के लिए कमाई के अवसर भले घट गए हों, लेकिन इस देश में धनपशुओं की ताकत में इजाफा हुआ है।

अगर दोबारा लॉकडाउन हुआ तो आम आदमी के लिए अर्थव्यवस्था फिर चौपट हो जाएगी, लेकिन रईसों की अर्थव्यवस्था फिर चमक जाएगी। कोरोना की दूसरी लहर के बहाने आम जनता के सामने जान और माल दोनों से हाथ धोने का खतरा बना रहेगा। इस खतरे को बुद्धिमानी से दूर किया जा सकता है, बशर्ते अक्लमंदी के ईमानदार इस्तेमाल की नीयत हो।

आज का देशबन्धु का संपादकीय (Today’s Deshbandhu editorial) का संपादित रूप.

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