तल्खियां और दर्द -ए- कश्मीर,
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मैं कश्मीर हूं दोस्तों मैं जन्नत निशान हूंं,
हिस्सा हूं हिंद का मैं,मैं इसकी शान हूं,
वादी में मेरी क्यारीयां फूलों की खिल रहीं,
गद्दार मैं नही दोस्तों, मैं हिंदोस्तान हूं,,,,,,,,
पर आज जिस तरह से सताया गया मुझे,
पहचान मेरी छीन के मिटाया गया मुझे,
मेरी ही सर जमीन है, दबाया गया मुझे,
बेटा मैं हिंद का हूं तो मैं भी तो जान हूं,
मैं कश्मीर हूं दोस्तों मैं जन्नत निशान हूं,,,,,,,,,,,,
जम्हूरियत को मैंने जिंदा रखा सदा,
कश्मीरियत को मैंने जिंदा रखा सदा,
नफरत का मेरे दिल में कोई निशां नही,
मुहब्बत की कैफियत को जिंदा रखा सदा,
तेरा नहीं तो ये बता अब मैं किसका मान हूं,
मैं कश्मीर हूं दोस्तों मैं जन्नत निशान हूं ,,,,,,,,,,,,,
सरहद नही हूं मैं, मैं गुलशन हूं हिंद का,
मैं ही तो हूं यहां निगहेबान हर परिंद का,
कयामत से भी लड़ के जिंदा रहा हूं मैं,
जिंदा निशां हूं दोस्तों सरजमीन ऐ हिंद का,
तुम ही नहीं मुहब्ब -ए- वतन मैं भी महान हूं
मैं कश्मीर हूं दोस्तों मैं जन्नत निशान हूं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तु कुछ कहे “अता” मेरे ही दिल की बात है,
सदियों से ये वतन ही मेरी भी जात है,
फिरदौस हूं जमीं की मैं, कहता है ये जहां,
हर और यहां जिंदगी हरसू हयात है,
पैगाम ऐ हक हूं मैं मगर अमन का पयाम हूं,,
मैं कश्मीर हूं दोस्तों मैं जन्नत निशान हूं,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मौहम्मद रफीअता
डैलीगेट
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी
व टीवी पैनलिस्ट.
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